Skip to main content

Stone Age Civilisation of Rajasthan-
राजस्थान की पाषाण युगीन सभ्यता-

राजस्थान में वैज्ञानिक आधार पर कई उत्खनन और अनुसन्धान हुए जिनसे इतिहास व संस्कृति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई है राजस्थान में पाषाण युग के 'आदि मानव' द्वारा प्रयुक्त डेढ़ लाख वर्ष पूर्व के पाषाण उपकरण प्राप्त हुए हैं अनुसन्धान से राजस्थान में पाषाणकालीन तीन प्रकार की संस्कृतियाँ थी-

1. प्रारंभिक पाषाण काल     2.  मध्य पाषाण काल      3. उत्तर पाषाण काल

प्रारंभिक पाषाण काल (1.5 लाख से 50000 वर्ष पूर्व)-

इसका काल आज से लगभग 1.5 लाख से 50000 वर्ष पूर्व तक का माना जाता है। यह राजस्थान में मानव संस्कृति का वह उषाकाल था जिसमें संस्कृति के सूर्य का उदय प्रारंभ हुआ था। अनुसन्धान से पता चलता है कि इस समय का मानव यायावर था। उसके भोज्य पदार्थ के रूप में जंगली कंद-मूल फल तथा हिरन, शूकर, भेड़, बकरी आदि पशु थे। इस युग के उपकरणों की सर्वप्रथम खोज आज से लगभग 95 वर्ष पूर्व श्री सी. ए. हैकर ने जयपुर व इन्दरगढ़ में की थी। उन्होंने वहां अश्म पत्थर से निर्मित हस्त-कुल्हाड़ी (हैण्ड एक्स) खोजे थे जो कलकत्ता के भारतीय संग्रहालय में उपलब्ध है। इसके कुछ ही समय के उपरांत श्री सेटनकार को झालावाड जिले में इस काल के कुछ और उपकरण प्राप्त हुए थे। इसके बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, नई दिल्ली, डेक्कन कॉलेज पूना तथा राजस्थान के पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग द्वारा प्रारंभिक पाषाण काल के सम्बन्ध में अनुसन्धान कार्य किये हैं। इन अनुसंधानों से प्रारंभिक पाषाण काल के मानव द्वारा प्रयुक्त 'हस्त-कुल्हाड़ी (हैण्ड एक्स), क्लीवर तथा चौपर' नाम के उपकरणों के बारे में पता चलता है।

1. हस्त-कुल्हाड़ी-

यह 10 सेमी से 20 सेमी तक लंबा, नोकदार, एक ओर गोल व चौड़ा तथा दूसरी ओर नुकीला व तेज किनारे वाला औजार होता है। इसका उपयोग जमीन से खोद कर कंद-मूल निकालने, शिकार को काटने तथा खाल उतारने के लिए होता था।

2. क्लीवर-

यह एक आयताकार औजार होता है जो लगभग 10 सेमी से 20 सेमी तक लंबा तथा 5 से 10 सेमी चौड़ा होता है। इसका एक किनारा कुल्हाड़ी की भांति सीधा व तेज धारदार होता है तथा दूसरा किनारा गोल, सीधा व त्रिकोण होता है।

3. चौपर-

यह एक गोल औजार होता है जिसके एक ओर अर्धचंद्राकार धार होती है तथा इसका दूसरा किनारा मोटा व गोल होता है जो हाथ में पकड़ने के लिए प्रयुक्त होता है।

प्रसार- प्रारंभिक पाषाण काल की संस्कृति का प्रसार राजस्थान की अनेक प्रमुख व सहायक नदियों के किनारों पर अजमेर, अलवर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, जयपुर, झालावाड़, जोधपुर, जालौर, पाली, टौंक आदि स्थानों पर होने के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।

इसका विशेषतः प्रसार चम्बल तथा बनास नदी के किनारे अधिक हुआ था। चित्तौड़ क्षेत्र में इतनी अधिक मात्रा में प्रारंभिक पाषाण काल के औजार मिले है जिनसे अनुमान लगता है कि उस युग में यहाँ पाषाण हथियारों का कोई कारखाना रहा होगा।

पूर्वी राजस्थान में भानगढ़ तथा ढिगारिया और विराटनगर में 'हैण्ड-एक्स संस्कृति' का पता चलता है। पश्चिमी राजस्थान में लूनी नदी के किनारे तथा जालौर जिले में रेत के टीलों में पाषाणकालीन उपकरणों की खोज हुई है।

विराटनगर में कुछ प्राकृतिक गुफाओं तथा शैलाश्रय की खोज हुई है जिनमें प्रारंभिक पाषाण काल से ले कर उत्तर पाषाण काल तक की सामग्री प्राप्त हुई है। इनमें चित्रों का अभाव है किन्तु भरतपुर जिले के 'दर' नामक स्थान से कुछ चित्रित शैलाश्रय खोजे गए हैं जिनमें मानवाकृति, व्याघ्र, बारहसिंघा तथा सूर्य आदि के चित्रांकन प्रमुख है।

मध्य पाषाण काल (50000 से 10000 वर्ष पूर्व)-

राजस्थान में मध्य पाषाण युग का प्रारंभ लगभग 50000 वर्ष पूर्व होना माना जाता है। यह संस्कृति प्रारंभिक पाषाण काल की संस्कृति से कुछ अधिक विकसित थी किन्तु इस समय तक मानव को न तो पशुपालन का ज्ञान था और न ही खेती बाड़ी का, इसलिए यह कहा जा सकता है कि यह संस्कृति संगठित सामाजिक जीवन से अभी भी दूर थी। इस काल में छोटे, हलके तथा कुशलतापूर्वक बनाये गए उपकरण प्राप्त हुए हैं, जिनमें 'स्क्रेपर तथा पॉइंट' विशेष उल्लेखनीय है। ये उपकरण नुकीले होते थे तथा तीर अथवा भाले की नोक का काम देते थे।

स्क्रेपर-

यह 3 सेमी से 10 सेमी लम्बा आयताकार तथा गोल औजार होता है। इसके एक अथवा दोनों किनारों पर धार होती थी और एक किनारा पकड़ने के काम आता था।

पॉइंट-

यह त्रिभुजाकार स्क्रेपर के बराबर लम्बा तथा चौड़ा उपकरण था जिसे 'नोक' या 'अस्त्राग्र' के नाम से भी जाना जाता था।

ये उपकरण चित्तौड़ की बेड़च नदी की घाटियों में, लूनी व उसकी सहायक नदियों की घाटियों में तथा विराटनगर से भी प्राप्त हुए हैं।

उत्तर पाषाण काल-

राजस्थान में उत्तर पाषाण युग का सूत्रपात आज से लगभग 10000 वर्ष पूर्व हुआ था। इस युग में उपकरणों का आकार मध्य पाषाण काल के उपकरणों से भी छोटा तथा कौशल से भरपूर हो गया था। इस काल में उपकरणों को लकड़ी तथा हड्डियों की लम्बी नलियों में गोंद से चिपका कर प्रयोग किया जाना प्रारंभ हो गया था। इस काल के उपकरण उदयपुर के बागोर तथा मारवाड़ के तिलवाड़ा नामक स्थानों से उत्खनन में प्राप्त हुए हैं। उत्तर पाषाण काल के उपकरणों व अन्य जानकारी की दृष्टि से राजस्थान का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि भारत के अन्य क्षेत्रों से इतनी अधिक मात्रा उत्तर पाषाण कालीन उत्खनन नहीं हुआ है तथा उपकरण प्राप्त नहीं हुए हैं।

Comments

  1. Thanks for sharing such beautiful information with us. I hope will you share more detailswhat is a back links

    ReplyDelete

Post a Comment

Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार

Popular posts from this blog

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

THE SCHEDULED AREAS Villages of Udaipur district - अनुसूचित क्षेत्र में उदयपुर जिले के गाँव

अनुसूचित क्षेत्र में उदयपुर जिले के गाँव- अनुसूचित क्षेत्र में सम्मिलित उदयपुर जिले की 8 पूर्ण तहसीलें एवं तहसील गिर्वा के 252, तहसील वल्लभनगर के 22 व तहसील मावली के 4 गांव सम्मिलित किए गए हैं। ये निम्नानुसार है- 1. उदयपुर जिले की 8 पूर्ण तहसीलें (कोटड़ा, झाडोल, सराड़ा, लसाड़िया, सलूम्बर, खेरवाड़ा, ऋषभदेव, गोगुन्दा) - 2. गिर्वा तहसील (आंशिक) के 252 गाँव - S. No. GP Name Village Name Village Code Total Population Total Population ST % of S.T. Pop to Total Pop 1 AMBERI AMBERI 106411 3394 1839 54.18 2 AMBERI BHEELON KA BEDLA 106413 589 573 97.28 3 AMBERI OTON KA GURHA 106426 269 36 13.38 4 AMBERI PRATAPPURA 106427 922 565 61.28 5 CHEERWA CHEERWA 106408 1271 0 0.00 6 CHEERWA KARELON KA GURHA 106410 568 402 70.77 7 CHEERWA MOHANPURA 106407 335 313 93.43 8 CHEERWA SARE 106406 2352 1513 64.33 9 CHEERWA SHIVPURI 106409 640 596 93.13 10 DHAR BADANGA 106519 1243 1243 100.00 11 DHAR BANADIYA 106...

Scheduled Areas of State of Rajasthan - राजस्थान के अनुसूचित क्षेत्र का विवरण

राजस्थान के अनुसूचित क्षेत्र का विवरण (जनगणना 2011 के अनुसार)-   अधिसूचना 19 मई 2018 के अनुसार राजस्थान के दक्षिण पूर्ण में स्थित 8 जिलों की 31 तहसीलों को मिलाकर अनुसूचित क्षेत्र निर्मित किया गया है, जिसमें जनजातियों का सघन आवास है। 2011 की जनगणना अनुसार इस अनुसूचित क्षेत्र की जनसंख्या 64.63 लाख है, जिसमें जनजाति जनसंख्या 45.51 लाख है। जो इस क्षेत्र की जनसंख्या का 70.42 प्रतिशत हैं। इस क्षेत्र में आवासित जनजातियों में भील, मीणा, गरासिया व डामोर प्रमुख है। सहरिया आदिम जाति क्षेत्र- राज्य की एक मात्र आदिम जाति सहरिया है जो बांरा जिले की किशनगंज एवं शाहबाद तहसीलों में निवास करती है। उक्त दोनों ही तहसीलों के क्षेत्रों को सहरिया क्षेत्र में सम्मिलित किया जाकर सहरिया वर्ग के विकास के लिये सहरिया विकास समिति का गठन किया गया है। क्षेत्र की कुल जनसंख्या 2.73 लाख है जिसमें से सहरिया क्षेत्र की अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 1.02 लाख है जो क्षेत्र की कुल जनसंख्या का 37.44 प्रतिशत है।  अनुसूचित क्षेत्र में राजकीय सेवाओं में आरक्षण सम्बन्धित प्रावधान-  कार्मिक (क-...