Skip to main content

Maulana Abul Kalam Azad Arabic Persian Research Institute मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान, टोंक

मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान, टोंक -

भारत के राजस्थान राज्य के ज़िला टोंक में स्थित 'मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, अरबी फ़ारसी शोध संस्थान', (Maulana Abul Kalam Azad Arabic Persian Research Institute- MAAPRI) राजस्थान सरकार द्वारा स्थापित एक अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्थान है, जो राजस्थान की राजधानी जयपुर से दक्षिण दिशा में 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। संस्थान के परिसर का क्षेत्रफल 1,26,000 वर्गफीट है। इसके 7,173 वर्गफीट में मुख्य भवन एवं 6315  वर्गफीट में स्कालर्स गेस्ट हाउस बना हुआ है, जिसमें पूरी तरह सुसज्जित 8 कमरों के साथ डाईनिंग हाल, विजीटिंग हाल आदि की भी व्यवस्था है। 

संस्थान में संधारित इल्मी धरोहर में 8053 दुर्लभ हस्तलिंखित ग्रन्थ, 27785 मुद्रित पुस्तकें, 10239 क़दीम रसाइल, 674 फ़रामीन एवं भूतपूर्व रियासत टोंक के महकमा शरीअत के 65000 फैसलों की पत्रावलियों के अतिरिक्त हज़ारों अनमोल अभिलेख, प्रमाण-पत्र्, तुग़रे और वसलियां उपलब्ध हैं। यह साहित्यिक धरोहर पांचवी सदी हिजरी से आज तक के दौर के लेखन, प्रकाशन और उनके अनुवादों पर आधारित हैं, जिनमें से हर एक अपना विशेष महत्व रखता है। 

इनमें क़ुरआन, क़िरअत, फ़िक़ह, तसव्वुफ़, फ़लसफ़ा, मन्तिक़, सीरत, तारीख़, तिब, नुजूम और अदब आदि विषयों के अतिरिक्त बुज़ुर्गाने दीन के मलफूज़ात भी शामिल हैं। यहाँ विभिन्न विषयों जैसे सूफिज्म, उर्दू, अरबी एवं फारसी साहित्य, केटेलाग्स, यूनानी चिकित्सा, स्वानेह हयात (आत्म कथा), मध्य कालीन इतिहास, स्वतन्त्रता अभियान पर साहित्य, ख़त्ताती, रीमिया, कीमिया, सीमिया, दर्शन, तर्कशास्त्र, विधि शास्त्र, मन्तिक़, विज्ञान एवं शिकार आदि विषयों पर असीम साहित्य उपलब्ध है।
  •  बुनियादी तौर पर इस संस्थान की किताबों के जखीरे को टोंक रियासत के तीसरे शासक नवाब मोहम्मद अली खां ने जमा किया। उन्हें तात्कालिक अंग्रेज सरकार ने बनारस भेज दिया था। नवाब मोहम्मद अली खां साहित्य के संग्रह एवं इसके अध्ययन में अत्यधिक रूचि रखते थे एवं मशरिक़ी उलूम के विद्वान थे जिसके परिणाम स्वरूप वहां निवास के दौरान उन्होंने अपने निजि आर्थिक साधनों से मशरिक़ी उलूम पर महत्वपूर्ण हस्तलिखित ग्रन्थ एकत्रित किये। यह मूल्यवान संग्रहालय जिला सईदिया पुस्तकालय, राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर के शाखा कार्यालय, टोंक से गुजरते हुए राज्य सरकार द्वारा वर्ष 1978 में सृजित एक पृथक एवं स्वतन्त्र संस्थान में स्थान्तरित हो गया। 
  • पूर्व में यह 1961 में राजस्थान ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट के टोंक जिला शाखा कार्यालय के रूप में एक एकल व्यक्ति स्टाफ साहिबजादा श्री शौकीन अली खान की अध्यक्षता में संचालित होता था।
  • यह जिला शाखा कार्यालय मुख्य रूप से टोंक की तत्कालीन रियासत द्वारा स्थापित की गई ''सईदिया लाइब्रेरी'' से प्राप्त 133 दुर्लभ पुस्तकों सहित कुल 3064 पांडुलिपियों के हस्तांतरण के साथ शुरू हुआ
  • अरबी फ़ारसी भाषा व साहित्य के विकास हेतु राज्य सरकार द्वारा दिनांक 04-12-1978 को ''निदेशालय अरबी फारसी शोध संस्थान'' की स्थापना की गई।  
  • साहिबजादा शौकत अली खान इसके संस्थापक निदेशक थे। 
  • वर्ष 1981 में इसका वर्तमान नाम ''मौलाना अबुल कलाम आज़ाद अरबी फ़ारसी शौध संस्थान, टोंक'' रखा गया। 
  • वर्ष 1983 में अलवर, जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, झालावाड़ के राजकीय पुस्तकालय एवं निजी संग्रहालयो से अरबी, फारसी, उर्दू के ग्रन्थों का ज़ख़ीरा इस निदेशालय में स्थानान्तरित किया गया। 
  • यह संस्थान अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शोध संस्थान है। जहां देश-विदेश के शोधकर्ता शोध कार्य हेतु उपस्थित होते है। यह संस्थान अपने दुर्लभ व महत्वपूर्ण साहित्य के लिये विश्व प्रसिद्ध है एवं शोधकर्ताओं के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। 
  • यहां हिस्टोरियेाग्राफी, ओरियन्टोलोजी एवं इस्लामिक स्टडीज पर अमूल्य एवं दुर्लभ सामग्री संग्रहित है जिस पर शोध, सम्पादन, सूचीकरण एंव प्रकाशन का कार्य निरन्तर जारी है।

उद्देश्य एवं लक्ष्य-

अरबी एवं फारसी में शोध व अध्ययन को प्रेरित करने तथा इसके उत्थान एंव उन्नयन के लिये यह संस्थान निम्न उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की ओर अग्रसर है-
  1. राजस्थान में उपलब्ध या राजस्थान से संबंधित अरबी, फारसी के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता के मूल स्रोतों का एकत्रीकरण, संरक्षण एवं परिरक्षण ।
  2. अरबी, फारसी शोध एवं अध्ययन का उत्थान, उन्नयन एवं विकास जो प्रारम्भिक रूप में उपरोक्त वर्णित सामग्री पर आधारित हो। इस प्रकार विद्वानों को सुविधाएं एवं सुलभताएं प्रदान करना।
  3. मूल स्रोतों का सम्पादन, अनुवाद, प्रकाशन और डिसाईफरिंग कार्य करवाना।
  4. संस्थान के उद्देश्यों की पूर्ति एवं सम्पादन, डिसाईफरिंग तथा शोध के मूल स्रोतों के अनुवाद आदि में सहयोग हेतु दक्ष विद्वानों की सेवाएं प्राप्त करना।
  5. संस्थान के अतिरिक्त अन्य संगठनों के पास शोध की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण अरबी, फारसी की उपलब्ध मूल सामग्री का डाक्यूमेन्टेशन करना तथा ऐसे कार्यो में इन संस्थाओं को सुविधाएं एवं सहयोग प्रदान करना।
  6. अरबी, फारसी अध्ययन में शोध करने के तरीकों, रिसर्च मेथोडोलोजी की तकनीकी कला को उत्साहित एवं स्थापित करना एवं इस बाबत सुविधाएं जुटाना।
  7. उपेक्षित प्राच्य कलाओं यथा कैलीग्राफी और पैलियोग्राफी आदि को प्रारम्भ करना और उनके अध्ययन को उत्साहित करना।
  8. पारितोषिक, स्कालरशिप एवं फैलोशिप आदि स्कीमों को प्रारम्भ करना और प्राच्य विद्या के क्षेत्र में शोध तथा उच्च अध्ययन हेतु अवार्ड्स प्रदान करना।
  9. संस्थान के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु समस्त आवश्यक साधन उपलब्ध कराना और उनका विकास तथा सेमिनार, सिम्पोजियम, चर्चा, कांफ्रेन्स, कार्यशाला, प्रदर्शनियां और प्रसारण भाषण आदि का आयोजन और शोध पत्रिका प्रकाशित करना।

संस्थान में संचालित अनुभाग-.

संस्थान में विभिन्न अनुभाग संचालित किये जा रहे है, जैसे - 
  • खजीनतुल मख्तूतात (हस्तलिखित ग्रन्थ), 
  • बेतुलहिकमत (रियासतकालीन रिकार्ड), 
  • रेफरेन्स लाईब्रेरी, 
  • केटलॉगिंग शाखा, 
  • डिजिटाईजेशन अनुभाग, 
  • प्रकाशन शाखा, 
  • कैलीग्राफी शाखा आदि

संस्थान द्वारा कराये जा रहे मुख्य कार्य -


  • केटेलॉगिंग, कलेण्ड्रिंग, पुस्तकों का आलोचनात्मक सम्पादन, अनुवाद, नक़ल नवीसी, प्रकाशन, पुस्तक संकलन आदि मुख्य कार्य। पुस्तकों एवं अन्य पृष्ठों का ट्रांस्क्रिप्शन कार्य तथा कदीम दस्तावेज़ात का डिसाईफरिंग कार्य।
  • मुद्रित पुस्तकों एवं 300 हस्तलिखित ग्रन्थों का वर्गीकरण एवं सूचीकरण।
  • हस्तलिखित ग्रन्थों के केटेलॉगिंग कार्ड तैयार करना। पृष्ठों का अनुवाद कार्य। पत्राचार तथा ई-मेल द्वारा भी शोध संबंधी जानकारियाँ उपलब्ध कराना। पृष्ठों का सम्पादन कार्य तथा पृष्ठों का कैलीग्राफी कार्य तथा तुगरे बनाना।
  • विभिन्न अवसरों पर प्रदर्शनियों का आयोजन।
  • ग्रन्थों काफयूमीगेशन कार्य।
  • टोंक, जयपुर, उदयपुर, अहमदाबाद, ऊना (गुजरात) तथा श्रीनगर (कश्मीर) आदि स्थानों पर सर्वेक्षण कार्य किया गया, जिसके द्वारा मुद्रित पुस्तकें, हस्त लिखित ग्रन्थ, आर्टिफेक्ट, रसाइल (मैगजीन) अनुदानस्वरूप प्राप्त हुए।
  • संस्थान में रखे हुए बहुमूल्य शजरा शरीफ एवं फरमाने शाही का तकनीकी रूप से प्रिजर्वेशन एवं कन्जरवेशन कार्य।
  • संगोष्ठी एवं प्रदर्शनी का आयोजन एवं हिन्दी कैलीग्राफी पेनल्स का प्रदर्शन तथा कैलीग्राफी प्रतियोगिता एवं हिन्दी टाईपिंग प्रतियोगिता का आयोजन।
  • प्रिजर्वेशन एवं कन्जर्वेशन पर एक्सटेन्शन लेक्चर्स का आयोजन।
  • दुनिया के सबसे बडे कुरान मजीद का प्रदर्शन।
  • नवाब मोहम्मद अली खां फैलोशिप स्कीम एवं नवाब अमीरूददोला स्कालरशिप स्कीम के अन्तर्गत शोधार्थियो स्कोलरशिप देना।
  • मैन्यूस्क्रिप्टोलोजी की कक्षाओं का सफल संचालन, इसमें 10 छात्र/छात्राओं को प्रवेश दिया जाता है एवं प्रत्येक को 500 रूपये प्रति माह स्कालरशिप दी जाती है।
  • कौमी काउंसिल बराए फरौग उर्दू जबान (नेशनल कोन्सिल फॅार प्रोमोशन आफ उर्दू लेंगवेज), मानव संसाधन विकास मंत्रालय,शिक्षा विभाग, भारत सरकार के सौजन्य से एक वर्षीय कंप्यूटर डिप्लोमा कोर्स का सफल संचालन लगातार किया जा रहा है।
  • कौमी काउन्सिल बराए फरौग उर्दू जबान (नेशनल कोन्सिल फॅार प्रोमोशन आफ उर्दू लेंगवेज), मानव संसाधन विकास मंत्रालय, नई दिल्ली के सौजन्य से कैलीग्राफ़ी व ग्राफिक डिजाइनिंग कोर्स का संचालन किया जा रहा है जिसमें दो पारियों में 50 प्रशिक्षणार्थी प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।
  • विभाग के ऐतिहासिक दुर्लभ हस्त लिखित ग्रन्थो/ पुस्तकों एंव शराशरीफ़ के रिकार्ड के Digitalization कार्य।

संस्थान की उर्दू की कुछ दुर्लभ पांडुलिपियाँ -

  • तारिख-ए-ग़रीबी (वर्सीफ़ाइड)
  • दीवान-ए-मिर्ज़ा अकबर अली बेग 'गुल ’(मीर तकी मीर का शिष्य) - (कविता)
  • क़िसाह-ए-रंगीन गुफ़तार (लेखक-अज़मतुल्लाह नियाज़) (गद्य)
  • बैरम नामा (लेखक- एम उमर फ़सीह) (गद्य)
  • कुर्रत-उल-उयून (लेखक- नवाब मोहम्मद अली खान) (गद्य)
  • दीवान-ए-आइश (शेख निज़ामुद्दीन) (कविता)
  • तारिख-ए-मुल्हिम (लेखक - मौलाना अतीशमुद्दीन- 'शौकत ’) (वर्सीफ़ाइड)


संपर्क सूत्र-

डॉ. सौलत अली खान
निदेशक,
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद अरबी फारसी शोध संस्थान,
टोंक, राजस्थान (INDIA) - 304 001
फोन नंबर: 0091-1432-247389 (कार्यालय), 0091-1432-248471 (फैक्स)
मोबाइल नंबर: 0091-9667489786
ई-मेल: maapri-rj@nic.in

Comments

Popular posts from this blog

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

राजपूताना मध्य भारत सभा -

राजपूताना मध्य भारत सभा - इस सभा का कार्यालय अजमेर में था। इसकी स्थापना 1918 ई. को दिल्ली कांग्रेस अधिवेशन के समय चाँदनी चौक के मारवाड़ी पुस्तकालय में की गई थी। यही इसका पहला अधिवेशन कहलाता है। इसका प्रथम अधिवेशन महामहोपाध्याय पंडित गिरधर शर्मा की अध्यक्षता में आयोजित किया गया था। इस संस्था का मुख्यालय कानपुर रखा गया, जो उत्तरी भारत में मारवाड़ी पूंजीपतियों और मजदूरों का सबसे बड़ा केन्द्र था।  देशी राज्यों की प्रजा का यह प्रथम राजनैतिक संगठन था। इसकी स्थापना में प्रमुख योगदान गणेश शंकर विद्यार्थी, विजयसिंह पथिक, जमनालाल बजाज, चांदकरण शारदा, गिरधर शर्मा, स्वामी नरसिंह देव सरस्वती आदि के प्रयत्नों का था।  राजपूताना मध्य भारत सभा का अध्यक्ष सेठ जमनालाल बजाज को तथा उपाध्यक्ष गणेश शंकर विद्यार्थी को बनाया गया। इस संस्था के माध्यम से जनता को जागीरदारी शोषण से मुक्ति दिलाने, रियासतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना करने तथा जनता में राजनैतिक जागृति लाने का प्रयास किया गया।  इस कार्य में संस्था के साप्ताहिक समाचार पत्र ''राजस्थान केसरी'' व सक्रिय कार्यकर्ताओं ...

THE SCHEDULED AREAS Villages of Udaipur district - अनुसूचित क्षेत्र में उदयपुर जिले के गाँव

अनुसूचित क्षेत्र में उदयपुर जिले के गाँव- अनुसूचित क्षेत्र में सम्मिलित उदयपुर जिले की 8 पूर्ण तहसीलें एवं तहसील गिर्वा के 252, तहसील वल्लभनगर के 22 व तहसील मावली के 4 गांव सम्मिलित किए गए हैं। ये निम्नानुसार है- 1. उदयपुर जिले की 8 पूर्ण तहसीलें (कोटड़ा, झाडोल, सराड़ा, लसाड़िया, सलूम्बर, खेरवाड़ा, ऋषभदेव, गोगुन्दा) - 2. गिर्वा तहसील (आंशिक) के 252 गाँव - S. No. GP Name Village Name Village Code Total Population Total Population ST % of S.T. Pop to Total Pop 1 AMBERI AMBERI 106411 3394 1839 54.18 2 AMBERI BHEELON KA BEDLA 106413 589 573 97.28 3 AMBERI OTON KA GURHA 106426 269 36 13.38 4 AMBERI PRATAPPURA 106427 922 565 61.28 5 CHEERWA CHEERWA 106408 1271 0 0.00 6 CHEERWA KARELON KA GURHA 106410 568 402 70.77 7 CHEERWA MOHANPURA 106407 335 313 93.43 8 CHEERWA SARE 106406 2352 1513 64.33 9 CHEERWA SHIVPURI 106409 640 596 93.13 10 DHAR BADANGA 106519 1243 1243 100.00 11 DHAR BANADIYA 106...