Skip to main content

Monsoon and other winds in India | भारत में मानसून एवं अन्य पवने

भारत में मानसून Monsoon and other winds in India-

हाइड्रोलोजी में मानसून का व्यापक अर्थ है- ''कोई भी ऐसी पवन जो किसी क्षेत्र में किसी ऋतु-विशेष में ही अधिकांश वर्षा कराती है।'' 
मानसून हवाओं का अर्थ अधिकांश समय वर्षा कराने से नहीं लिया जाना चाहिये। इस परिभाषा की दृष्टि से संसार के अन्य क्षेत्र, जैसे- उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, उप-सहारा अफ़्रीका, आस्ट्रेलिया एवं पूर्वी एशिया को भी मानसून क्षेत्र की श्रेणी में रखा जा सकता है।  मानसून पूरी तरह से हवाओं के बहाव पर निर्भर करता है। आम हवाएं जब अपनी दिशा बदल लेती हैं तब मानसून आता है।.जब ये हवाएं ठंडे से गर्म क्षेत्रों की तरफ प्रवाहित होती हैं तो उनमें नमी की मात्रा बढ़ जाती है, जिसके कारण वर्षा होती है। मानसून से अभिप्राय ऐसी जलवायु से है, जिसमें ऋतु के अनुसार पवनों की दिशा में उत्क्रमण हो जाता है। भारत की जलवायु उष्ण मानसूनी है, जो दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी एशिया में पाई जाती है।
अंग्रेज़ी शब्द मानसून पुर्तगाली शब्द 'मॉन्सैओ' से निकला है, जिसका मूल उद्गम अरबी शब्द मॉवसिम (मौसम) से आया है।


भारत में मानसून का कारण (Causes of monsoon in India)-

भारत में वर्षा ऋतु का काल जून-सितंबर के मध्य रहता है। जून माह में सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर सीधी पड़ रही होती हैं, जिसके कारण पश्चिमी मैदानी भागों में पवन गर्म होकर ऊपर उठ जाती है तथा कम दबाव का क्षेत्र बन जाता है। यह कम दबाव का क्षेत्र इतना प्रबल होता है कि इस कम दबाव क्षेत्र को भरने के लिए दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनें भूमध्य रेखा पार कर भारतीय उपमहाद्वीप की ओर बढ़ती हैं तो पृथ्वी की गति के कारण इनकी दिशा में परिवर्तन हो जाता है तथा ये दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहने लगती हैं। इसी कारण जून-सितम्बर के मध्य होने वाली वर्षा को ''दक्षिण-पश्चिम मानसून वर्षा Southwest Monsoon Rain'' कहते हैं। मानसून पवने व्यापारिक पवनों के विपरीत परिवर्तनशील होती हैं। 
दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनों का उद्गम स्थल समुद्र में होता हैं। जब ये पवनें भारतीय उपमाहद्वीप में प्रवेश करती हैं तो अरब सागर व बंगाल की खाड़ी से नमी प्राप्त कर लेती है। मानसूनी पवनें भारतीय सागरों में मई माह के अंत में प्रवेश करती है।


दक्षिण-पश्चिम मानसून Southwest Monsoon सर्वप्रथम लगभग 1 जून के आसपास केरल तट पर वर्षा करता है तथा इसके बाद महीने भर में पूरे भारत में वर्षा होने लगती है, जबकि अरब सागर से आने वाले मानसून उत्तर की ओर बढ़ते हुए 10 जून तक बंबई पहुंच जाता हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप की स्थलाकृति के कारण दक्षिण-पश्चिम मानसून निम्नलिखित दो शाखाओं में विभक्त हो जाता है –
  • अरब सागर शाखा,
  • बंगाल की खाड़ी शाखा।

मानसून की अरब सागर शाखा Arabian Sea branch of monsoon-

यह शाखा भारत के पश्चिमी तट व पश्चिमी घाट महाराष्ट्र, गुजरात व मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में वर्षा करती है। पंजाब में आकर यह मानसून बंगाल की खाड़ी से आने वाले मानसून की शाखा से मिल जाता है। यह पश्चिम घाटों पर भारी वर्षा करती है, परंतु दक्कन के पश्चिमी घाट के दृष्टि-छाया प्रदेश में होने के कारण इन क्षेत्रों में अल्प वर्षा हो पाती है। इसी प्रकार गुजरात व राजस्थान में पर्वत अवरोधों के अभाव के कारण वर्षा कम हो पाती है।

अधिक शक्तिशाली है अरब सागर मानसून Arabian monsoon is more powerful -

दक्षिण-पश्चिम मानसून की दोनों शाखाओं में अरब सागर शाखा अधिक शक्तिशाली है और यह शाखा बंगाल की खाड़ी की शाखा की अपेक्षा लगभग तीन गुना अधिक वर्षा करती है, जिसके कारण यह हैं कि, बंगाल की खाड़ी मानसून शाखा का एक ही भाग भारत में प्रवेश करता है जबकि इसका दूसरा भाग म्यांमार व थाईलैण्ड की ओर मुड़ जाता है।
अरब सागर मानसून की उत्तरी शाखा, गुजरात, कच्छ की खाड़ी व राजस्थान से प्रवेश करती है। यहाँ पर्वतीय अवरोध न होने के कारण इन क्षेत्रों में यह शाखा ही वर्षा करती है तथा सीधे उत्तर-पश्चिम की पर्वतमालाओं से टकराकर जम्मू-कश्मीर व हिमाचल प्रदेश में भारी वर्षा करती है। मैदानी भागों की ओर लौटते समय नमी की मात्रा कम होती है, अतः लौटती पवनों के द्वारा राजस्थान में अल्प वर्षा होती है। 

मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा Monsoon Branch of Bay of Bengal -

मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा उत्तर दिशा में बंगाल, बांग्लादेश व म्यांमार की ओर बढ़ती है। म्यांमार की ओर बढ़ती मानसून पवनों का एक भाग आराकान पहाड़ियों से टकराकर भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिम बंगाल व बांग्लादेश में आता है। यह शाखा हिमालय पर्वतमाला के समांतर बढ़ते हुए गंगा के मैदान में वर्षा करती हैं। हिमालय पर्वतमाला मानसूनी पवनों को पार जाने से रोकती हैं व संपूर्ण गंगा बेसिन में वर्षा होती है। उत्तर व उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ने वाली यह शाखा उत्तर-पूर्वी भारत में भारी वर्षा करती है। मेघालय में तथा गारो, खासी व जयंतिया पहाड़ियों की पनुमा स्थाकृति की रचना करती है, जिसके कारण यहाँ अत्यधिक वर्षा होती है। विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान चेरापूंजी (वर्तमान में मासिनराम) इन्हीं पहाड़ियों में स्थित है।

शरद ऋतु व लौटता दक्षिण-पश्चिम मानसून (मानसून के निवर्तन की ऋतु) -

शरद ऋतु उष्ण बरसाती मौसम से शुष्क व शीत मौसम के मध्य संक्रमण का काल है। शरद ऋतु का आरंभ सितंबर मध्य में होता है। यह वह समय है जब दक्षिण-पश्चिम मानसून लौटता है। मानसून के पीछे हटने या लौट जाने को मानसून का निवर्तन कहा जाता है।
अक्तूबर और नवंबर के महीनों को मानसून के निवर्तन की ऋतु कहा जाता है। सितंबर के अंत में सूर्य के दक्षिणायन होने की स्थिति में गंगा के मैदान पर स्थित निम्न वायुदाब की द्रोणी भी दक्षिण की ओर खिसकना आरंभ कर देती है। इससे दक्षिण-पश्चिमी मानसून कमजोर पड़ने लगता है। मानसून सितंबर के पहले सप्ताह में पश्चिमी राजस्थान से लौटता है। इस महीने के अंत तक मानसून राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी गंगा मैदान तथा मध्यवर्ती उच्चभूमियों से लौट चुकी होती है। अक्तूबर के आरंभ में बंगाल की खाड़ी के उत्तरी भागों में स्थित हो जाता है तथा नवंबर के शुरू में यह कर्नाटक और तमिलनाडु की ओर बढ़ जाता है। दिसंबर के मध्य तक निम्न वायुदाब का वेंफद्र प्रायद्वीप से पूरी तरह से हट चुका होता है।
मानसून के निवर्तन की ऋतु में आकाश स्वच्छ हो जाता है और तापमान बढ़ने लगता है। जमीन में अभी भी नमी होती है। उच्च तापमान और आर्द्रता की दशाओं से मौसम कष्टकारी हो जाता है। आमतौर पर इसे ‘कार्तिक मास की ऊष्मा’ या ‘‘अक्टूबर हीट’’ कहा जाता है। मानसून के लौटने पर प्रारंभ में तापमान बढ़ता है, परंतु उसके उपरांत तापमान कम होने लगता है। अक्तूबर माह के उत्तरार्ध में तापमान तेजी से गिरने लगता है। तापमान में यह गिरावट उत्तरी भारत में विशेष तौर पर देखी जाती है।
मानसून के निवर्तन की ऋतु में मौसम उत्तरी भारत में सूखा होता है, जबकि प्रायद्वीप के पूर्वी भागों में वर्षा होती है। यहाँ अक्तूबर और नवंबर वर्ष के सबसे अधिक वर्षा वाले महीने होते हैं।
इस ऋतु की व्यापक वर्षा का संबंध चक्रवातीय अवदाबों के मार्गों से है, जो अंडमान समुद्र में पैदा होते हैं और दक्षिणी प्रायद्वीप के पूर्वी तट को पार करते हैं। ये उष्ण कटिबंधीय चक्रवात अत्यंत विनाशकारी होते हैं। गोदावरी, कृष्णा और अन्य नदियों के घने बसे डेल्टाई प्रदेश इन तूफानों के शिकार बनते हैं। हर साल चक्रवातों से यहाँ आपदा आती है। कुछ चक्रवातीय तूफान पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश और म्यांमार के तट से भी टकराते हैं। कोरोमंडल तट पर होने वाली अधिकांश वर्षा इन्हीं अवदाबों और चक्रवातों से प्राप्त होती है। ऐसे चक्रवातीय तूपफान अरब सागर में कम उठते हैं।


  • तापमान में कमी का कारण यह है कि इस अवधि में सूर्य की किरणे कर्क रेखा से भमूध्य रेखा की ओर गमन कर जाती है व सितबंर में सूर्य की किरणे भूमध्य रेखा पर सीधी पड़ती है। साथ ही उत्तर भारत के मैदानों में कम दबाव का क्षेत्र इतना प्रबल नहीं रहता कि वह मानसूनी पवनों को आकर्षित कर सकें।
  • सितंबर मध्य तक मानसूनी पवनें पंजाब तक वर्षा करती हैं। मध्य अक्टूबर तक मध्य भारत में व नवंबर के आरम्भिक सप्ताहों में दक्षिण भारत तक मानसून पवनो वर्षा कर पाती हैं और इस प्रकार भारतीय उपमहाद्वीप से मानसून की विदाई नवंबर अंत तक हो जाती है। यह विदाई चरणबद्ध होती है इसीलिए इसे ‘‘लौटता दक्षिण-पश्चिम मानसून’’ या  मानसून का निवर्तन कहते है।
  •  शरद ऋतु में बंगाल की खाड़ी से चक्रवात उठते हैं जो भारत व बांग्लादेश में भयंकर तबाही मचाते हैं। चक्रवातों के कारण पूर्वी तटों पर भारी वर्षा होती है।

मानसून में विच्छेद Break in monsoon-

दक्षिण-पश्चिम मानसून काल में एक बार कुछ दिनों तक वर्षा होने के बाद यदि एक-दो या कई सप्ताह तक वर्षा न हो तो इसे मानसून विच्छेद कहा जाता है। ये विच्छेद विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न कारणों से होते हैं, जो निम्नलिखित हैं:
1. उत्तरी भारत के विशाल मैदान में मानसून का विच्छेद उष्ण कटिबंधी चक्रवातों की संख्या कम हो जाने से और अंतःउष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र की स्थिति में बदलाव आने से होता है।
2. पश्चिमी तट पर मानसून विच्छेद तब होता है जब आर्द्र पवनें तट के समानांतर बहने लगें।
3. राजस्थान में मानसून विच्छेद तब होता है, जब वायुमंडल के निम्न स्तरों पर तापमान की विलोमता वर्षा करने वाली आर्द्र पवनों को ऊपर उठने से रोक देती है।

मानसून वर्षा की विशेषताएँ Characteristics of Monsoon rainfall -

  1. दक्षिण-पश्चिमी मानसून से प्राप्त होने वाली वर्षा मौसमी है, जो जून से सितंबर के दौरान होती है।
  2. मानसून वर्षा मुख्य रूप से उच्चावच अथवा भूआकृति द्वारा नियंत्रित होती है। उदाहरण के तौर पर-पश्चिमी घाट की पवनाभिमुखी ढाल 250 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा दर्ज करती है। इसी प्रकार उत्तर-पूर्वी राज्यों में होने वाली भारी वर्षा के लिए भी वहाँ की पहाड़ियाँ और पूर्वी हिमालय जिम्मेदार है।
  3. समुद्र से बढ़ती दूरी के साथ मानसून वर्षा में घटने की प्रवृत्ति पायी जाती है। दक्षिण-पश्चिम मानसून अवधि में कोलकाता में 119 से.मी., पटना में 105 से.मी., इलाहाबाद में 76 से.मी. तथा दिल्ली में 56 से.मी. वर्षा होती है।
  4. किसी एक समय में मानसून वर्षा कुछ दिनों के आर्द्र दौरों में आती है। इन गीले दौरों में कुछ सूखे अंतराल भी आते हैं, जिन्हें विभंग या विच्छेद कहा जाता है। वर्षा के इन विच्छेदों का संबंध उन चक्रवातीय अवदाबों से है, जो बंगाल की खाड़ी के शीर्ष पर बनते हैं और मुख्य भूमि में प्रवेश कर जाते हैं। इन अवदाबों की बारंबारता और गहनता के अतिरिक्त इनके द्वारा अपनाए गए मार्ग भी वर्षा के स्थानिक विवरण को निर्धारित करते हैं।
  5. ग्रीष्मकालीन वर्षा मूसलाधार होती है, जिससे बहुत-सा पानी बह जाता है और मिट्टी का अपरदन होता है।
  6. भारत की कृषि-प्रधान अर्थव्यवस्था में मानसून का अत्यधिक महत्त्व है, क्योंकि देश में होने वाली कुल वर्षा का तीन-चौथाई भाग दक्षिण-पश्चिमी मानसून की ऋतु में प्राप्त होता है।
  7. मानसून वर्षा का स्थानिक वितरण भी असमान है, जो 12 से.मी. से 250 से.मी. से अधिक वर्षा के रूप में पाया जाता है।
  8. कई बार पूरे देश में या इसके एक भाग में वर्षा का आरंभ काफी देर से होता है।
  9. कई बार वर्षा सामान्य समय से पहले समाप्त हो जाती है। इससे खड़ी फसलों को तो नुकसान पहुँचता ही है तथा शीतकालीन फसलों को बोने में भी कठिनाई आती है।

भारत में वर्षा का वितरण Rainfall distribution in India-


भारत में औसत वार्षिक वर्षा लगभग 125 सेंटीमीटर है, लेकिन इसमें क्षेत्रीय विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। 

1. अधिक वर्षा वाले क्षेत्र -


अधिक वर्षा पश्चिमी तट, पश्चिमी घाट, उत्तर-पूर्व के उप-हिमालयी क्षेत्र तथा मेघालय की पहाड़ियों पर होती है। यहाँ वर्षा 200 सेंटीमीटर से अधिक होती है। खासी और जयंतिया पहाड़ियों के कुछ भागों में वर्षा 100 सेंटीमीटर से भी अधिक होती है। ब्रह्मपुत्र घाटी तथा निकटवर्ती पहाड़ियों पर वर्षा 200 सेंटीमीटर से भी कम होती है।

2. मध्यम वर्षा के क्षेत्र -


गुजरात के दक्षिणी भाग, पूर्वी तमिलनाडु, ओडिशा सहित उत्तर-पूर्वी प्रायद्वीप, झारखंड, बिहार, पूर्वी मध्य प्रदेश, उपहिमालय के साथ संलग्न गंगा का उत्तरी मैदान, कछार घाटी और मणिपुर में वर्षा 100 से 200 सेंटीमीटर के बीच होती है।

3. न्यून वर्षा के क्षेत्र -


पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, जम्मू व कश्मीर, पूर्वी राजस्थान, गुजरात तथा दक्कन के पठार पर वर्षा 50 से 100 सेंटीमीटर के बीच होती है।

4. अपर्याप्त वर्षा के क्षेत्र-


प्रायद्वीप के कुछ भागों विशेष रूप से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र  में, लद्दाख और पश्चिमी राजस्थान के अधिकतर भागों में 50 सेंटीमीटर से कम वर्षा होती है। हिमपात हिमालयी क्षेत्रों तक सीमित रहता है।

मानसून और भारत का आर्थिक जीवन Monsoon and India's Economic Life -

  1. मानसून वह धुरी है जिस पर समस्त भारत का जीवन-चक्र घूमता है, क्योंकि भारत की 64 प्रतिशत जनता भरण-पोषण के लिए खेती पर निर्भर करती है, जो मुख्यतः दक्षिण-पश्चिमी मानसून पर आधारित है।
  2. हिमालयी प्रदेशों के अतिरिक्त शेष भारत में वर्ष भर यथेष्ट गर्मी रहती हैए जिससे सारा साल खेती की जा सकती है।
  3. मानसून जलवायु की क्षेत्रीय विभिन्नता नाना प्रकार की फसलों को उगाने में सहायक है।
  4. वर्षा की परिवर्तनीयता देश के कुछ भागों में सूखा अथवा बाढ़ का कारण बनती है।
  5. भारत में कृषि की समृद्धि वर्षा के सही समय पर आने तथा उसके पर्याप्त वितरित होने पर निर्भर करती है। यदि वर्षा नहीं होती तो कृषि पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ सिंचाई के साधन विकसित नहीं हैं।
  6. मानसून का अचानक प्रस्फोट देश के व्यापक क्षेत्रों में मृदा अपरदन की समस्या उत्पन्न कर देता है।
  7. उत्तर भारत में शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों द्वारा होने वाली शीतकालीन वर्षा रबी की फसलों के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होती है।
  8. भारत की जलवायु की क्षेत्रीय विभिन्नता भोजन, वस्त्र और आवासों की विविधता में उजागर होती है।

अन्य प्रमुख बिंदु

ग्रीष्म ऋतु में मानसून पूर्व  की वर्षा प्राप्त होती है जो  भारत को औसत वार्षिक वर्षा का लगभग 10% होती है। विभिन्न भागो में इस वर्षा को अलग-अलग स्थानीय नाम है।

आम्र वर्षा (Mango Shower) :-

ग्रीष्म ऋतु के खत्म होते-होते पूर्व मानसून बौछारें पड़ती हैं, जो केरल में यह एक आम बात है। स्थानीय तौर पर इस तूफानी वर्षा को आम्र वर्षा कहा जाता है, क्योंकि यह आमों को जल्दी पकने में सहायता देती हैं। कर्नाटक में इसे काॅफी वर्षा (Coffee shower) एवं चेरी ब्लाॅसम कहा जाता है।

फूलों वाली बौछार Flower shower-

इस वर्षा से केरल व निकटवर्ती कहवा उत्पादक क्षेत्रों में कहवा के फूल खिलने लगते हैं।

काल बैसाखी Kal Baishakhi:-

असम और पश्चिम बंगाल में बैसाख के महीने में शाम को चलने वाली ये भयंकर व विनाशकारी वर्षायुक्त पवनें हैं। इनकी कुख्यात प्रकृति का अंदाजा इनके स्थानीय नाम काल बैसाखी Kal Baishakhi से लगाया जा सकता है, जिसका अर्थ है- बैसाख के महीने में आने वाली तबाही। चाय, पटसन व चावल के लिए ये पवने अच्छी हैं। असम में इन तूफानों को ‘बारदोलेली छीड़ा’ अथवा ‘चाय वर्षा’ (Tea Shower) कहा जाता है।

लू (LOO) :-

राजस्थान के रेगिस्तानी, मैदानी व मैदानी इलाकों, उत्तरी मैदान में पंजाब से लेकर बिहार तक चलने वाली ये शुष्क, गर्म व पीड़ादायक पवनें हैं। दिल्ली और पटना के बीच इनकी तीव्रता अधिक होती है।

एल-निनो और भारतीय मानसून -

एल-निनो एक जटिल मौसम तंत्र है, जो हर पाँच या दस साल बाद प्रकट होता रहता है। इस के कारण संसार के विभिन्न भागों में सूखा, बाढ़ और मौसम की चरम अवस्थाएँ आती हैं।
इस तंत्र में महासागरीय और वायुमंडलीय परिघटनाएँ शामिल होती हैं। पूर्वी प्रशांत महासागर में, यह पेरू के तट के निकट उष्ण समुद्री धारा के रूप में प्रकट होता है। इससे भारत सहित अनेक स्थानों का मौसम प्रभावित होता है। एल-निनो भूमध्यरेखीय उष्ण समुद्री धारा का विस्तार मात्र है, जो अस्थायी रूप से ठंडी पेरूवियन अथवा हम्बोल्ट धारा पर प्रतिस्थापित हो जाती है। यह धारा पेरू तट के जल का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा देती है। इसके निम्नलिखित परिणाम होते हैं ।
1. भूमध्यरेखीय वायुमंडलीय परिसंचरण में विकृति
2. समुद्री जल के वाष्पन में अनियमितता
3. प्लवक की मात्रा में कमी, जिससे समुद्र में मछलियों की संख्या का घट जाना। एल-निनो का शाब्दिक अर्थ ‘बालक ईसा’ है, क्योंकि यह धारा दिसंबर के महीने में क्रिसमस के आस-पास नजर आती है। पेरू (दक्षिणी गोलार्द्ध) में दिसंबर गर्मी का महीना होता है।
भारत में मानसून की लंबी अवधि के पूर्वानुमान के लिए एल-निनो का उपयोग होता है। सन् 1990-1991 में एल-निनो का प्रचंड रूप देखने को मिला था। इसके कारण देश के अधिकतर भागों में मानसून के आगमन में 5 से 12 दिनों की देरी हो गई थी।


Comments

Popular posts from this blog

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

THE SCHEDULED AREAS Villages of Udaipur district - अनुसूचित क्षेत्र में उदयपुर जिले के गाँव

अनुसूचित क्षेत्र में उदयपुर जिले के गाँव- अनुसूचित क्षेत्र में सम्मिलित उदयपुर जिले की 8 पूर्ण तहसीलें एवं तहसील गिर्वा के 252, तहसील वल्लभनगर के 22 व तहसील मावली के 4 गांव सम्मिलित किए गए हैं। ये निम्नानुसार है- 1. उदयपुर जिले की 8 पूर्ण तहसीलें (कोटड़ा, झाडोल, सराड़ा, लसाड़िया, सलूम्बर, खेरवाड़ा, ऋषभदेव, गोगुन्दा) - 2. गिर्वा तहसील (आंशिक) के 252 गाँव - S. No. GP Name Village Name Village Code Total Population Total Population ST % of S.T. Pop to Total Pop 1 AMBERI AMBERI 106411 3394 1839 54.18 2 AMBERI BHEELON KA BEDLA 106413 589 573 97.28 3 AMBERI OTON KA GURHA 106426 269 36 13.38 4 AMBERI PRATAPPURA 106427 922 565 61.28 5 CHEERWA CHEERWA 106408 1271 0 0.00 6 CHEERWA KARELON KA GURHA 106410 568 402 70.77 7 CHEERWA MOHANPURA 106407 335 313 93.43 8 CHEERWA SARE 106406 2352 1513 64.33 9 CHEERWA SHIVPURI 106409 640 596 93.13 10 DHAR BADANGA 106519 1243 1243 100.00 11 DHAR BANADIYA 106...

Scheduled Areas of State of Rajasthan - राजस्थान के अनुसूचित क्षेत्र का विवरण

राजस्थान के अनुसूचित क्षेत्र का विवरण (जनगणना 2011 के अनुसार)-   अधिसूचना 19 मई 2018 के अनुसार राजस्थान के दक्षिण पूर्ण में स्थित 8 जिलों की 31 तहसीलों को मिलाकर अनुसूचित क्षेत्र निर्मित किया गया है, जिसमें जनजातियों का सघन आवास है। 2011 की जनगणना अनुसार इस अनुसूचित क्षेत्र की जनसंख्या 64.63 लाख है, जिसमें जनजाति जनसंख्या 45.51 लाख है। जो इस क्षेत्र की जनसंख्या का 70.42 प्रतिशत हैं। इस क्षेत्र में आवासित जनजातियों में भील, मीणा, गरासिया व डामोर प्रमुख है। सहरिया आदिम जाति क्षेत्र- राज्य की एक मात्र आदिम जाति सहरिया है जो बांरा जिले की किशनगंज एवं शाहबाद तहसीलों में निवास करती है। उक्त दोनों ही तहसीलों के क्षेत्रों को सहरिया क्षेत्र में सम्मिलित किया जाकर सहरिया वर्ग के विकास के लिये सहरिया विकास समिति का गठन किया गया है। क्षेत्र की कुल जनसंख्या 2.73 लाख है जिसमें से सहरिया क्षेत्र की अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 1.02 लाख है जो क्षेत्र की कुल जनसंख्या का 37.44 प्रतिशत है।  अनुसूचित क्षेत्र में राजकीय सेवाओं में आरक्षण सम्बन्धित प्रावधान-  कार्मिक (क-...