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राजस्थान की झीलें, तालाब और सरोवर LAKES, TANKS AND SAROVARS OF RAJASTHAN-





वैभवशाली राजस्थान के गौरवपूर्ण अतीत में पानी को सहेजने की परम्परा का उदात्त स्वरुप यहाँ की झीलों, सागर-सरोवरों, कलात्मक बावड़ियों और जोहड़ आदि में परिलक्षित होता है। स्थापत्य कला में बेजोड़ ये ऐतिहासिक धरोहरें जहाँ एक ओर जनजीवन के लिए वरदान है तो वहीं दूसरी ओर धार्मिक आस्था और सामाजिक मान्यताओं का प्रतिबिम्ब भी है।
राजस्थान में प्राचीन काल से ही लोग जल स्रोतों के निर्माण को प्राथमिकता देते थे। आइए इस कार्य से संबंधित शब्दों पर एक नजर डालें।

मीरली या मीरवी- तालाब, बावड़ी, कुण्ड आदि के लिए उपयुक्त स्थान का चुनाव करने वाला व्यक्ति।

कीणिया- कुआँ खोदने वाला उत्कीर्णक व्यक्ति।

चेजारा- चुनाई करने वाला व्यक्ति।

आइए राजस्थान की जल विरासत की झाँकी का अवलोकन करें!

1. जयसमंद झील (जिला- उदयपुर)

उदयपुर से करीब 48 किमी दूर स्थित इस झील का निर्माण महाराणा जयसिंह ने 1685 ई. में गोमती नदी पर करवाया था। मिश्र की आसवान झील बनने के बाद यह एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मानव निर्मित झील मानी जाती है। इस झील का दूसरा नाम 'ढेबर' भी है। यह झील 36 वर्गकिमी में फैली है जिसकी लंबाई 14 किमी व चौड़ाई 9 किमी है। इसकी अधिकतम गहराई 102 फुट है व इसकी परिधि 30 मील है। इस झील में सात टापू है जिसमें से एक पर भील मीणा आदिवासियों की बस्ती है, जो नौका से आवागमन करते हैं। यहाँ के सबसे बड़े टापू को बाबा का भागड़ा हैं तथा दूसरे बड़े टापू को प्यारी कहते हैं। इसकी क्षमता 414.9 मिलियन घनमीटर है। जयसमंद के अभयारण्य में पक्षी, पेंथर, तेंदुएं, हिरण, जंगली भालू एवं मगर संरक्षित है। इस झील में 6 कलात्मक छतरियाँ और प्रसाद बने हुए हैं जो अत्यंत ही सुन्दर हैं। शांत एवं मनोरम वातावरण में पहाड़ियों से घिरी इस झील का प्राकृतिक सौंदर्य अत्यंत मनोहरी होता है, जो पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र है।

2. जलमहल या मानसागर जयपुर-

जयपुर-आमेर रोड पर स्थित इस मानसागर तालाब का निर्माण सवाई मानसिंह द्वितीय ने जयपुर की जल आपूर्ति के लिए कराया था। इसी मानसागर में सुंदर जलमहल स्थित है। यह काफी समय तक शिकार व सैरगाह बना रहा था। मध्यकालीन वास्तुकला का अद्भुत नमूना यह जलमहल वर्ग आकार में हैं तथा इसमें दो मंजिलें हैं। इसकी अपूर्व सुंदरता इसकी छतरियों व जीनो से दृष्टिगोचर होती हैं।

3. सागर जलाशय अलवर-

सागर नामक यह जलाशय अलवर में सिटी पेलेस के पीछे दुर्ग की पहाड़ी के नीचे स्थित है। यह आयताकार है तथा इसके चारों तरफ लाल पत्थर की 12 छतरियां है। इसके दक्षिण में मूसी महारानी की छतरी तथा उत्तर में किशन कुंड है। राजस्थानी शैली की स्थापत्य कला इसे अनूठा सौंदर्य प्रदान करती है।


4. सिलीसेढ़ झील अलवर-

शहर से करीब 13 किमी दूर स्थित सिलीसेढ़ झील अलवर की सबसे प्रसिद्ध और सुन्दर झील है। यहाँ स्थित महल का निर्माण महाराव राजा विनय सिंह ने 1845 में अपनी रानी शीला के लिए करवाया था। तीन ओर से अरावली पर्वतों से घिरी यह सुरम्य झील पर्यटकों के लिए प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। यहाँ राजस्थान पर्यटन विकास निगम का लेक पैलेस होटल भी है। इस झील से रूपारेल नदी की सहायक नदी निकलती है। वर्ष ऋतु में ये स्थान और अधिक मनोहारी हो जाता है। मानसून में इस झील का क्षेत्रफल बढकर 10.5 वर्ग किमी. हो जाता है। झील के चारों तरफ हरी-भरी पहाडियां और आसमान में सफेद बादल मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं।


झीलों की नगरी उदयपुर की जल समृद्धि

पूर्व का वेनिस व भारत का दूसरे कश्मीर माना जाने वाला उदयपुर अरावली की सुंदर सुरम्य वादियों से घिरा हुआ है। उदयपुर के महाराणा जल संरक्षण तथा जल के सदुपयोग के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे, इसलिए उन्‍होंने अपने शासनकाल में कई बाँध तथा जलकुण्‍ड बनवाए थे। ये कुण्‍ड उस समय की विकसित इंजीनियरिंग का सबूत हैं। यहाँ की सात प्रमुख छोटी-बड़ी झीलें हैं- पीछोला, दूध तलाई, गोवर्धन सागर, कुम्हारिया तालाब, रंगसागर, स्‍वरूप सागर, फतहसागर, इन्‍हें सामूहिक रूप से 7 बहनों के नाम से जानते है। ये झीलें कई शताब्दियों से इस शहर की जीवनरेखा बनी हुई है।

इनमें से पीछोला व फतहसागर झीलें अधिक प्रसिद्ध हैं और ये अत्यंत सुन्दर व मनोहारी है। उदयपुर के पास ही महाराणा उदयसिंह द्वारा निर्मित एक बड़ी झील उदयसागर एवं 'बड़ी तालाब', छोटा मदार बड़ा मदार तालाब स्थित है।


5. पीछोला झील

पीछोला का निर्माण 14 वीं शताब्दी के अन्त में राणा लाखा के काल एक बंजारे ने कराया था और बाद में राजा उदयसिंह ने इसे ठीक कराया था। पीछोला में स्थित टापू पर जगमंदिर व जगनिवास नामक दो महल है जिनका प्रतिबिम्ब झील में पड़ता है। ये महल लेक पेलेस के नाम से विख्यात है। बादशाह बनने से पहले शाहजहाँ भी इस झील के महलों में ठहरा था। यह झील लगभग 7 किमी लंबी व 2 किमी चौड़ी है।


6. फतहसागर झील

फतहसागर झील, पीछोला से डेढ़ किमी दूर है। इस झील का निर्माण सर्वप्रथम महाराजा जयसिंह द्वारा सन् 1678 में किया गया था परंतु अतिवृष्टि ने इसे तहस-नहस कर दिया। इसका सशक्त पुनर्निर्माण महाराणा फतेहसिंह ने छः लाख रुपयों की लागत से कराया। फतहसागर झील पीछोला झील से एक नहर द्वारा मिली हुई है। साढ़े दस वर्गमीटर में विस्तृत फतहसागर के मध्य दो टापू हैं जिनमें से एक बड़े टापू पर 'नेहरू उद्यान' बना है एवं छोटे टापू पर एशिया की एकमात्र 'सौर वेधशाला' स्थापित है जिसमें सूर्य से संबंधित शोध की जाती है। इस झील की आधारशिला ड्यूक ऑफ कनाट द्वारा रखी गई थी। फतहसागर पूरे भारत में अपने किस्म का अकेला बाँध है।

7. राजसमंद झील

इसका निर्माण 1662 ई. में मेवाड़ के राणा राजसिंह ने करवाया था। यह बनास की सहायक गोमती नदी पर बाँध बनाकर निर्मित की गई है। राजसमंद झील की पाल का स्थापत्य सौंदर्य अति मनोहारी है। पाल पर प्रत्येक नौ सीढ़ियों (चौकियों) के बाद एक बड़ी सीढ़ी बनाई गई है इसलिए इन्हें नौ चौकी पाल कहते हैं। नौ चौकी पाल पर सुंदर छतरियां निर्मित है जिनकी छत, स्तम्भों व तोरण द्वार पर उत्कीर्ण मूर्तिकला व नक्काशी अतिआकर्षक है। यहाँ 25 शिलालेख पर मेवाड़ का इतिहास संस्कृत में अंकित है। इसके दूसरी ओर कांकरोली में झील के तट पर पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय की द्वितीय पीठ का भगवान द्वारकाधीश का मंदिर है। राजसमन्द झील की नौ चौकी पाल (बांध) पर विभिन्न ताकों में श्री रणछोड़ भट्ट नामक संस्कृत कवि द्वारा 1676 ई. में रचित राजप्रशस्ति महाकाव्य 25 शिलालेखों पर अंकित है। यह भारत का सबसे बड़ा शिलालेख है।

 8. गढ़सीसर सरोवर, जैसलमेर

जैसलमेर के प्रवेश मार्ग पर यह सुंदर सरोवर स्थित है। जैसलमेर के महारावल गढ़सीसिंह ने इसका निर्माण कराया था। यह कलात्मक प्रवेश द्वार एवं इसके अंदर स्थित सुंदर छतरियों तथा किनारे पर बनी बगीचियों के कारण प्रसिद्ध है। इसके किनारे पर "जैसलमेर लोक सांस्कृतिक संग्रहालय" भी बना है। इस तालाब के आधे भाग में घाट, मंदिर, स्तम्भ व बरामदे हैं।

9. कायलाणा झील, जोधपुर

जोधपुर के पश्चिम में स्थित इस झील का निर्माण महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय ने कराया था। इसमें सात नहरों से पानी आता है जिसमें से आसपास की पहाड़ियों से आने वाली छः नहर इसकी पारंपरिक जल स्रोत है जबकि सातवीं नहर 'लिफ्ट कैनाल' बाद में जोड़ी गई है। झील के मध्य एक टापू है जिसकी प्राकृतिक सुंदरता मनमोहक है।

10. बड़ोपाल झील, हनुमानगढ़

हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर यह झील बढ़ोपाल गाँव में स्थित है। यह झील लगभग बीस वर्ष पूर्व निर्मित है। यहाँ कुछ दूरी पर कालीबंगा व पीलीबंगा की प्राचीन सभ्यता मौजूद है। इस झील में जब फ्लेमिंगो के समूह अठखेलिया करते है तो यह बहुत सुंदर लगती है।

11. पवित्र कोलायत झील, बीकानेर

बीकानेर से लगभग 45 किमी दूर यह झील हिन्दूओं के लिए पवित्र स्थल है। यहाँ नेपाल से भी तीर्थ यात्री आते हैं। इस झील के तट पर परमपिता ब्रह्मा के पुत्र महर्षि कर्दम्ब व मनु की पुत्री देवहुति के पुत्र सांख्य दर्शन के प्रणेता कपिल मुनि का मंदिर स्थित है। यहाँ कार्तिक माह में एक विशाल मेला भरता है जिसमें लाखों लोग आते हैं।

12. किशोर सागर झील, कोटा

इसका निर्माण बूँदी के राजकुमार धीरदेव ने कराया था। आकर्षक नजारे वाली इस झील के बीच में एक महल 'जगमंदिर' है जो लाल पत्थर से बना एक सुन्दर स्मारक है। महल की ऊँची व उत्कृष्ट दीवारें जब इसके स्वच्छ नीले जल में प्रतिबिम्बित होती है तो नयनाभिराम दृश्य बनता है। इस झील के किनारे आकर्षक बृजविलास महल संग्रहालय भी है।

13. जैतसागर झील, बूँदी

यह बूंदी की एक महत्त्वपूर्ण झील हैयह बूँदी शहर के उत्तर पूर्व में शहर से करीब 3 किलोमीटर पहाड़ की तलहटी में स्थित है। पहाड़ों के मध्य झूला झूलती प्रतीत होती इस झील को बूँदी के राजा जैता मीणा ने बनवाया था जिसका जीर्णोद्धार राव राजा सुरजन सिंह की माता रानी जयवंती ने करवाया था। इसके बाद इसका पुनरुद्धार राव राजा विष्णु सिंह के कारीगर सुखराम ने कराया और इसके निकट ग्रीष्म ऋतु में शाही परिवार के रहने के लिए 'सुखमहल' नामक विश्रामगाह भी बनवाया, जिसमें विश्वविख्यात लेखक रुड्यार्ड किपलिंग अपने भारत प्रवास के दौरान ठहरे थे। इसे बड़ा तालाब भी कहते हैं। यह झील 4455 हैक्टेयर भूमि में फैली है। 1995 तक यह झील ताजा पानी का स्रोत थी। इस झील में लगे फव्वारे के चलने पर झील का झिलमिलाता पानी अत्यंत आकर्षक व मनोहारी लगता है। 

14. पद्म तालाब, सवाई माधोपुर

यह रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान की सबसे विशाल झील है। 400 वर्ग किमी में फैली इस सुंदर झील में चित्ताकर्षक पद्म या कमल इसकी खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देते हैं। पास ही स्थित जोगी महल इसकी नयनाभिराम दृश्यावली अनुपम अंग है। पद्म तालाब पर वन्य जीवन के उस समय मनभावन नजारे होते है जब चिंकारा, हिरण, बाघ इत्यादि यहाँ पानी पीने आते हैं। यह दृश्य पर्यटकों के लिए अत्यंत रोमांचकारी होता है।

15. मेनाल भीलवाड़ा, मेनाल 

माण्डलगढ से 20 किमी दूर चितौडगढ की सीमा पर स्थित पुरातात्विक एवं प्राकृतिक सौन्दर्य स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। मेनाल में 12 वीं शताब्दी के चौहान काल में लाल पत्थरों से निर्मित महानालेश्वर मंदिर, रूठी रानी का महल तथा हजारेश्वर मंदिर दर्शनीय हैं। सैकडों फीट से गिरता मेनाली नदी का जल प्रपात पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केन्द्र हैं। यह जलप्रपात तीन धारों में विभाजित होकर ग्रेनाइट की पट्टियों के ऊपर से गुजरते हुए करीब 400 फुट गहरे दर्रे में समा जाता है।

16. नक्की झील, माउंट आबू

राजस्थान के एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू की सुरम्य नक्की झील भारत की एकमात्र ऐसी झील है जो समुद्र तल से 1200 मीटर ऊँचाई पर स्थित है। इसके बारे में किंवदंती है कि इसे देवताओं ने अपने नख से खोदा था इसलिए इसका नाम नक्की है। झील के चारों ओर चट्टान की अजीब आकृति आकर्षक है। झील के किनारे मेंढक के आकार की 'टॉड रॉक' कौतूहल पैदा करती है।

17. जवाई बाँध, पाली

600 करोड़ घन फुट जल क्षमता वाला यह बाँध पश्चिम राजस्थान का सबसे बड़ा बाँध है। यह जोधपुर व पाली के सेंकड़ों गाँवों के पेयजल का स्रोत है। पहाड़ियों से घिरे इस बाँध के आसपास वन्य जीव भी बहुतायत से पाए जाते हैं।

18. तालाब-ए-शाही, धौलपुर

यह बाड़ी कस्बे से 2 किमी दूर एक विशाल पक्की झील है जिसे जहाँगीर के मनसबदार सुलेह खां ने बनवाई थी। इसमें विदेशी पक्षी सर्दियों में बसेरा करते हैं। झील किनारे महाराजा उदयभान सिंह द्वारा निर्मित एक इमारत भी है।

19. पुष्कर सरोवर

यह किंवदंती है कि जब भगवान ब्रह्मा यज्ञ के लिए शांति स्थान की खोज के लिए निकले तो कर से गिरे कमल से पुष्कर (पुष-कमल, कर-हाथ) सरोवर की रचना हुई। चौथी शताब्दी में कालिदास ने अपनी कृति 'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' इसी स्थान पर रची थी। गुरु गोविन्द सिंह ने यहाँ पर गुरुग्रंथ साहिब का पाठ किया था। इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने कहा कि इस सरोवर की तुलना तिब्बत की मानसरोवर झील के अलावा और किसी से नहीं की जा सकती। तीन ओर से पहाड़ियों से घिरी अर्धचंद्राकार 10 मीटर गहरी इस झील के किनारे बावन घाट हैं एवं विश्व का एकमात्र व सबसे प्राचीन ब्रह्माजी का मंदिर भी है। प्रयाग को तीर्थराज कहते हैं तो पुष्कर को सभी तीर्थों का सम्राट कहते हैं।


20. माही बजाज सागर बाँध, बाँसवाड़ा

यह राजस्थान के विराट बाँधों में से एक है। यह बाँध माही नदी नदी पर बना है जो मध्यप्रदेश के धार जिले में विन्ध्यांचल पर्वत से निकल कर अरावली की पहाड़ियों में बाँसवाड़ा में प्रवेश कर गुजरात की खम्भात की खाड़ी में गिरती है। यह राजस्थान व गुजरात की अंतःराज्यीय संयुक्त परियोजना का यह बाँध केवल बाँसवाड़ा ही नहीं अपितु समूचे वागड़ क्षेत्र के साथ साथ गुजरात में सिंचाई के लिए वरदान सिद्ध हुआ है। इससे राज्य में लगभग 54259 हैक्टेयर भूमि में सिंचाई होती है जिसे बढ़ा कर 80 हजार हैक्टेयर करने का लक्ष्य है। इस बाँध पर विद्युत उत्पादन परियोजना भी संचालित है। इसमें 16 रेडियल गेट लगे हैं। इस बाँध के परिक्षेत्र में 250 से अधिक पक्षी पाए जाते है। इस बाँध का अधिकतम जलस्तर 31 मीटर तथा न्यूनतम जलस्तर 28 मीटर है।

21. आनासागर झील, अजमेर

अजमेर की यह झील दो पहाड़ियों के मध्य स्थित है जिसका निर्माण पृथ्वीराज चौहान के दादा आनाजी ने 1137 ई. में कराया था। इसकी परिधि 8 मील है। इस झील पर शाहजहाँ द्वारा निर्मित बारादरी में संगमरमर के बारह दरवाजे है। झील के किनारे जहाँगीर ने दौलतबाग बनवाया था जिसे आजकल सुभाष उद्यान कहते हैं।

22. फॉयसागर, अजमेर

इस झील में वर्ष-भर पानी भरा रहता है। इसका जलस्तर अधिक हो जाने पर इसका पानी आनासागर में भेज दिया जाता है।

23. बालसमंद झील, जोधपुर

जोधपुर के उत्तर में मंडोर मार्ग पर स्थित इस झील का निर्माण परिहार शासक राव बालाक ने 1159 ई. में कराया था। इसके पानी को पेयजल में उपयोग लेते हैं।


24. गेपसागर झील, डूंगरपुर

नगर के मध्य स्थित इस झील का निर्माण डूंगरपुर के महारावल श्री गोपा रावल ने करवाया था। अत्यंत विहंगम व चित्ताकर्षक दृश्य वाली इस झील के चारों ओर प्राचीन श्रीनाथ मंदिर, विजय राजेश्वर मंदिर, बादल महल, उदय विलास महल स्थित है। यह झील भी विविध प्रजातियों के पक्षियों का बसेरा है।


25. केवलादेव अभयारण्य जलक्षेत्र. भरतपुर

29 वर्ग किमी में फैले व यूनेस्को की विश्व धरोहर की सूची में सम्मिलित केवलादेव भारत का सबसे बड़ा पक्षी अभयारण्य है। इसे वर्ष 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। यह 100 वर्ष पूर्व भरतपुर के महाराजाओं की आखेट स्थली था। यहाँ शीतकाल में लगभग साइबेरिया से पाँच हजार किमी की यात्रा करके साइबेरियन क्रेन तथा अफगानिस्तान, चीन व मंगोलिया से पक्षी देशांतर गमन के लिए आते हैं।

26. उदय सागर झील उदयपुर -

यह उदयपुर से 13 किलोमीटर दूर स्थित है। इस कृत्रिम झील का निर्माण उदयसिंह ने 1565 ई. में कराया था। ये झील बेड़च नदी को बांध कर बनाई गई है यह झील सर्पिल आकार की है। यह लगभग 4 किमी लम्बी और 2.5 किमी चौड़ी है

27. जयसमन्द झील (अलवर)-

अलवर के आसपास के इलाकों में भी अनेक खूबसूरत झीलें और पहाडियां हैं जिसमें से अलवर से 6 किमी दूर स्थित जयसमंद झील प्रमुख है। यह शहर के सबसे करीब स्थित झील है। यहां घूमने का सबसे उपयुक्त समय मानसून है। इस कृत्रिम झील का निर्माण अलवर के महाराजा जयसिंह ने 1910 में पिकनिक के लिए करवाया था। उन्होंने इस झील के बीच में एक टापू का निर्माण भी कराया था।

28. नवलखा झील (बूंदी)-

बूंदी में स्थित इस झील को नवलखा सागर या नवल सागर भी कहा जाता है नवलखा का अर्थ है "नौ-लाख" अर्थात इस झी के निर्माण में नौ लाख रुपये खर्च हुए थे इस झील के किनेरे पर एक सुन्दर व आकर्षक महल 'नवल सागर पैलेस' बना हुआ जो आजकल एक हेरिटेज होटल है कहा जाता है कि 'नवल सागर पैलेस' की पहाड़ी के ठीक नीचे स्थित इस कृत्रिम झील का निर्माण बूंदी के शासक महाराव उम्मेद सिंह (1748-1775) ने करवाया था। इस झील के मध्य में जल के देवता 'वरुण' का सुन्दर मंदिर बना हुआ है बाद में रानी सुन्दर शोभा ने इसके किनारे नहाने के लिए घाट एवं शाही लोगों के रहने के लिए स्थान बनाए गए थे

29. फूल सागर, बूंदी-

बूंदी से अजमेर की ओर जाने वाले मार्ग पर फूल महल परिसर में बनी हुई फूल सागर झील बूंदी के पश्चिमी भाग में स्थित है। रावराजा भोज की रानी फूललता ने इस झील का निर्माण करवाया था सर्दियों के मौसम में यहाँ बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं। इस कारण प्रतिवर्ष नवंबर से फरवरी के मध्य इस झील को देखने बहुत सारे पर्यटक आते हैं।

30. गुढ़ा विश्नोइयां का बड़ा तालाब, जोधपुर-

जोधपुर से करीब 30 किमी दूर गुढ़ा विश्नोइयां गाँव का बड़ा तालाब यहाँ साइबेरिया से आने वाले प्रवासी सारस पक्षी 'डेमोइसेल क्रेन' जिसे स्थानीय भाषा में 'कुरजां' कहते हैं, के लिए प्रसिद्ध है। पर्यटन विभाग द्वारा इस तालाब के पास एक  ईको टूरिज्म साइट चिह्नित कर विकसित की गई है। इस साइट पर पर देशी-विदेशी पर्यटक प्रवासी पक्षी कुरजां, काले हरिणों, चिंकारों की कुलांचे और भेडि़ये, जैकाल सहित कई दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीवों से खुले मैदान में  विचरण करते देखने के लिए आते हैं।

31. तलवारा झील-

 राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में स्थित एक छोटी सी झील है, जो मानसून की वर्षा के दौरान घग्गर-हकरा नदी के मार्ग में एक द्रोणी में पानी भर जाने से बन जाती है। हनुमानगढ़ ज़िला एक बहुत ही शुष्क क्षेत्र है और कहा जाता है कि यह मौसमी सरोवर इस ज़िले की इकलौती झील है। सन् 1398-99 ई. में मध्य एशिया के आक्रमणकारी तैमूर लंग ने हनुमानगढ़ के भटनेर क़िले पर अधिकार करने के पश्चात् यहाँ कुछ देर के लिए आराम किया था।

 

राजस्थान की खारे पानी की झीलें-

1. साँभर झील -

यह राजस्थान की सबसे बड़ी झील है। यहाँ उत्पादित नमक उत्तम किस्म का होता है। यहाँ राज्य के कुल उत्पादन का 80 प्रतिशत नमक उत्पन्न किया जाता है। इसका अपवाह क्षेत्र लगभग 500 वर्ग किमी में फैला है जिसमे रूपनगढ़, खारी व खंडेला आदि नदियाँ आकर मिलती है। यह झील दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर लगभग 32 किमी लंबी तथा 3 से 12 किमी तक चौड़ी है। ग्रीष्मकाल में वाष्पीकरण की तीव्र दर से होने के कारण इसका आकार बहुत कम रह जाता है। इस झील में प्रतिवर्ग किमी क्षेत्र में 6000 टन नमक होने का अनुमान है। इसका क्षेत्रफल लगभग 140 वर्ग किमी है। इसके पानी से नमक बनाया जाता है। यहां नमक उत्पादन सांभर साल्ट्स लिमिटेड द्वारा किया जाता है जिसकी स्थापना 1964 में की गई थी। यहां सोडियम सल्फेट संयंत्र स्थापित किया गया है जिससे 50 टन सोडियम सल्फेट प्रतिदिन बनाया जाता है। यह झील जयपुर व नागौर जिले की सीमा पर स्थित है तथा यह जयपुर की फुलेरा तहसील में जयपुर से लगभग 60 किमी दूर है।

2. डीडवाना झील -

यह नागौर जिले के डीडवाना नगर के समीप स्थित है। यह 10 वर्ग किमी में फैली है। इससे राजस्थान स्टेट साल्ट्स वर्क्स द्वारा नमक तैयार किया जाता है। यहाँ नमक का उत्पादन निजी इकाइयों द्वारा भी किया जाता है जिन्हें 'देवल' कहते हैं। इनमें नमक पुराने तरीके से बनाया जाता है। डीडवाना से 8 किमी दूर राजस्थान स्टेट केमिकल वर्क्स डीडवाना, जिसकी स्थापना 1964 में की गई थी, द्वारा स्थापित सोडियम सल्फेट का संयंत्र भी है। यह क्षेत्र नमक उत्पादन की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ उत्पादित नमक की लागत कम आती है किन्तु यहाँ नमक में सोडियम सल्फेट की मात्रा अधिक होने की वजह से अखाद्य नमक का उत्पादन अधिक होता है जिसको बेचने में कठिनाई आती है।

3. पचपद्रा झील -

बाड़मेर जिले में पचपद्रा नगर के निकट यह स्थित है। यह लगभग 83 वर्ग किमी क्षेत्र मेँ स्थित है। यह वर्षा के जल पर निर्भर नहीं है बल्कि नियतवाही जल स्रोतों से इसे पर्याप्त खारा जल मिलता रहता है। यहाँ का नमक समुद्री नमक के समान होता है। इससे तैयार नमक में 98 प्रतिशत तक सोडियम क्लोराइड की मात्रा होती है। यहाँ खखाण जाति के लोग नमक बनाने का कार्य करते हैं। यहाँ राजस्थान स्टेट साल्ट्स वर्क्स, पचपद्रा (स्थापना- 1960) द्वारा खाद्य, अखाद्य, औद्योगिक व आयोडिन युक्त नमक तैयार किया जाता है।

4. लूणकरणसर झील -

यह बीकानेर के उत्तर-पूर्व में लगभग 80 किमी दूर स्थित है। इसके पानी में लवणीयता की कमी है अत: बहुत थोड़ी मात्रा में नमक बनाया जाता है। यह झील 6 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली है।

5. पोकरण झील - यह जैसलमेर जिले में स्थित है। इससे उत्तम किस्म का नमक प्रतिवर्ष लगभग 6000 टन बनाया जाता है।

6. फलौदी झील -

यह जोधपुर जिले में स्थित है जिससे प्रतिवर्ष लगभग एक लाख टन नमक तैयार किया जाता है।

7. कुचामन झील -

नागौर जिले के कुचामन सिटी के परिक्षेत्र में स्थित इस झील से लगभग 12000 टन वार्षिक नमक बनाया जाता है।

8. सुजानगढ़ झील -

यह झील चुरु जिले में है तथा इससे लगभग 24000 टन वार्षिक नमक बनाया जाता है। कुचामन, फलौदी व सुजानगढ़ में कुओं से भी नमक बनाया जाता है।

9. जाब्दीनगर -

सांभर के निकट नागौर जिले में यह एक नया नमक स्रोत विकसित किया जा रहा है।

जल-संसाधनों के बारे और अधिक जानने के लिए नीचे क्लिक करें-

राजस्थान की प्रमुख सिंचाई व नदी घाटी परियोजनाएँ

Major-Dams-of-Rajasthan

माही बजाज सागर परियोजना 

राजस्थान की जिलानुसार झीले व बाँध 

जयसमंद की प्रमुख विशेषताएँ

 

Comments

  1. बहुत बढ़िया आलेख है राजस्थान की समृद्ध जल संस्कृति को समझने के लिए।इसे मैं अपनी फेसबुक वाल पर शेयर करना चाहूँगा।लेखक का परिचय भी होना चाहिए

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  2. Thanks Siddharth Ji. Please share it . I am the author of article..

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  3. सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार..

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Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली