Skip to main content

आत्मा- समग्र कृषि विकास की राष्ट्रीय योजना



समग्र कृषि विकास की राष्ट्रीय योजना-आत्मा
भारत को एक कृषि प्रधान देश कहा जाता है। कृषि को भारतीय अर्थ्रव्यवस्था की रीढ़ कहते है। देश के लगभग 49 प्रतिशत व्यक्ति कृषि व्यवसाय में संलग्न हैं। संस्कृत में कहा गया है - कृषिरेव महालक्ष्मीः अर्थात कृषि ही सबसे बड़ी लक्ष्मी है। भारत विकासशील देश है। कृषि को लाभकारी व्यवसाय बनाने के लिए भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा तरह-तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिनमें कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी (Agricultural Technology Management Agency) अर्थात् आत्मा (ATMA) ऐसी योजना है, जो देश के 639 जिलों में संचालित की जा रही  है। आत्मा ऐसी केन्द्र प्रवर्तित योजना है, जिसे वर्ष 2014-15 से राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रौद्योगिकी मिशन के सब मिशन एस.एम.ए.ई. में समाहित किया गया है। इसे सपोर्ट टू स्टेट एक्सटेंशन प्रोग्राम्स फॉर एक्सटेंशन रिफॉर्म्स भी कहा जाता है।
आत्मा क्या है ?
आत्मा एक प्रमुख भागीदारी की संस्था है जो कृषि के विकास को स्थायित्व प्रदान करने संबंधी कृषि की गतिविधियों में संलग्न है। यह कृषि प्रसार एवं अनुसंधान की गतिविधियों के एकीकरण के साथ ही सार्वजनिक कृषि प्रोद्योगिकी व्यवस्था प्रबंधन के विकेन्द्रीकरण की दिशा में किया जाने वाला एक सार्थक प्रयास है। यह एक स्वायत पंजीकृत संस्था है, जो जिला स्तर पर प्रौधोगिकी प्रसार के लिए उतरदायी है। यह संस्था सीधे निधि प्राप्त करने, अनुबंध करार एवं लेखा अनुरक्षण करने में पूर्ण समर्थ होने के साथ ही स्वावलम्बन हेतु शुल्क लेने तथा परिचालन व्यय करने में भी समर्थ है।
योजना के उद्देश्य-
1. कृषि प्रसार में शासकीय विभागों के साथ-साथ विभिन्न अशासकीय संस्थाओं, गैर शासकीय संगठनों, कृषि उद्यमियों की भागीदारी बढ़ाना।
2. कृषि और संबंधित विभागों, कृषि विज्ञान केन्द्रों, कृषि अनुसंधान केन्द्रों में समन्वय स्थापित कर साथ-साथ कार्य करना तथा कृषि विकास की कार्य योजना तैयार करना।
3. समन्वित कृषि पद्वति (कृषि , उद्यानिकी, पशुपालन जैसे सहायक व्यवसायों को एक साथ अपनाना) अर्थात् कृषि पद्वति पर आधारित कृषि प्रसार सुनिश्चित करना।
4. कृषि विस्तार हेतु सामूहिक प्रयास करना। फसल या रूचि पर आधारित कृषकों के समूह की उनकी जरूरत के अनुसार क्षमता विकसित करना।
5. अन्य विभागीय योजनाओं में विस्तार सम्बंधी प्रावधान न होने पर उसका सपोर्ट टू स्टेट एक्सटेंशन प्रोग्राम्स फॉर एक्सटेंशन रिफॉर्म्स योजना में समावेश करना।
6. महिला कृषकों को समूह के रूप् में संगठित करना और कृषि के क्षेत्र में उनकी क्षमता बढ़ाना।
7. किसानों, कृषि वैज्ञानिकों और विस्तार कार्यकर्ताओं के बीच में बेहतर तालमेल स्थापित करना।

योजना की विशेषताएं -
जमीनी स्तर से कार्य योजना तैयार करना तथा उसे प्रस्तुत करना।
किसानों की जरूरत के अनुरूप् गतिविधियों का चयन करना तथा उन्हें क्रियान्वित करना।
कार्य योजना बनाने और उसके क्रियान्वयन में किसानों की भागीदारी बढ़ाना।
कार्य प्रणाली में लचीलापन होना और निर्णय लेने की प्रक्रिया का विकेन्द्रीकरण करना।
एकल खिड़की प्रणाली द्वारा कृषि विस्तार करना।
कृषि विस्तार सेवाओं को टिकाऊ बनाने के लिए हितग्राहियों से 5 से 10 प्रतिशत हिस्सा प्राप्त करना।
रणनीति -
आत्मा का पहला कार्य है, इस योजना का कृषकों, ग्रामीणों की भागीदारी से बनाया जाता है। इसमें राज्य, जिला, विकास खण्ड और ग्राम स्तर पर विभिन्न विस्तार गतिविधियों का क्रियान्वयन किया जाता हैः
राज्य प्रकोष्ठ -
यह कृषि विभाग के अधीनस्थ कार्य करता है। इस प्रकोष्ठ विभिन्न जिलों से वार्षिक कार्य योजना प्राप्त करता है, उसमें राज्य कृषक सलाहकार समिति के सुझाओं को शामिल करता है, फिर राज्य कृषि विस्तार कार्य योजना तैयार की जाती है। इस कार्य योजना को प्रदेश की अंर्त-विभागीय कार्यकारी समूह ओर भारत सरकार से अनुमोदन कराया जाता है। इसके बाद कार्य योजना को क्रियान्वयन एजेंसी को अवगत कराया जाता है। इसमें केन्द्र और राज्य सरकारों से राशि प्राप्त कर एजेंसी आत्मा को आबंटित की जाती है तथा योजना के क्रियान्वयन का अनुश्रवण और मूल्यांकन किया जाता है।
राज्य कृषि प्रशिक्षण संस्थान -
यह संस्था कृषि विस्तार से जुड़े शासकीय, निजी, गैर शासकीय संगठनों की प्रशिक्षण आवश्यकताओं का आंकलन करती है तथा प्रशिक्षण की वार्षिक कार्य योजना तैयार करती है, जिसके अनुसार राशि प्राप्त कर विभिन्न वर्गों के लिए प्रशिक्षण आयेजित करती है। इसके अलावा परियोजना तैयार करने, परीक्षण, क्रियान्वयन एवं अनुश्रवण करने के लिए आवश्यक मार्गदर्शन दिया जाता है। यह संस्था कृषि विस्तार को अधिक प्रभावी बनाने के लिए प्रबंधन तरीकों के विकास एवं उनके उपयोग को बढ़ावा देती है।
कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी --
आत्मा जिला स्तरीय संस्था है, जो किसानों तक कृषि विस्तार सेवाओं को पहुंचाती है। इसमें सक्रिय योगदान देने वाले व्यक्ति सदस्य होते हैं। भारत सरकार और राज्य सरकार से सीधे आत्मा को बजट मिलता है। इसके अलावा सदस्यों से सदस्यता शुल्क और लाभान्वितों से कृषक अंष की राशि प्राप्त होती है। कृषि एवं कृषि संबंधी तकनीक के व्यापक प्रचार-प्रसार की जवाबदारी आत्मा की होती है। इसमें जिले के उप संचालक कृषि को परियोजना निदेशक और कृषि विज्ञान केन्द्र के कार्यक्रम समन्वयक को उप परियोजना निदेशक नामांकित किए जाते हैं।
गवर्निंग बोर्ड -
यह बोर्ड जिला स्तर पर आत्मा की नीति तैयार करती है, प्रशासकीय एवं वित्तिय स्वीकृति देती है, क्रियान्वयन की समीक्षा करती है। गवर्निंग बोर्ड के अध्यक्ष कलेक्टर और सचिव परियोजना निदेशक होते हैं।
प्रबंधन समिति -
यह आत्मा की कार्य योजना बनाती है तथा गतिविधियों के क्रियान्वयन करती है, जिसमें आत्मा द्वारा जिले के कृषि एवं संबंधित विभागों जैसे-उद्यानिकी, पशुधन, मत्स्य, रेशम पालन, विपणन, कृषि विज्ञान केन्द्र, कृषि अनुसंधान केन्द्र, लीड बैंक, गैर शासकीय संगठनों और कृषि से जुड़े विभिन्न संगठनों से सम्पर्क किया जाता है तथा इनमें समन्वय स्थापित किया जाता है। इस समिति में जिले में कार्यरत इन विभागों के वरिष्ठ अधिकारी सक्रिय सदस्य होते हैं। यह समिति प्रति माह बैठक का आयोजन करती है तथा प्रगति की समीक्षा करती है। प्रबंधन समिति द्वारा प्रगति प्रतिवेदन तैयार कर राज्य प्रकोष्ठ को भेजा जाता है।
जिला कृषक सलाहकार समिति -
इसमें अधिकतम 25 सदस्य होते हैं। यह समिति किसानों की ओर से कार्य योजना बनाने और इसके क्रियान्वयन हेतु फीड बैक तथा आवश्यक सलाह गवर्निंग बोर्ड और प्रबंधन समिति को देती है। इसमें सभी वर्ग के प्रगतिषील, पुरस्कृत कृषक सदस्य होते हैं, जो कि विभिन्न विकास खण्डों की कृषक सलाहकार समिति से नामांकित होते हैं।  इस समिति की बैठक प्रत्येक तीन माह में प्रायः प्रबंधन समिति की बैठक के पहले आयोजित की जाती है।
विकास खण्ड तकनीकी दल -
यह विकास खण्ड स्तर पर कृषि एवं संबंधित विभागों के अधिकारियों का दल होता है, जिसके द्वारा आत्मा की विभिन्न गतिविधियों की वार्षिक कार्य योजना बनाकर जिले की आत्मा को उपलब्ध कराती है तथा उसका विकास खण्ड में क्रियान्वयन करती है। इस तकनीकी दल को सहयोग के लिए विकास खण्ड तकनीकी प्रबंधक और सहायक तकनीकी प्रबंधक कार्यरत होते हैं, जो विभिन्न विभागों में समन्वय स्थापित कर गतिविधियों का क्रियान्वयन कराते हैं।
विकास खण्ड कृषक सलाहकार समिति -
इसमें संबंधित विकास खण्ड के प्रगतिशील/पुरस्कृत कृषक, अभिरूचि समूहों/ कृषक संगठनों के प्रतिनिधि सदस्य होते हैं। इसमें सदस्यों की संख्या 20 से 25 तक होती हैं। इस समिति की बैठक प्रत्येक दो माह में होती है, जिसमें विकास खण्ड तकनीकी दल को किसानों की ओर से फीड बैक और सलाह दी जाती है।
कृषक मित्र -
प्रत्येक दो गांवों के बीच में एक कृषक मित्र नामांकित किया जाता है।  कृषक मित्र प्रगतिशील कृषक होते हैं, जो कृषि प्रसार तंत्र और किसानों के बीच में महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं। कृषक मित्र विभागीय योजनाओं, जानकारी को किसानों तक पहुंचाते हैं तथा किसानों की समस्याओं के संबंध में किसान काल सेंटर से सुझाव लेते हैं। प्रत्येक कृषक मित्र को रुपये 6000/- प्रति वर्ष मानदेय दिया जाता है।
खाद्य सुरक्षा समूह  (कृषक अभिरूचि समूह, कमोडिटी अभिरूचि समूह) -
ये समूह अपने सदस्यों के बीच में कृषि तकनीक के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समूहों के सदस्यों को प्रशिक्षण, शैक्षणिक भ्रमण, प्रदर्शन, कार्य कुशलता वृद्धि और चक्रीय निधि देकर सशक्त बनाया जाता है।
प्रक्षेत्र विद्यालय -
प्रगतिशील किसानों के माध्यम से अन्य किसानों तक कृषि तकनीक के प्रचार-प्रसार में प्रक्षेत्र विद्यालय अच्छे माध्यम है। कृषि उद्यमी गांवों में कृषि उद्यमी गुणवत्तापूर्ण कृषि आदान सामग्री एवं तकनीकी सलाह किसानों को उपलब्ध कराकर मदद करते हैं।
मुख्य गतिविधियां -
कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी द्वारा कृषक उन्मुखी, तकनीकी विस्तार, कृषक
सम्पर्क और नवोन्मेषी गतिविधियों का संचालन किया जाता है। इसमें किसानों, कृषक समूहों, वैज्ञानिकों, विस्तार में लगे हुये अधिकारियों, कर्मचारियों और उत्कृष्ट आत्मा को पुरस्कृत किया जाता है।
वित्तीय प्रावधान -
आत्मा योजना के वित्तीय प्रावधानों का लाभ सभी वर्ग के किसानों को मिलता है किन्तु लद्यु-सीमांत और महिला कृषकों को लाभ हेतु प्राथमिकता दी जाती है।
1. कृषक प्रशिक्षण
अ. अंतर्राज्यीय
प्रति कृषक प्रतिदिन रूपये 1250 की दर से औसत 50 मानव दिवस
प्रति विकास खण्ड ।
ब. राज्य के अंदर
प्रति कृषक प्रतिदिन रूपये 1000 की दर से औसत 1000 मानव
दिवस प्रति विकास खण्ड।
स. जिले के अन्दर
प्रति कृषक प्रतिदिन रुपये 400 या 250 रुपये की दर से औसत
1000 मानव दिवस प्रति विकास खण्ड।
2. प्रदर्शन -

अ. कृषि
प्रति प्रदर्शन 0.40 हेक्टेयर क्षेत्र हेतु रुपये 3000/- धान, गेंहूं,दलहन-तिलहन एवं मक्का हेतु रुपये 2000 की दर से औसत 125 प्रदर्शन प्रति विकास खण्ड ।
ब. उद्यानिकी, पशुपालन, मत्स्य पालन,रेशम पालन-
प्रति प्रदर्शन रुपये 4000 की दर से औसत 50 प्रदर्शन प्रति विकास खण्ड।
3. शैक्षणिक भ्रमण
अ. अंतर्राज्यीय
प्रति कृषक प्रतिदिन रुपये 800 की दर से औसत 5 कृषक प्रति विकास खण्ड।
ब. राज्य के अंदर
प्रति कृषक प्रतिदिन रुपये 400 की दर से औसत 25 कृषक प्रति विकास खण्ड।
4. क्षमता विकास एवं कौशल उन्नयन
कृषक समूहों की क्षमता विकास हेतु रुपये 5000 प्रति समूह प्रति वर्ष
तथा अधिकतम लक्ष्य 20 समूह प्रति विकास खण्ड प्रति वर्ष।
कृषक प्रशिक्षण, प्रदर्शन, शैक्षणिक भ्रमण और क्षमता विकास के लिए आयोजन हेतु सामान्य कृषकों से 10 प्रतिशत तथा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन-जाति और महिला कृषकों से 5 प्रतिशत कृषक अंश लिया जाता है। इन कार्यक्रमों में न्यूनतम 30 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी अनिवार्य है।
5. खाद्य सुरक्षा समूह-
इसमें प्रति विकास खण्ड न्यूनतम दो खाद्य सुरक्षा समूह प्रति वर्ष गठित करने का प्रावधान है, जिसके लिए प्रति समूह रुपये 10000 निर्धारित हैं।
6. कृषक पुरस्कार
कृषि, उद्यानिकी, पशुपालन, मत्स्य पालन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले कृषकों को प्रति वर्ष पुरस्कृत किया जाता हैः
अ. राज्य स्तर पर
10 उत्कृष्ट कृषकों को, 50 हजार रुपये प्रति कृषक का पुरस्कार।
ब. जिला स्तर पर
10 उत्कृष्ट कृषकों को, 25 हजार रुपये प्रति कृषक का पुरस्कार।
स. विकास खण्ड स्तर पर
5 उत्कृष्ट कृषकों को, 10 हजार रुपये प्रति कृषक का पुरस्कार ।
7. कृषक समूह पुरस्कार
कृषि, उद्यानिकी, पशुपालन, मत्स्य पालन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले कृषक समूहों को जिला स्तर पर पुरस्कृत करने का प्रावधान है, जिसमें प्रति वर्ष पांच कृषक समूहों को 20 हजार रुपये प्रति समूह की दर से पुरस्कृत किया जाता है। इसमें प्रत्येक जिले से प्रति वर्ष पांच कृषक समूह पुरस्कृत किये जाते हैं।
8. फार्म स्कूल
क्षेत्र विशेष में पारंगत विशेषज्ञ कृषक द्वारा अपने क्षेत्र के 25 प्रशिक्षणर्थी कृषकों तक तकनीकी हस्तांतरण का प्रावधान है। फार्म स्कूल के लिए हर स्कूल को रुपये 29414 दिये जाते हैं।
9. कृषक वैज्ञानिक परिचर्चा
प्रगतिशील या जिला कृषक सलाहकार समिति और विकास खण्ड कृषक सलाहकार समिति के सदस्यों के लिए वैज्ञानिक परिचर्चा आयोजित की जाती है, जिसमें उन्नत कृषि तकनीक की जानकारी दी जाती है तथा रणनीति बनायी जाती है। यह परिचर्चा प्रत्येक जिले में खरीफ और रबी के पहले आयोजित की जाती है, जिनकी खरीफ और रबी में एक-एक संख्या होती है।
10. किसान गोष्ठी/प्रक्षेत्र दिवस
आत्मा द्वारा प्रति वर्ष प्रत्येक जिले में खरीफ और रबी में किसान गोष्ठी, प्रक्षेत्र दिवस का आयोजन किया जाता है।
11. विकास खण्ड कृषक सलाहकार समिति की बैठक
इस समिति की बैठक प्रत्येक दो माह के अंतराल में विकास खण्ड में आयोजित की जाती है, जिसमें कृषि और सम्बंधित विभागों के अधिकारी भाग लेते हैं। वर्ष में इन बैठकों की संख्या 6 होती है।
12. जिला कृषक सलाहकार समिति की बैठक
इस समिति की बैठक वर्ष में चार बार होती है।

Comments

  1. Meje masrum ke bare me pUri jankare chaiye or vegyanik ke contect no. Do

    ReplyDelete
  2. Sir me pasupalan ko viksit karna cahata hun muje lone cahiye

    ReplyDelete
  3. Atm btm को लगाओ जो हटाये गए थे वसुंधरा जी के समय वे cm थी अब तो लगाओ बेरोजगारी बहुत है

    ReplyDelete
  4. Very nice sir meri bsc Ag abi complete hui h mujhe bhi job chahiye

    ReplyDelete
  5. rajasthan me govrment ko district me local ngo ko work prmoting organic farming pilot projects in distrct mo, 9929715830 9928615830

    ReplyDelete

Post a Comment

Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार

Popular posts from this blog

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

THE SCHEDULED AREAS Villages of Udaipur district - अनुसूचित क्षेत्र में उदयपुर जिले के गाँव

अनुसूचित क्षेत्र में उदयपुर जिले के गाँव- अनुसूचित क्षेत्र में सम्मिलित उदयपुर जिले की 8 पूर्ण तहसीलें एवं तहसील गिर्वा के 252, तहसील वल्लभनगर के 22 व तहसील मावली के 4 गांव सम्मिलित किए गए हैं। ये निम्नानुसार है- 1. उदयपुर जिले की 8 पूर्ण तहसीलें (कोटड़ा, झाडोल, सराड़ा, लसाड़िया, सलूम्बर, खेरवाड़ा, ऋषभदेव, गोगुन्दा) - 2. गिर्वा तहसील (आंशिक) के 252 गाँव - S. No. GP Name Village Name Village Code Total Population Total Population ST % of S.T. Pop to Total Pop 1 AMBERI AMBERI 106411 3394 1839 54.18 2 AMBERI BHEELON KA BEDLA 106413 589 573 97.28 3 AMBERI OTON KA GURHA 106426 269 36 13.38 4 AMBERI PRATAPPURA 106427 922 565 61.28 5 CHEERWA CHEERWA 106408 1271 0 0.00 6 CHEERWA KARELON KA GURHA 106410 568 402 70.77 7 CHEERWA MOHANPURA 106407 335 313 93.43 8 CHEERWA SARE 106406 2352 1513 64.33 9 CHEERWA SHIVPURI 106409 640 596 93.13 10 DHAR BADANGA 106519 1243 1243 100.00 11 DHAR BANADIYA 106...

Scheduled Areas of State of Rajasthan - राजस्थान के अनुसूचित क्षेत्र का विवरण

राजस्थान के अनुसूचित क्षेत्र का विवरण (जनगणना 2011 के अनुसार)-   अधिसूचना 19 मई 2018 के अनुसार राजस्थान के दक्षिण पूर्ण में स्थित 8 जिलों की 31 तहसीलों को मिलाकर अनुसूचित क्षेत्र निर्मित किया गया है, जिसमें जनजातियों का सघन आवास है। 2011 की जनगणना अनुसार इस अनुसूचित क्षेत्र की जनसंख्या 64.63 लाख है, जिसमें जनजाति जनसंख्या 45.51 लाख है। जो इस क्षेत्र की जनसंख्या का 70.42 प्रतिशत हैं। इस क्षेत्र में आवासित जनजातियों में भील, मीणा, गरासिया व डामोर प्रमुख है। सहरिया आदिम जाति क्षेत्र- राज्य की एक मात्र आदिम जाति सहरिया है जो बांरा जिले की किशनगंज एवं शाहबाद तहसीलों में निवास करती है। उक्त दोनों ही तहसीलों के क्षेत्रों को सहरिया क्षेत्र में सम्मिलित किया जाकर सहरिया वर्ग के विकास के लिये सहरिया विकास समिति का गठन किया गया है। क्षेत्र की कुल जनसंख्या 2.73 लाख है जिसमें से सहरिया क्षेत्र की अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 1.02 लाख है जो क्षेत्र की कुल जनसंख्या का 37.44 प्रतिशत है।  अनुसूचित क्षेत्र में राजकीय सेवाओं में आरक्षण सम्बन्धित प्रावधान-  कार्मिक (क-...