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Banganga Fair of Rajasthan राजस्थान का बाणगंगा मेला -






Banganga Fair of Rajasthan राजस्थान का बाणगंगा मेला -

राजस्थान का 'बाणगंगा मेला' प्रतिवर्ष वैशाख माह (अप्रैल-मई) की पूर्णिमा के दिन जयपुर जिले की ऐतिहासिक नगरी 'बैराठ' (विराटनगर) से 11 किलोमीटर की दूरी पर बाणगंगा नामक एक छोटी नदी के पास आयोजित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह जलधारा पांच पांडवों में से एक अर्जुन द्वारा निर्मित की गई है। कहते हैं कि महाभारत काल में जब भीष्म पितामह शर-शय्या पर थे तब उनकी प्यास बुझाने के लिए अर्जुन ने एक बाण पृथ्वी में मार कर जलधारा उत्पन्न की थी अतः यह मान्यता है कि उनके बाण से उत्पन्न यह जलधारा ही ' बाणगंगा ' नदी के नाम से विख्यात हो गई भौगोलिक दृष्टि से बैराठ नामक स्थान की पहाड़ियां ही बाणगंगा नदी का उदगम् स्थल है। बैराठ जयपुर से 85 किलोमीटर दूर है यह शाहपुरा के निकट जयपुर से अलवर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8  पर एक मोड़ के पास है। इस स्थान पर जाने के लिए जयपुर और उक्त मोड़ से नियमित बस सेवा उपलब्ध है उक्त मोड़ से लगभग एक किलोमीटर दूर बाणगंगा स्थित है
इस पवित्र स्थल पर भरने वाले इस मेले में अलवर, बहरोड़, जयपुर, भरतपुर और कई अन्य स्थानों से हजारों की संख्या में तीर्थयात्री आते हैं। वैशाख पूर्णिमा के दिन लगने वाले इस मेले में पवित्र नदी में स्नान करने और पवित्र स्थल पर जाकर पूजा करने को बहुत शुभ माना जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि महाभारत काल से ही यह मेला लगता है किन्तु संस्कृति विशेषज्ञ मानते हैं कि लगभग 200 वर्ष पूर्व जयपुर के नन्दराम बक्षी ने यहाँ राधाकृष्ण मंदिर का निर्माण करवाया था, तब से यह मेला लगातार आयोजित किया जाता है
तीर्थ यात्रा के लिए मेले में आने वालों श्रद्धालुओं को अपने माल को बेचने के लिए विभिन्न समुदायों के व्यापारी मेले में भी इस मेले में पहुंचते हैं तथा हाट-बाजार लगाते हैं। इस मेले में ग्रामीणों के लिए उपयोगी साधारण गहनों से लेकर खिलौने, परंपरागत कलात्मक वस्तुएं व शिल्प तथा घरेलू कामकाज की वस्तुओं का भारी मात्रा में क्रय-विक्रय होता है। मेले में स्वादिष्ट राजस्थानी व्यंजन की भी दुकाने लगती है जहाँ लोग खाने-पीने का आनंद भी लेते है विशाल चकरी झूले और अन्य मनोरंजन के साधन बच्चों के साथ ही वयस्कों को भी रोमांचक अनुभव प्रदान करते हैं। क्रय-विक्रय, स्वाद व मनोरंजन के विभिन्न क्रियाकलापों के कारण होने वाली मेलार्थियों की अद्भुत सांस्कृतिक हलचल इस अनूठे मेले के उत्सव के माहौल में अभिवृद्धि करते हैं
यह मान्यता है कि इस अवसर पर बाणगंगा नदी में स्नान करने से आत्मा का शुद्धिकरण हो जाता है तथा पुण्य की प्राप्ति होती है। इसलिए बाणगंगा नदी के घाट पर स्नान करने का सबसे पहले अवसर प्राप्त करने हेतु भक्तजन अलसुबह से ही यहाँ स्थित श्री राधाकृष्णजी के मंदिर में इकठ्ठा होना प्रारंभ हो जाते हैं इसके पश्चात् भक्त लोग पास के हनुमानजी और गंगाबिहारी के मंदिरों में दर्शनों के लिए आगे बढ़ते हैं मेलार्थी यहाँ स्थित शिव मंदिर व गोस्वामीजी के मठ पर भी जाते हैं।

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