Skip to main content

राजस्थान में लगता है लैला मजनूं का भी मेला**
Fair of Laila Majnu

राजस्थान के विविध रंगों में शौर्य, साहस, देशभक्ति, मधुर संगीत, विविधता पूर्ण नृत्य, स्थापत्य कला, देवालय व भक्ति, मीठी बोलियां व लोकगीत आदि के साथ-साथ प्रेम-प्यार का भी एक रंग है। पूरे विश्व में जिस प्रेमी जोड़े और उसके प्यार की मिसाल दी जाती है उस लैला मजनूं से संबंधित अंतिम स्मारक राजस्थान में स्थित है। प्रेम तथा धार्मिक आस्था का प्रतीक "लैला मजनूं की मजारें" राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले की अनूपगढ़ तहसील में भारत-पाकिस्तान की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर बसे बिन्जौर गांव के पास स्थित है। बिन्जौर गांव के पास स्थित ''प्रेमी जोड़ों का तीर्थस्थल'' या ''प्रेमियों का मक्का'' कहे जाने वाले इस स्थान की लैला-मजनूं की इन मजारों पर प्रतिवर्ष एक भव्य मेले का आयोजन धूमधाम से किया जाता है, जिसे लैला मजनूं के वार्षिक मेले के रूप में जाना जाता है। 

मेले में राजस्थान के श्रीगंगानगर व आसपास के जिलों के साथ-साथ पंजाब, हरियाणा आदि प्रांतों के तकरीबन पचास-साठ हजार श्रद्धालु लोग शिरकत करते हैं तथा लैला मजनूं की मजार पर चादर व अकीदत के फूल चढ़ाकर मिन्नतें माँगते हैं। मेले के दौरान छह बीघा में फैले मेला स्थल में भारी भीड़ रहती है तथा सुबह से सायं तक मजार पर मत्था टेकने वाले श्रद्धालुओं की सैकड़ों फुट लम्बी पंक्ति लगी रहती है। 

प्रेम के प्रतीक लैला मजनू का यह मेला इस वर्ष 10 जून 2012 को शुरू होकर 14 जून तक कुल 5 दिन तक चला। हर वर्ष यह मेला केवल एक दिन का ही लगता था, लेकिन प्रतिवर्ष बढ़ती भीड़ को देखते हुए मेला कमेटी ने इस बार इसे पांच दिन का कर दिया। मेला कमेटी ने मेले में आने वाले सभी श्रद्धालुओं के लिए रहने व खाने की निःशुल्क व्यवस्था भी की थी। 

माना जाता है कि विश्व विख्यात प्रेमी युगल लैला-मजनूं ने भारत-पाक सीमा पर अनूपगढ़ तहसील मुख्यालय से मात्र 10 किमी दूरी पर स्थित गांव बिन्जौर के पास टिब्बों में भटकते-भटकते दम तोड़ा था, उन्हीं की याद में यहां प्रत्येक वर्ष विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। हालांकि यह मजारे किसकी है इसका कोई अधिकारिक प्रमाण नही है, इनकी मौत कैसे हुई इसका भी कोई प्रमाण नही है।

यहां प्रेमी युगल अपने प्रेम के सफल होने तथा नव दम्पति अपने सुखी दाम्पत्य जीवन की कामना के साथ मजार पर चादर चढ़ाकर दुआ करते हैं। मेले में मिठाई, नमकीन, हाट बाजार, मनिहारी, दैनिक सामग्री, ठण्डे पेय पदार्थ आदि की दुकानें लगाई जाती है जहां श्रद्धालु ने जमकर खरीददारी करते हैं। मेला स्थल पर संध्या काल में कबड्डी के मैच एवं कुश्ती के दंगल भी आयोजित किए जाते है जहां नामी-गिरामी पहलवान भाग लेते हैं।
 

वैसे तो प्रतिदिन ही कोई ना कोई श्रद्धालु इन मजारों पर नमक, पतासे झंडी आदि चढ़ाकर मन्नत मानते हैं, लेकिन मेले के दौरान पंजाब हरियाणा दिल्ली सहित राजस्थान के विभिन्न भागों से इन मजारों पर अपनी मन्नत मांगने के लिए पहुंचते है और श्रद्धा से शीश नवाते है। यहां आने वाले लोगों में सभी धर्मों के लोग होते हैं। यहाँ सिर्फ हिंदू और मुसलमान ही नहीं बल्कि सिख एवं ईसाई भी इस मेले में आते हैं। भारत पाक अंर्तराष्ट्रीय सीमा पर स्थित ये मज़ारे हिन्दू मुस्लिम एकता व सर्वधर्म सद्भाव का संदेश देती है।

Comments

  1. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है
    जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में
    पंचम का प्रयोग भी किया
    है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
    ..

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया
    है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा
    जंगल में चिड़ियों कि
    चहचाहट से मिलती है...
    My blog ... फिल्म

    ReplyDelete

Post a Comment

Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली