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राजस्‍व मण्‍डल राजस्‍थान का इतिहास-

पृष्ठभूमि- राजस्थान में प्राचीन काल से ही भूमि, कृषि तथा इनके प्रशासन का प्रचलन रहा है। भारत में सदा से ही कृषि-भूमि और कृषक ही सर्वोपरि रहा है। यही कारण है कि भारत में विभिन्न शासकों ने भू-राजस्व व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक और कानूनी प्रावधान बनाये थे। अंग्रेजों ने भी ईस्‍ट इंडिया कम्‍पनी के माध्‍यम से भारतवर्ष में अपने शासन की जड़ें जमाने के लिए एक प्रभावी प्रशासनिक संस्‍था के रूप में राजस्‍व-मण्‍डल (Board of Revenue ) की स्‍थापना की, जिसका अनुसरण सभी देशी रियासतों ने किसी न किसी रूप में किया। अंग्रेजों द्वारा स्थापित राजस्‍व मण्‍डल के भू-राजस्‍व प्रशासन की विशेषताएं इसे मुगलों के भू-राजस्‍व प्रशासन से पृथक करती है। इसमें मुख्य अंतर यह था कि अंग्रेजी भू-राजस्व प्रशासन विभिन्‍न्‍ा मण्‍डलों (Boards ) के माध्‍यम से ही संचालित होता था। यह उनका अदभुत एवं सफल प्रशासनिक प्रयोग था। इसकी सफलता को देखते हुए ही स्‍वतंत्रता-प्राप्ति एवं रियासती एकीकरण के बाद भी इसे बनाए रखना आवश्‍यक समझा गया। पिण्‍डारी युद्वों तथा मराठों के आक्रमणों से बचने के लिए राजपूताना की विभिन्न देशी

राजस्थान राजस्‍व मंडल

स्वाधीनता से पूर्व की राजस्व बंदोबस्त से संबंधित विभिन्न समस्‍याओं को हल करने के लिए तथा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए 1949 में राजस्‍थान में शामिल होने वाली रियासतों के उच्‍च बन्‍दोबस्‍त एवं भू-अभिलेख विभाग का पुनर्गठन एवं एकीकरण किया गया। उस समय इस विभाग का एक ही अधिकारी था जो कई रूपों में कार्य करता था, यथा- > बन्‍दोबस्‍त आयुक्‍त, > भू-अभिलेख निदेशक, > राजस्‍थान का पंजीयन महानिरीक्षक एवं > मुद्रा अधीक्षक आदि। एक वर्ष बाद, मार्च 1950 में भू-अभिलेख, पंजीयन एवं मुद्रा विभागों को बन्‍दोबस्‍त विभाग से पृथक कर दिया गया। भू-अभिलेख विभाग के निदेशक को ही पदेन मुद्रा एवं पंजीयन महानिरीक्षक बना दिया गया। भू-अभिलेख निदेशक की सहायता के लिए तीन सहायक भू अभिलेख निदेशक नियुक्‍त किए गए। इन सभी निकाय गठित किया गया। इसे राजस्‍व मंडल कहा गया। इसका कार्य राजस्‍व वादों का भय एवं पक्षपात रहित होकर उच्‍चतम स्‍तर पर निर्णय करना था। संयुक्‍त राजस्‍थान राज्‍य के निर्माण के पश्‍चात महामहिम राजप्रमुख ने 7 अप्रैल 1949 को एक अध्‍यादेश द्वारा राजस्‍थान के राजस्‍व मंडल { Board