Skip to main content

राजस्थान में 'तमाशा' लोक नाट्य

राजस्थान में तमाशा का प्रारंभ-

तमाशा मूलतः महाराष्ट्र की नाट्य विधा है। राजस्थान के जयपुर में भी तमाशे की गौरवशाली परम्परा है। लगभग 300 वर्ष पूर्व यह लोकनाट्य महाराजा प्रतापसिंह के काल में प्रारंभ हुआ। इसके खिलाड़ी तमाशे को लेकर महाराष्ट्र से ही आए थे। इसे लाने व पोषित करने वाला महाराष्ट्र का भट्ट परिवार है। इस परिवार के लोगों ने ही तमाशा को जयपुर में थियेटर के रूप में शुरू किया तथा इसमें जयपुर ख्याल और ध्रुपद गायकी का समावेश किया। पं. बंशीधर भट्ट ने इस नाट्य में बहुत नाम कमाया, उन्हें राजस्थान में तमाशा थियेटर का जनक माना जाता है। इन्हें जयपुर राजघराने का भी संरक्षण प्राप्त था। यह परिवार आज भी विद्यमान हैं और परम्परागत विधि से आज भी तमाशा का लोक मंचन करता है। 

उस्ताद परम्परा

इस परिवार में उस्ताद परम्परा फूलजी भट्ट द्वारा स्थापित हुई। फूलजी भट्ट अपनी ध्रुपद गायकी के लिए प्रसिद्ध थे। आजकल गोपीकृष्ण भट्ट जो 'गोपीजी' के नाम से भी जाने जाते हैं, इस परम्परा के उस्ताद है। वे आज भी तमाशा का प्रतिवर्ष आयोजन करते हैं। इस परिवार में वासुदेव भट्ट रंगमंच व राजस्थानी और हिन्दी फिल्मों के एक अच्छे अभिनेता तथा गायक हैं। वे भी इस परम्परा को जीवित रखने में सक्रिय हैं। वासुदेव भट्ट गोपीजी के चचेरे भाई हैं। इन्होंने गोपीचन्द, हीर - रांझा तथा जोगी - जोगन तमाशा में मुख्य भूमिका निभाई। ये तमाशे आज भी लोकप्रिय हैं। वासुदेव भट्ट ने गोविन्द भक्त, इक्कीसवीं सदी, बंदर का ब्याह, लैला मजनूं और उद्धव प्रसंग आदि तमाशे लिखे एवं उन्हें निर्देशित कर मंचन किया। इन नाटकों का राजस्थान संगीत नाटक अकादमी द्वारा प्रकाशन भी कराया गया है।

तमाशा नाट्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है -

(i) जयपुर का 'तमाशा' नाट्य कई मायने में महाराष्ट्र के तमाशे से भिन्न हैं।
(ii) इसमें संवाद काव्यमय है तथा इन्हें राग-रागनियों में निबद्ध करके प्रस्तुत किया जाता है।
(iii) तमाशा खुले मंच पर होता है, इसे अखाड़ा कहा जाता है।
(iv) कई वर्षों से इस परम्परागत लोकनाट्य शैली का प्रदर्शन लगातार प्रतिवर्ष किया जाता है।
(v) इसमें संगीत, नृत्य और गायन तीनों की प्रधानता है। सारी संगीत रचनाएँ राग-रागनियों में निबद्ध होती है।
(vi) सिनेमा, टी.वी. व कम्प्यूटर के युग में भी आज भी दर्शकों के बीच तमाशा अत्यधिक लोकप्रिय नाट्य है।

Comments

  1. Replies
    1. टिपण्णी के लिए आपका बहुत बहुत आभार ...

      Delete

Post a Comment

Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार

Popular posts from this blog

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

राजपूताना मध्य भारत सभा -

राजपूताना मध्य भारत सभा - इस सभा का कार्यालय अजमेर में था। इसकी स्थापना 1918 ई. को दिल्ली कांग्रेस अधिवेशन के समय चाँदनी चौक के मारवाड़ी पुस्तकालय में की गई थी। यही इसका पहला अधिवेशन कहलाता है। इसका प्रथम अधिवेशन महामहोपाध्याय पंडित गिरधर शर्मा की अध्यक्षता में आयोजित किया गया था। इस संस्था का मुख्यालय कानपुर रखा गया, जो उत्तरी भारत में मारवाड़ी पूंजीपतियों और मजदूरों का सबसे बड़ा केन्द्र था।  देशी राज्यों की प्रजा का यह प्रथम राजनैतिक संगठन था। इसकी स्थापना में प्रमुख योगदान गणेश शंकर विद्यार्थी, विजयसिंह पथिक, जमनालाल बजाज, चांदकरण शारदा, गिरधर शर्मा, स्वामी नरसिंह देव सरस्वती आदि के प्रयत्नों का था।  राजपूताना मध्य भारत सभा का अध्यक्ष सेठ जमनालाल बजाज को तथा उपाध्यक्ष गणेश शंकर विद्यार्थी को बनाया गया। इस संस्था के माध्यम से जनता को जागीरदारी शोषण से मुक्ति दिलाने, रियासतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना करने तथा जनता में राजनैतिक जागृति लाने का प्रयास किया गया।  इस कार्य में संस्था के साप्ताहिक समाचार पत्र ''राजस्थान केसरी'' व सक्रिय कार्यकर्ताओं ...

THE SCHEDULED AREAS Villages of Udaipur district - अनुसूचित क्षेत्र में उदयपुर जिले के गाँव

अनुसूचित क्षेत्र में उदयपुर जिले के गाँव- अनुसूचित क्षेत्र में सम्मिलित उदयपुर जिले की 8 पूर्ण तहसीलें एवं तहसील गिर्वा के 252, तहसील वल्लभनगर के 22 व तहसील मावली के 4 गांव सम्मिलित किए गए हैं। ये निम्नानुसार है- 1. उदयपुर जिले की 8 पूर्ण तहसीलें (कोटड़ा, झाडोल, सराड़ा, लसाड़िया, सलूम्बर, खेरवाड़ा, ऋषभदेव, गोगुन्दा) - 2. गिर्वा तहसील (आंशिक) के 252 गाँव - S. No. GP Name Village Name Village Code Total Population Total Population ST % of S.T. Pop to Total Pop 1 AMBERI AMBERI 106411 3394 1839 54.18 2 AMBERI BHEELON KA BEDLA 106413 589 573 97.28 3 AMBERI OTON KA GURHA 106426 269 36 13.38 4 AMBERI PRATAPPURA 106427 922 565 61.28 5 CHEERWA CHEERWA 106408 1271 0 0.00 6 CHEERWA KARELON KA GURHA 106410 568 402 70.77 7 CHEERWA MOHANPURA 106407 335 313 93.43 8 CHEERWA SARE 106406 2352 1513 64.33 9 CHEERWA SHIVPURI 106409 640 596 93.13 10 DHAR BADANGA 106519 1243 1243 100.00 11 DHAR BANADIYA 106...