Skip to main content

राजस्थान का अलवर जिला - Alwar District of Rajasthan



भौगोलिक स्थिति-

'पूर्वी राजस्थान के कश्मीर' एवं 'राजस्थान के सिंह द्वार' के रूप में विख्यात अलवर अरावली पर्वत की सुरम्य उपत्यकाओं में स्थित है। अपनी प्राकृतिक और ऐतिहासिक विरासत के कारण यह पर्यटकों के लिए सदैव आकर्षण का केंद्र रहा है।  जयपुर से लगभग 148 किलोमीटर तथा दिल्ली से लगभग 160 किलोमीटर दूर स्थित अलवर अपनी नैसर्गिक सुषमा के कारण अन्य जिलों से अलग अपना विशेष स्थान रखता है। राजस्थान के मेवात अंचल के अंतर्गत आने वाले अलवर का प्राचीन नाम 'शाल्वपुर' था।  

राजस्थान के उत्तर-पूर्व में स्थित चतुष्फलकीय आकृति का अलवर जिला 27o4' और 28o4' उत्तरी अक्षांश  और 76o7और 77o13' पूर्वी देशांतर के बीच है। दक्षिण से उत्तर तक इसकी सर्वाधिक लम्बाई लगभग 137 किमी दूर है और पूर्व से पश्चिम तक सर्वाधिक चौड़ाई लगभग 110 किमी है। यह उत्तर और उत्तर-पूर्व में गुड़गांव (हरियाणा) और भरतपुर जिले से तथा उत्तर-पश्चिम में हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले से जबकि  दक्षिण-पश्चिम में जयपुर जिले से एवं  दक्षिण में जयपुर व दौसा जिलों से घिरा है। शहर के चारों ओर स्थित अरावली पहाड़ियों की सुंदर पर्वतमाला एक प्राकृतिक बाधा के रूप में कार्य करते हुए गर्मी के मौसम के दौरान कठोर और शुष्क हवाओं से शहर की रक्षा करती है।

ऐतिहासिक परिदृश्य-

अलवर प्राचीन मत्स्य प्रदेश का हिस्सा रहा है जिसकी राजधानी विराट नगर थी अलवर नाम की व्युत्पत्ति के कई सिद्धांत प्रचलित है कनिंघम के अनुसार इस शहर के नाम का उद्भव शाल्व जाति के नाम से हुआ था जो प्रारंभ में शाल्वपुर, उसके पश्चात् सलवार, हलवार, और अंत में अलवर हुआ एक अन्य सिद्धांत के अनुसार इसका नाम अरावली पहाड़ियों के नाम पर अरावलपुर था जो बाद में अलवर हो गया कुछ लोग मानते हैं कि इस नगर का नाम अलावल खान मेवाती के नाम पर पड़ा है अलवर के महाराजा जयसिंह के शासनकाल में हुए एक शोध के अनुसार इस क्षेत्र पर आमेर के महाराजा काकल के दूसरे पुत्र महाराजा अलगुहराज का 11 वीं सदी में अधिकार हो गया तथा उन्होंने ही वि.सं. 1106 (1049 ई.) में अपने नाम पर यह नगर बसाया। मुगलों के पराभव काल में 25 नवम्बर, 1775 ई. को राव राजा प्रतापसिंह ने अलवर राज्य की स्थापना की थी। रियासती शासन के अंतिम दौर में स्वतंत्रता के पश्चात् 18 मार्च, 1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर तथा करौली को मिला कर मत्स्य संघ बनाया गया। 22 मार्च, 1949 को मत्स्य संघ के वृहद् राजस्थान में विलय होने के साथ अलवर एक जिले के रूप में अस्तित्व में आया।

क्षेत्रफल- 

अलवर 8380 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है, जो राजस्थान राज्य के कुल क्षेत्रफल का 2.45% है। इसमें से ग्रामीण क्षेत्रफल 8,146.42 वर्ग किमी तथा शहरी क्षेत्रफल 233.58 वर्ग किमी है

वन क्षेत्रफल- 79,574 हेक्टयेर

जनसंख्या (जनगणना 2011)-

कुल जनसंख्या- 36,74,179

 पुरुष- 19,39,026    महिला- 17,35,153

ग्रामीण-  30,19,728 व्यक्ति (82.2%),      शहरी- 6,54,451 व्यक्ति (17.8%)

2001- 2011 में दशकीय वृद्धि दर- कुल- 22.8 %, ग्रामीण- 18.1%, शहरी- 50.5%

जनसंख्या घनत्व (जनगणना 2011) -  438

लिंगानुपात- कुल- 895, ग्रामीण- 900, शहरी- 872

शिशु जनसंख्या अनुपात (0-6 वर्ष) - कुल- 16 , ग्रामीण- 16.6, शहरी- 13.1

साक्षरता दर-  कुल- 71.68%, पुरुष- 85.08%, महिला- 56.78%

स्थलाकृति-

अलवर जिले की आकृति नियमित चतुर्भुज आकृति है। ये जिला यमुना व सतलुज नदियों के मध्य स्थित है तथा इसका मध्य भाग उत्तर से दक्षिण की ओर अरावली पहाड़ियों से घिरा है जिनकी ऊँचाई 456 मीटर से 700 मीटर की ऊँचाई तक है। जिले का ये भाग अच्छी तरह से वन-आच्छादित है। जिले में अरावली विकर्णतः दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व कोनों तक विस्तृत है। इसके अलावा जिले के मैदानी भागों में भी कई पहाड़ियां हैं जो औसतन लगभग 1600 फीट की ऊँचाई तक की है। उत्तर-पूर्व तथा दक्षिण-पश्चिम के पर्वतों में भारी अंतर है। जिले के राजगढ़, अलवर और थानागाजी क्षेत्र में स्थित दक्षिण-पश्चिमी पर्वत सघन वृक्षों से आच्छादित है किन्तु उत्तरी-पश्चिमी भाग बंजर एवं पथरीला दृष्टिगत होता है।  

खनिज सम्पदा-

अलवर खनिज सम्पदा में अच्छी तरह से समृद्ध है यहाँ संगमरमर, ग्रेनाईट, फेल्सपार, डोलोमाइट, क्वार्ट्ज, चूना पत्थर, सोप-स्टोन, बेराइट्स, सिलिका, बजरी रेत, इमारती पत्थर, पट्टी कतला, ईंट मृदा, चेर्ट, पाईरोहाईट आदि खनिज प्राप्त होते हैं

अलवर जिले की तहसीलें-

1. अलवर

2. मालाखेड़ा

3. कोटकासिम

4. थानागाजी

5. किशनगढ़वास

6. लक्ष्मणगढ़

7. गोविन्दगढ़

8. तिजारा

9. मुण्डावर

10. राजगढ़

11. बहरोड़

12. कठूमर

13. बानसूर

14. रामगढ़

15. नीमराना

16. रैणी

भू-उपयोग (2010-11)-

i) कुल क्षेत्रफल
8,38,300
Hectare
ii)वन आच्छादन
79,574
Hectare
iii) गैर कृषि भूमि
1,29,636
Hectare
iv) कृषि योग्य बंजर भूमि
5,04,049
Hectare




उद्योग एवं निर्यात-

अलवर जिला राज्य का प्रमुख औद्योगिक जिला है। यहाँ सैंकड़ों छोटे बड़े उद्योग कार्यरत हैं यहाँ पर उत्पादित कई सामग्री की विदेशों में मांग है। अलवर में स्थापित कई उद्योग शेविंग ब्लेड्स, हैण्ड टूल्स, एल्युमीनियम उत्पाद, संगमरमर कलाकृतियाँ, ग्रेनाईट टाइल्स, सर्जिकल ब्लेड्स, संश्लेषित मिश्रित वस्त्र, रिक्त हार्ड जिलेटिन कैप्सूल्स, चमड़े के जूते, टायर-ट्यूब्स, क्रोकरी, सेनेटरी सामग्री, बेग्स, पिक्चर ट्यूब्स, कास्टिक सोडा, क्लोरीन, लवण, क्षार, कैल्शियम साइनाइड आदि रसायन, शूटिंग्स-शर्टिंग्स, स्लेट-टाइल्स, मोपेड्स, पीवीसी केबल्स, स्वच्छता सामग्री (sanitary ware), रेडीमेड वस्त्र, माल्ट, गम, वनस्पति तेल, रिफाइंड तेल, वनस्पति घी, आयुर्वेदिक दवाईयां, गियर्स आदि का निर्यात करते हैं

अलवर के दर्शनीय स्थल-

बाला किला-

अलवर नगर के पश्चिम में समुद्र के तल से ऊपर लगभग 1960 फीट पर एवं अलवर नगर से ऊपर एक हजार फीट ऊँची पहाड़ी पर निर्मित है। इसे निकुम्भ नरेशों ने गढ़ी किले के रूप में बनवाया था। सन 1542 में खानजादा अलावल खां ने इसे निकुम्भों से छीना था और किले को वर्तमान रूप दिया। उसके पुत्र हसन खां मेवाती ने इसका 1550 में जीर्णोंद्धार कराया। इसी कारण इसे हसन खान मेवाती द्वारा बनाया जाना कहा जाता है। बाद में इस पर मुगलों का अधिकार हो गया। इसके बाद यह मुगलों से मराठों को, फिर मराठों से जाटों के पास चला गया, अंत में 1775 ई. में इस पर जयपुर के राजा प्रताप सिंह (कच्छवाहा राजपूत) द्वारा कब्जा कर लिया गया। यह किला उत्तर से दक्षिण में लगभग 5 किलोमीटर की लम्बा तथा लगभग 1.5 किलोमीटर चौड़ा है। किले के घेरे में 18 फुट ऊँची दीवारों का परकोटा है।  
किले में प्रवेश के लिए छः प्रवेश द्वार हैं जो चांदपोल, सूरज पोल (भरतपुर के राजा सूरजमल के नाम पर), जय पोल, किशन पोल, अंधेरी गेट एवं लक्ष्मण पोल हैं। यह कहा जाता है कि अलवर राज्य के संस्थापक राजा प्रताप सिंह ने पहली बार किले में प्रवेश के लिए लक्ष्मण पोल का प्रयोग किया था। अतीत में अलवर शहर एक पक्की सड़क द्वारा लक्ष्मण पोल के साथ जुड़ा हुआ था। किले में 3359 कंगूरे, 15 बड़ी और 51 छोटी बुर्जें हैं। किले में बन्दूकबाजी के लिए 446 छोटी बारियाँ तथा 8 विशाल बुर्ज स्थित हैं।
इस दुर्ग पर विजय प्राप्त कर बाबर 8 अप्रैल, 1527 को आकर इसमें 8 दिन तक रहा। बाबर ने यहाँ का खजाना ले जाकर अपने पुत्र हुमायूँ को सौंपा था। अकबर जब अपने पुत्र सलीम (जहांगीर) से रुष्ट हो गया तथा उसे देश निकाला दे दिया था क्योंकि उसने अकबर के नौ रत्नों में से एक अबुल फजल को मारने का प्रयास किया था तब जहांगीर भी यहाँ कुछ दिनों के लिए रुका था। जिस महल में वो रुका था उसे सलीम महल के नाम से जाना जाता है।


1550 ई. में शेरशाह सूरी के हकीम सलीम शाह के आदेश पर हकीम हाजी खां ने यहाँ सलीम सागर बनवाया। बाद में हाजी खां स्वतंत्र शासक बन गया। बादशाह शाहआलम से पहले भरतपुर के राजा सूरजमल जाट ने इसे जयपुर से छीन लिया और बाद में अलवर के प्रथम राजा प्रतापसिंह ने इस दुर्ग को बिना लड़े अपने कब्जे में ले लिया।  यह ऐतिहासिक सच्चाई है कि इस किले पर कभी युद्ध नहीं हुआ इसलिए इसे 'बाला किला या कुंवारा किला' भी कहते हैं। इसके महल में की गई चित्रकारी दर्शनीय है। इसकी छत पर खड़े होकर टेलिस्कोप से अलवर नगर को देखकर इससे आनन्द उठाया जा सकता है। बाला-किला परिसर में करणी माता मन्दिर, चक्रधारी हनुमान मन्दिर, पुरोहितजीकिलेदार की कोठी, जयसिंह की यूरोपियन खंडर कोठी, बावड़ी, कुएँ आदि बने हुए हैं।

सिटी पैलेस-

18 वीं सदी में निर्मित ये महल मुग़ल और राजपूत स्थापत्य कला का समिश्रण है इसके ग्राउंड फ्लोर पर सरकारी कार्यालय हैं तथा ऊपरी मंजिल पर राजकीय संग्रहालय कार्यरत है। सिटी पैलेस के पीछे महाराजा विनय सिंह द्वारा 1815 ई. में निर्मित एक कृत्रिम झील है जिसके किनारे पर कई मंदिर भी बने हैं।

मूसी महारानी की छतरी-

महाराजा बख्तावर सिंह की रानी की स्मृति में निर्मित ये असामान्य बंगाली छत और मेहराब से युक्त अत्यंत आकर्षक  'मूसी महारानी की छतरी' भी इसी क्षेत्र में स्थित है जो 80 खम्भों पर टिकी है।



राजकीय संग्रहालय-

यहाँ 18 वीं व 19 सदी की मुग़ल और राजपूतकालीन चित्रकृतियों तथा फारसी, अरबी, उर्दू एवं संस्कृत भाषाओं के कुछ दुर्लभ प्राचीन पांडुलिपियों का संग्रह विद्यमान है, जिनमें 'गुलिस्तां', 'वाकियात-ए-बाबरी' (बाबर की आत्मकथा), बोस्तां आदि प्रमुख है। यहाँ अलवर शैली के चित्रकारों द्वारा रचित महान कृति 'महाभारत' की प्रति भी उपलब्ध है। इसके अलावा इसमें अन्य पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक महत्त्व की वस्तुएं का संग्रह है।

पुर्जन विहार (कंपनी बाग)-

इसका निर्माण महाराजा शिवदान सिंह के शासन काल में 1868 ई. में किया गया था।

सिलीसेढ़ झील-

शहर से करीब 13 किमी दूर स्थित सिलीसेढ़ झील अलवर की सबसे प्रसिद्ध और सुन्दर झील है। यहाँ स्थित महल का निर्माण महाराव राजा विनय सिंह ने 1845 में अपनी रानी शीला के लिए करवाया था। तीन ओर से अरावली पर्वतों से घिरी यह सुरम्य झील पर्यटकों के लिए प्रमुख आकर्षण का केंद्र है यहाँ राजस्थान पर्यटन विकास निगम का लेक पैलेस होटल भी है इस झील से रूपारेल नदी की सहायक नदी निकलती है। वर्ष ऋतु में ये स्थान और अधिक मनोहारी हो जाता है मानसून में इस झील का क्षेत्रफल बढकर 10.5 वर्ग किमी. हो जाता है। झील के चारों तरफ हरी-भरी पहाडियां और आसमान में सफेद बादल मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं।

जयसमन्द झील-

अलवर के आसपास के इलाकों में भी अनेक खूबसूरत झीलें और पहाडियां हैं जिसमें से अलवर से 6 किमी दूर स्थित जयसमंद झील प्रमुख है। यह शहर के सबसे करीब स्थित झील है यहां घूमने का सबसे उपयुक्त समय मानसून है। इस कृत्रिम झील का निर्माण अलवर के महाराजा जयसिंह ने 1910 में पिकनिक के लिए करवाया था। उन्होंने इस झील के बीच में एक टापू का निर्माण भी कराया था।

विनय मंदिर महल-

अलवर नगर से 10 किमी दूर स्थित इस सुन्दर महल का निर्माण महाराजा जयसिंह ने 1918 ई. में करवाया था जिसके सम्मुख एक ख़ूबसूरत झील इसे और सुन्दर व आकर्षक बना देते हैं इसके अन्दर एक सीताराम मंदिर भी बना है जहां रामनवमी के दिन भक्तगण दर्शनों के लिए आते हैं

सरिस्का-

अलवर नगर से 37 किमी दूर अरावली पर्वतमाला की घाटियों में 492 वर्गकिमी में फैला सरिस्का एक सघन वन क्षेत्र है इस वन क्षेत्र में एक राष्ट्रीय उद्यान (273.80 वर्ग किमी) तथा एक वन्यजीव अभयारण्य (219 वर्गकिमी) स्थित है यह सरिस्का वन्यजीव अभ्यारण्य 1955 ई. में बना था जबकि सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान को 1982 में अधिसूचित किया गया था इसके विकास के लिए 'विश्व वन्यजीव कोष' से भी सहायता प्राप्त हो रही है। सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान टाइगर रिजर्व के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इसमें स्थित पांडुपोल में पांडवों ने अपने वनवास के अज्ञातवास दौरान आश्रय लिया था।

सरिस्का महल-

इस सुन्दर महल का निर्माण महाराजा जय सिंह ने ड्यूक ऑफ़ एडिनबर्ग के सम्मान में उनकी सरिस्का यात्रा में उपयोग के लिए कराया था।

पांडुपोल-

पांडुपोल का महत्त्व प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ धार्मिक भी है कहा जाता है कि पांडवों को अपने वनवास के अज्ञातवास के दौरान जब कौरवों की सेना ने घेर लिया था तब भीम ने अपनी गदा से पहाड़ पर प्रहार करके रास्ता निकला था जिसे ही पांडुपोल कहते हैं आज भी यहाँ 35 फीट ऊँचाई पर पहाड़ में दरवाजे जैसा स्थान बना है। इस स्थान पर हनुमानजी का मंदिर बना है जहां भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को बाला जी का विशाल लक्खी मेला लगता है।

तालवृक्ष-

अलवर-नारायणपुर मार्ग पर पहाड़ी की गोद में सघन वृक्षों से आच्छादित यह रमणीक स्थल अलवर से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसका भी प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ ऐतिहासिक तथा धार्मिक महत्त्व है। ऐसी मान्यता है कि इस पवित्र केंद्र को महान ऋषि मांडव्य ने अपनी तपोस्थली बनाया था। गंगा माता के प्राचीन मंदिर तथा उसके नीचे बने गर्म एवं ठंडे पानी के कुंडों के कारण इस स्थान का विशेष धार्मिक महत्त्व है।

भर्तृहरि-

अलवर से तकरीबन 35 किमी दूर स्थित ये स्थान नाथपंथ की अलख जगाने वाले राजा से संत बने भर्तृहरि के नाम से प्रसिद्ध है। उज्जैन के राजा और महान योगी भर्तृहरि ने अपने अंतिम दिनों में अलवर को ही अपनी तपोस्थली बनाया था। यहाँ बनी भर्तृहरि की समाधि पर बड़ी संख्या में दर्शनार्थी आते है तथा प्रतिवर्ष यहाँ भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को मेला लगता है। कनफड़े नाथ साधुओं के लिए इस तीर्थ की विशेष मान्यता है।

नीलकंठ-

अलवर नगर के दक्षिण पश्चिम में 61 किमी दूरी पर स्थित ये भी अलवर जिले का एक सुरम्य एवं दर्शनीय धार्मिक स्थल है। कनिन्घम के अनुसार नीलकंठ की कच्छवाहा राज्य की स्थापना से पूर्व बड़गुर्जर नरेशों की राजधानी था। इस स्थान पर नीलकंठेश्वर महादेव (नीलकंठ महादेव) का मंदिर है। इस मंदिर के शिलालेख के अनुसार बड़गुर्जर राजा अजयपाल ने वि.सं. 1010 से पूर्व ये मंदिर बनवाया था। इस मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक विशाल जैन मंदिर के भी खंडहर विद्यमान है जिसमें करीब 16 फीट ऊँची तथा 6 फीट चौड़ी जैन तीर्थंकर की प्रतिमा स्थापित है। स्थानीय लोगों में यह नौगजा के नाम से प्रसिद्ध है।



Comments

  1. चुकिं हमलोग अक्टूबर में अलवर पर्यटन के लिए जा रहे है, इस बाबत आपके द्वारा प्रदत्त जानकारी काफी लाभकारी होगा। बाला किला का अभूतपूर्व विवरण दिया है।

    ReplyDelete
  2. Thanks Manoj ji. Apki Alwar yatra kaisi rahi...

    ReplyDelete
  3. Thanks for information alwar

    ReplyDelete
  4. बढ़िया जानकारी

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत ही धन्यवाद ..

      Delete
  5. DABBL is an international Bathroom Shower Manufacturing and Suppliers Company. We offer many types of shower products like Shower Enclosures, Shower Cubicle, Glass Shower Door, Shower Room, Shower Stalls, Shower Cabin, Shower Screen Tray and many more at sale2@dabbl.com more information visit here Frameless Glass Shower Doors, Shower Enclosures, Cubicle, Screen, Stall

    ReplyDelete
  6. Really a wonderful post. Thanks for posting such an informative & useful post with us. keep posting & inspire us like this post.
    https://www.bharattaxi.com

    ReplyDelete
  7. Good information of alwar

    ReplyDelete

Post a Comment

Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली