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Folk Dances of Rajasthan -- राजस्थान के लोक नृत्य - 1





राजस्थान एक भौगोलिक एवं सांस्कृतिक विविधतायुक्त प्रदेश है। इसकी माटी में लोकगीतों की मिठास है तो इसकी हवा में मेलों और उत्सवों का उल्लास है। राजस्थान अपने विविधता पूर्ण भाषा, रीति-रिवाजों, कला शैलियों आदि के लिए सम्पूर्ण विश्व में अलग पहचान रखता है। राजस्थान की इसी विविधता ने इस प्रदेश के लोक नृत्यों को भी विविधता प्रदान की है और यहाँ के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग शैली के नृत्य विकसित हुए हैं। ये प्रमुख लोकनृत्य इस प्रकार हैं -

 1. घूमर नृत्य - 

घूमर नृत्य “लोक नृत्यों की आत्मा” कहलाता है। यह पूरे राज्य में लोकप्रिय है तथा विवाह, मांगलिक अवसरों व त्यौहारों विशेष रूप से गणगौर पर महिलाओं द्वारा किया जाता है। इसमें लहँगा पहने स्त्रियाँ गोल घेरे में लोकगीत गाती हुई घूमते हुए नृत्य करती है। जब ये महिलाएँ विशिष्ट शैली में नाचती है तो उनके लहँगे का घेर एवं हाथों का संचालन अत्यंत आकर्षक होता है। गोल घेरा और हाथों का लचकदार संचालन इस नृत्य की विशेषता है। हाथों का संचालन करते हुए महिलाएं घूमती है उसे घूमर लेना कहते हैं तथा उनके लहंगे के घेर को कुंभ कहते हैं। लहंगे लूम के कारण इसे घूमर कहते हैं। इसमें 8 विशेष चरण (Steps) होते हैं जिन्हें सवाई कहा जाता है। घूमर को राजस्थान के नृत्यों की आत्मा, नृत्यों का सिरमौर तथा रजवाड़ी या सामन्ती नृत्य भी कहते हैं। यह राजस्थान का राज्य नृत्य भी है, जो महाराजा उम्मेद सिंह के समय प्रारंभ हुआ माना जाता है। घूमर नृत्य के दौरान ढोल, नगाड़े, शहनाई आदि का प्रयोग किया जाता है। यह नृत्य मूलतः मध्य एशिया का माना जाता है।  घूमर के तीन रूप माने जाते हैं- 
                      (1) घूमर                (2) लूर                 (3) झुमरियो।

2. गैर नृत्य -

यह होली के दिनों में मेवाड़ एवं बाड़मेर में खेला जाता है। यह पुरुषों का नृत्य है । गोल घेरे में इसकी संरचना होने के कारण ही इसे 'गैर' कहा जाता है । इसमें पुरुषों की टोली हाथों में लंबी डंडियां ले कर ढोल व थाली-माँदल वाद्य की ताल पर वृत्ताकार घेरे में नृत्य करते हुए मंडल बनाते हैं । इस नृत्य में तेजी से पद संचालन और डंडियोँ की टकराहट से तलवारबाजी या पट्टयुद्ध का आभास होता है। मेवाड़ एवं बाड़मेर में गैर की मूल रचना समान है किंतु नृत्य की लय, ताल और मंडल में अंतर होता है। 

3. अद्भुत कालबेलिया नृत्य- 

"कालबेलिया" राजस्थान की एक अत्यंत प्रसिद्ध नृत्य शैली है। कालबेलिया सपेरा जाति को कहते हैं । अतः कालबेलिया सपेरा जाति का नृत्य है। इसमें गजब का लोच और गति होती है जो दर्शक को सम्मोहित कर देती है । यह नृत्य दो महिलाओं द्वारा किया जाता है। पुरुष नृत्य के दौरान बीन व ताल वाद्य बजाते हैं। इस नृत्य में कांच के टुकड़ों व जरी-गोटे से तैयार काले रंग की कुर्ती, लहंगा व चुनड़ी पहनकर सांप की तरह बल खाते हुए नृत्य की प्रस्तुति की जाती है। इस नृत्य के दौरान नृत्यांगनाओं द्वारा आंखों की पलक से अंगूठी उठाने, मुंह से पैसे उठाना, उल्टी चकरी खाना आदि कलाबाजियां दिखाई जाती है। केन्या की राजधानी नैरोबी में नवंबर, 2010 में हुई अंतरसरकारी समिति की बैठक में  यूनेस्को ने कालबेलिया नृत्य को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में भी शामिल किया है। इस नृत्य को विशेष पहचान नृत्यांगना 'गुलाबो' ने दिलाई, जिन्होंने देश में ही नहीं विदेशों में भी अपनी कलाकारी दिखाई। 

गुलाबो-  

अजमेर  जिले के कोटड़ा गांव में धनतेरस को 1971 में जन्मी 'गुलाबो' (गुलाब) अपने परिवार के साथ दस बरस की उम्र में जयपुर की सुभाष कालोनी, शास्त्री नगर में 1981 में आ बसी थी। कालबेलिया समाज के ही सोहन लाल से उसने 6.1.1986 को उसका विवाह हुआ था। मात्र 14-15 साल की उम्र में उसे भारत महोत्सव में जाने का मौका मिल गया था। गुलाब अब तक 170 से अधिक बार विदेश में अपने कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुकी है।  गुलाब के दो लड़के तीन लड़कियां हुए। वे बिग-बॉस शो में काम करने से भी सुर्खियों में रही है। 

4. शेखावटी का गींदड़ नृत्य- 

शेखावटी का लोकप्रिय नृत्य है । यह विशेष तौर पर होली के अवसर पर किया जाता है। चुरु, झुंझुनूं , सीकर जिलों में इस नृत्य के सामूहिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं । नगाड़ा इस नृत्य का प्रमुख वाद्य है । नर्तक नगाड़े की ताल पर हाथों में डंडे ले कर उन्हें टकराते हुए नाचते हैं । नगाडे की गति बढ़ने के साथ यह नृत्य भी गति पकड़ता है । इस नृत्य में साधु, सेठ-सेठानी, दुल्हा-दुल्हन, शिकारी आदि विभिन्न प्रकार के स्वांग भी निकाले जाते हैं ।

ये देखिये इस नृत्य का एक विडियो---

5. मारवाड का डांडिया नृत्य- 

मारवाड के इस लोकप्रिय नृत्य में भी गैर व गींदड़ नृत्यों की तरह डंडों को आपस में टकराते हुए नर्तन होता है तथा यह भी होली के अवसर पर पुरुषों द्वारा किया जाता है किन्तु पद संचालन, ताल-लय, गीतों और वेशभूषा की दृष्टि से ये पूर्णतया भिन्न हैं। इस नृत्य के समय नगाडा और शहनाई बजाई जाती है । 

6. कामड़ जाति का विशिष्ट तेरहताली नृत्य- 

यह एक ऐसा नृत्य है जो बैठ कर किया जाता है । इस अत्यंत आकर्षक नृत्य में महिलाएँ अपने हाथ, पैरों व शरीर के 13 स्थानों पर मंजीरें बाँध लेती है तथा दोनों हाथों में बँधे मंजीरों को गीत की ताल व लय के साथ तेज गति से शरीर पर बँधे अन्य मंजीरो पर प्रहार करती हुई विभिन्न भाव-भंगिमाएं प्रदर्शित करती है। इस नृत्य के समय पुरुष तंदूरे की तान पर रामदेव जी के भजन गाते हैं । इस नृत्य का उद्गम स्थल पाली जिले के पादरली में माना जाता है। 
यह एकमात्र नृत्य है जो बैठ कर किया जाता है। मांगी बाई, मोहनी नारायण, लक्ष्मण दास कामड़ इसके प्रमुख कलाकार हैं। 

7. उदयपुर का भवई नृत्य-

भवाई जाति का चमत्कारिकता एवं करतब के लिए प्रसिद्ध यह नृत्य उदयपुर संभाग (उदयपुर, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा) में अधिक प्रचलित है। यह मूलतः मटका नृत्य है और मटका इस नृत्य की पहचान है। नाचते हुए सिर पर एक के बाद एक, सात-आठ मटके रख कर थाली के किनारों पर नाचना, गिलासों पर नृत्य करना, नाचते हुए जमीन से मुँह से रुमाल उठाना, नुकीली कीलों पर नाचना आदि करतब इसमें दिखाए जाते हैं। इसमें नृत्य अदायगी, अद्भुत लयबद्ध शारीरिक क्रियाएँ प्रमुख विशेषताएँ हैं। बोराबोरी, शंकरियाँ, सूरदास, बीकाजी, बाघाजी , ढोला -मारू आदि  प्रमुख प्रकार हैं। 
प्रमुख कलाकार - कलजी, कुसुम, द्रोपदी, रूप सिंह शेखावत, पुष्पा  व्यास (जोधपुर), सांगी लाल संगडिया (बाड़मेर), तारा शर्मा, दयाराम, स्वरुप पंवार (बाड़मेर) आदि। 
पुष्पा  व्यास (जोधपुर) भवई की वह कलाकार है, जिसने इस नृत्य को राजस्थान के बाहर इसे प्रोत्साहित किया।





8. जसनाथी संप्रदाय का अग्नि नृत्य-

यह नृत्य जसनाथी संप्रदाय के लोगों द्वारा रात्रिकाल में धधकते अंगारों पर किया जाता है। नाचते हुए नर्तक कई बार अंगारों के ऊपर से गुजर जाता है। नाचते हुए ही वह अंगारों को हाथ में उठाता है तथा मुँह में भी डाल लेता है। यह नृत्य पुरुषों द्वारा ही किया जाता है।  बीकानेर का कतरियासर गांव इसका मुख्य स्थल है। इसमें नृत्य करते समय आग से मतीरा फोड़ना, तलवार के करतब दिखाना, प्रमुख है। इसमें नर्तक नृत्य करते समय फर्ते-फर्ते बोलता है। इस नृत्य में आग के साथ राग व फाग का सुन्दर समन्वय देखने को मिलता है। बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने इस नृत्य को संरक्षण प्रदान किया था।

9. जालोर का ढोल नृत्य- 

जालोर के इस प्रसिद्ध नृत्य में 4 या 5 ढोल एक साथ बजाए जाते हैं । सबसे पहले समूह का मुखिया ढोल बजाता है। तब अलग अलग नर्तकों में से कोई हाथ में डंडे ले कर, कोई मुँह में तलवार ले कर तो कोई रूमाल लटका कर नृत्य करता है । यह नृत्य अक्सर विवाह के अवसर पर किया जाता है । 

10. चरी नृत्य- 

राजस्थान के गाँवों में पानी की कमी होने के कारण महिलाओं को कई किलोमीटर तक सिर पर घड़ा (चरी) उठाए पानी भरने जाना पड़ता है । इस नृत्य में पानी भरने जाते समय के आल्हाद और घड़ोँ के सिर पर संतुलन बनाने की अभिव्यक्ति है। इस नृत्य में महिलाएँ सिर पर पीतल की चरी रख कर संतुलन बनाते हुए पैरों से थिरकते हुए हाथों से विभिन्न नृत्य मुद्राओं को प्रदर्शित करती है। नृत्य को अधिक आकर्षक बनाने के लिए घडे के ऊपर कपास से ज्वाला भी प्रदर्शित की जाती है । किशनगढ़ की “फलकू बाई” इस नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यांगना है।

कुछ नृत्यों का विडियो यहाँ है---

11. कठपुतली नृत्य-

इसमें विभिन्न महान लोक नायकों यथा महाराणा प्रताप, रामदेवजी, गोगाजी आदि की कथा अथवा अन्य विषय वस्तु को कठपुतलियों के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है। यह राजस्थान की अत्यंत लोकप्रिय लोककला है। यह उदयपुर में अधिक प्रचलित है।  

12. गरासिया जनजाति का वालर नृत्य-

वालर गरासिया जनजाति का एक महत्वपूर्ण नृत्य है । यह घूमर नृत्य का एक प्रतिरूप है। इसमें माँदल, चंग व अन्य वाद्य यंत्रों की थाप पर नर्तक अपने कौशल का प्रदर्शन करते हुए थिरकते हैं। इसमें स्त्री-पुरुष अर्द्धवृत्त बनाकर नाचते हैं।

13. चंग नृत्य -  

पुरुषों के इस नृत्य में प्रत्येक पुरुष के हाथ में एक चंग होता है और वह चंग बजाता हुआ वृत्ताकार घेरे में नृत्य करता है। इस दौरान एक वादक बाँसुरी भी बजाता रहता और सभी होली के गीत व धमाल गाते हैं। 

14. कच्छी घोड़ी नृत्य-

कच्छी घोड़ी नृत्य में ढाल और लम्बी तलवारों से लैस नर्तकों का ऊपरी भाग दूल्हे की पारम्परिक वेशभूषा में रहता है और निचले भाग में बाँस या लकड़ी के ढाँचे पर कागज़ की लुगदी से बने घोड़े का ढाँचा होता है, जिससे यह ऐसा आभास देता है जैसे नर्तक घोड़े पर बैठा है। यह नृत्य केवल पुरुषों द्वारा ही किया जाता है। इसमें चार-चार पंक्तियों में पुरूष आमने-सामने खड़े होकर नृत्य करते हैं। नृत्य करते समय फूल की पंखुडियों के खिलने का आभास होता है। इस प्रकार यह नृत्य पैटर्न बनाने की कला पर आधारित है। 
यह शादियों और उत्सवों पर भी किया जाता है। इस नृत्य में कभी-कभी एक या दो महिलाएँ भी इस घुड़सवार के साथ नृत्य करती है। इसमें नृतक हाथ में तलवार रखते है। इसमें दो नर्तकों के बीच  बर्छेबाज़ी के मुक़ाबले का प्रदर्शन भी किया जाता है। इसका वाद्य यंत्र चंग हैं। यह शेखावटी कुचामन , परबतसर, डीडवाना आदि क्षेत्र में विशेष रूप में किया जाता है। सरगड़े, कुम्हार, भांसी, ढोली यह नृत्य करते हैं। इसके साथ लसकरिया, बींद, रसाला, रंगमारिया आदि गीत गाए जाते हैँ।

15. पनिहारी नृत्य-

पनिहारी का अर्थ होता है पानी भरने जाने वाली। पनिहारी नृत्य घूमर नृत्य के सदृश्य होता है। इसमें महिलाएँ सिर पर मिट्टी के घड़े रखकर हाथों एवं पैरों के संचालन के साथ नृत्य करती है। यह एक समूह नृत्य है और अक्सर उत्सव या त्यौहार पर किया जाता है।

16. बमरसिया या बम नृत्य-

यह अलवर और भरतपुर क्षेत्र का नृत्य है और होली का नृत्य है। इसमें दो व्यक्ति एक नगाड़े को डंडों से बजाते हैं तथा अन्य वादक थाली, चिमटा, मंजीरा,ढोलक व खड़ताल आदि बजाते हैं और नर्तक रंग बिरंगे फूंदों एवं पंखों से बंधी लकड़ी को हाथों में लेकर उसे हवा में उछालते हैं। इस नृत्य के साथ होली के गीत और रसिया गाए जाते हैं। बम या नगाड़े के साथ रसिया गाने से ही इसे बमरसिया कहते हैं।

17. हाड़ौती का चकरी नृत्य-

यह नृत्य हाड़ौती अंचल (कोटा,बारां और बूंदी) की कंजर जाति की बालाओं द्वारा विभिन्न अवसरों विशेषकर विवाह के आयोजन पर किया जाता है। इसमें नर्तकी चक्कर पर चक्कर घूमती हुई नाचती है तो उसके घाघरे का लहराव देखते लायक होता है। लगभग पूरे नृत्य में कंजर बालाएं लट्टू की तरह घूर्णन करती है। इसी कारण इस नृत्य को चकरी नृत्य कहा जाता है। इस नृत्य में ढफ, मंजीरा तथा नगाड़े वाद्य का प्रयोग होता है।

18. लूर नृत्य-

मारवाड का यह नृत्य फाल्गुन माह में प्रारंभ हो कर होली दहन तक चलता है। यह महिलाओं का नृत्य है। महिलाएँ घर के कार्य से निवृत हो कर गाँव में नृत्य स्थल पर इकट्ठा होती है एवं उल्लास के साथ एक बड़े घेरे में नाचती हैं।

19. घुड़ला नृत्य-

यह मारवाड का नृत्य है जिसमें छेद वाले मटकी में दीपक रख कर स्त्रियाँ टोली बना कर पनिहारी या घूमर की तरह गोल घेरे में गीत गाती हुई नाचती है। इसमें धीमी चाल रखते हुए घुड़ले को नजाकत के साथ संभाला जाता है। इस नृत्य में ढोल, थाली, बाँसुरी, चंग, ढोलक, नौबत आदि मुख्य हैं। यह नृत्य मुख्यतः होली पर किया जाता है जिसमें चंग प्रमुख वाद्य होता है। इस समय गाया जाने वाला गीत है - "घुड़लो घूमै छः जी घूमै छः , घी घाल म्हारौ घुड़लो ॥"


20. लहँगी नृत्य –


यह बारां जिले के सहरिया जनजाति द्वारा किया जाने वाला सामूहिक नृत्य है, जिसमें पुरूष एक घेरे में नृत्य करते हैं ।



21 . शिकारी नृत्य –


यह भी बारां जिले के सहरिया पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य है, जिसमें शिकार का अभिनय करते हुए पुरूष नृत्य करते हैं।



22 . धाकड़ नृत्य –


कंजरो द्वारा झाला पाव की विजय की खुशी में हथियार लेकर किया जाने वाला युद्ध नृत्य है ।

23 . रणबाजा रतवई नृत्य – 

रणबाजा अलवर जिले के मेव स्त्री-पुरुषों द्वारा मिलकर मांगलिक अवसरों पर किया जाता है।

24. रतवई नृत्य –

इसमें अलवर जिले की मेव स्त्रियां सिर पर इण्डोणी व सिरकी (खारी) रखकर हाथों में पहनी हुई हरी चूड़ियाँ खनकाते हुए नृत्य करती है और पुरुष अलगोजा व टामक बजाते है।

25. नाहर नृत्य –

भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में होली के 13 दिन पश्चात रंगतेरस पर नाहर नृत्य का आयोजन किया जाता है। रंगतेरस के अवसर पर होने वाले नाहर नृत्य में कई पीढ़ियों से माली समाज के लोग शरीर पर रूई लपेटकर नाहर (शेर) का स्वांग रचकर ढोल, बांक्या जैसे वाद्य यंत्रों की विशेष धुन पर नृत्य करते हैं। इसमें मांडल कस्बे में सदर बाजार से बादशाह तालाब की पाल से बेगम की सवारी निकाली जाती है जो कि तहसील परिसर में प्रशासनिक अधिकारियों को रंग खिलाकर नाहर नृत्य देखने का न्योता देते हुए वापस आती है।
नाहर नृत्य की परंपरा 400 वर्षों से अधिक पुरानी है। यह परंपरा जब से चली आ रही है जब शाहजहां मेवाड़ से दिल्ली जाते समय मांडल तालाब की पाल पर रुके थे। 

26 . नाथद्वारा का डांग नृत्य-

यह नृत्य राजसमंद जिले के नाथद्वारा में होली के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य है। इसे स्त्री-पुरुष साथ-साथ करते हैं। पुरुषों द्वारा भगवान श्री कृष्ण की एवं स्त्रियों द्वारा राधा जी की नकल की जाती है तथा वैसे ही वस्त्र धारण किए जाते हैं।

27.  बड़ा भानुजा का " फूल - डोल नृत्य" - 

राजस्थान के एक बहुत शानदार नृत्य शैली, राजसमंद जिले के हल्दीघाटी के निकट खमनोर ब्लॉक के ग्राम बड़ा भानुजा का "फूल - डोल नृत्य" है। इस नृत्य प्रारूप में होली के दूसरे दिन गांव के सभी पुरुष दूल्हे की पोशाक पहनकर नर्तन करते हैं।

28. लुंबर नृत्य -

यह “जालौर” क्षेत्र में होली के अवसर पर महिलाओं द्वारा सामूहिक रुप से किया जाता है। इसमें ढोल, चंग वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है।

29.  लांगुरिया नृत्य- 

करौली जिले की कैला देवी के मेले में किया जाने वाला नृत्य 'लांगुरिया' कहलाता है। लांगुरिया हनुमान जी का लोक स्वरुप है। करौली क्षेत्र की कैला मैया, हनुमान जी की मां अंजना का अवतार मानी जाती है। नवरात्रि के दिनों में करौली क्षेत्र में लांगुरिया नृत्य होता है। इस में स्त्री-पुरुष सामूहिक रुप से भाग लेते हैं। नृत्य के दौरान नफ़ीरी तथा नौबत बजाई जाती है। इस के दौरान लांगुरिया को संबोधित करके हल्के-फुल्के हास्य व्यंग्य किए जाते हैं।

30 . पेजण नृत्य -

यह वागड़ (डूंगरपुर, बांसवाड़ा) क्षेत्र का यह लोकप्रिय नृत्य पुरुषों का नृत्य है, जिसमें एक दीपावली के अवसर पर, स्त्री पात्रों की भूमिका करते हुए पुरुषों द्वारा किया जाता है। यह नारी मनोभावों की अभिव्यक्ति का संदेश देता है ।

31. भील, मीणाओ का नेजा नृत्य-

होली के तीसरे दिन खेले जाने वाला खेल नृत्य हैं जो प्राय खेरवाड़ा और डूंगरपुर के भील व मीणा में प्रचलित है। इसमें एक बड़ा खंभा जमीन में गाड़कर उसके सिर पर नारियल बांध दिया जाता है। स्त्रियां हाथों में छोटी छड़ियाँ व बलदार कोरड़े लेकर खम्भ को चारों ओर से घेर लेती हैं। पुरुष वहां से थोड़ी दूर पर खड़े हुए रहते हैं तथा नारियल लेने के लिए खंभों पर चढ़ने का प्रयास करते हैं। स्त्रियां उनको छड़ियों व कोरड़े से पीटकर भगाने का प्रयास करती है।

राजस्थान की विभिन्न जातियों के लोकनृत्य

राजस्थान में अलग-अलग जातियों द्वारा अलग-अलग अवसरों पर लोकनृत्य किए जाते हैं।

आगे विभिन्न जातियों द्वारा किए जाने वाले लोकनृत्यों का विवरण दिया जा रहा है-

1. गरासिया जाति के लोकनृत्य

1   वालर नृत्य   बिना किसी वाद्य यंत्र के स्त्री-पुरुषों द्वारा दो अर्द्धवृतों में धीमी गति से किया जाने वाला नृत्य।
2   कूद नृत्य    गरासिया स्त्री-पुरुषों द्वारा तालियों की ध्वनि पर बिना वाद्य यंत्र के किया जाने वाला नृत्य।
3   जवारा नृत्य    होली दहन के समय स्त्री-पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
4   लूर नृत्य   लूर गौत्र की स्त्रियों द्वारा वधू पक्ष से रिश्ते की मांग करने का नृत्य।
5   मोरिया नृत्य    विवाह के अवसर पर पुरुषों द्वारा किया जाने वाला समूह नृत्य।
6   मांदल नृत्य   मांगलिक अवसरों  पर स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला वृताकार नृत्य।
7   रायण नृत्य    मांगलिक अवसरों पर पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
8   गौर नृत्य    गणगौर पर स्त्री-पुरुषों द्वारा किया जाने वाला सामूहिक नृत्य।

2. भील जाति के लोकनृत्य

1   गवरी (राई) नृत्य   गवरी उत्सव पार्वती की आराधना में 40 दिन चलता है। इसमें शिव व भस्मासुर की 
कथा का अधिक प्रचलन है। शिव को बूढ़िया और मसखरे को कुटकुड़िया कहा जाता हैं।
2   गैर नृत्य    होली के अवसर पर भील पुरुषों द्वारा किया जाने वाला सामूहिक वृताकार नृत्य।
3   नेजा नृत्य    होली व मांगलिक अवसरों पर भील स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला सामूहिक खेल-नृत्य।
4   द्विचक्री नृत्य    विवाह व मांगलिक अवसरों पर पुरुष बाहरी वृत और महिलाएं अंदर के  वृत में नाचती है।
5   घूमरा नृत्य    मांगलिक अवसरों पर भील महिलाओ द्वारा ढोल व थाली पर किया जाने वाला नृत्य।
6   हाथीमना नृत्य   यह विवाह के अवसर पर किया जाता है।
7   युद्धनृत्य नृत्य    दो दलों द्वारा युद्ध का अभिनय करते हुए किया जाता है।

3.  कथोड़ी जाति के लोकनृत्य

1   मावलिया नृत्य    नवरात्रों में उदयपुर के कथोड़ी पुरुषों द्वारा किया जाने वाला समूह नृत्य।
2   होली नृत्य    होली के अवसर पर कथौड़ी  महिलाओं द्वारा किया जाने वाला समूह नृत्य।

4.सहरिया जाति के लोकनृत्य

1   शिकारी नृत्य – 
बाँरा जिले के सहरिया पुरुषों द्वारा शिकार का अभिनय करते हुए किया जाता है।
2   लहँगी नृत्य –    सहरियो का सामूहिक नृत्य।

5. कंजर जाति के लोकनृत्य

1   चकरी नृत्य    हाड़ौती क्षेत्र में प्रसिद्ध कंजर बालाओ द्वारा तेज गति से किया जाने वाला चक्राकार  नृत्य।
2   धाकड़ नृत्य   कंजरो द्वारा झाला पाव की विजय की खुशी में किया जाने वाला युद्ध नृत्य।

6. कालबेलिया जाति के लोकनृत्य

1   इण्डोणी नृत्य   स्त्री पुरुषों द्वारा पूँगी व खंजरी वाद्य पर किया जाने वाला वृताकार नृत्य।
2   शंकरिया नृत्य     कालबेलियों द्वारा किया जाने वाला आकर्षक प्रेमकथा आधारित युगल-नृत्य।
3   पणिहारी नृत्य    पणिहारी गीत के साथ किया जाने वाला  युगल-नृत्य।
4   बागड़िया नृत्य    स्त्रियों द्वारा भीख मांगते समय किया जाता है।

7. गुर्जर जाति के लोकनृत्य

1   चरी नृत्य    किशनगढ़-अजमेर क्षेत्र में गुर्जर महिलाएं मांगलिक अवसरों पर सिर पर चरी 
बर्तन से दीपक जलाकर नृत्य करती है।

8. मेव जाति के लोकनृत्य

1   रणबाजा नृत्य –   मेवों का युगल नृत्य है।
2   रतवई नृत्य –   स्त्री-पुरुषों द्वारा मिलकर मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। मेव स्त्रियां सिर पर 
इण्डोणी व खारी नृत्य करती है और पुरुष अलगोजा व टामक बजाते है।

9. मेव जाति के लोकनृत्य

1   कठपुतली नृत्य    नट जाति द्वारा किया जाता है।

 

राजस्थान के नृत्यों के बारें में जानने के लिए यह भी देखिए- राजस्थान के लोकनृत्य - 2

 

Comments

  1. धन्यवाद Manak ram जी। आपका बहुत बहुत आभार।

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  2. kuch photo hone chaiye the
    lok dance ke

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  3. Anonymous (बेनाम साहब), फोटो डालने का भी प्रयास करेंगे...। धन्यवाद आपका जी। आपका बहुत बहुत आभार।

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  4. अर्चना जी धन्यवाद आपकाएवं बहुत बहुत आभार।

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  5. Om Prakash Soni3 May 2014 at 06:01

    प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टि से अत्यंत ज्ञानवर्धक जानकारी देने के लिए धन्यवाद।

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  6. Omprakash Soni ji आपका सादर आभार....

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  7. बहुत सुन्दर, उपयोगी और कीमती संकलन..


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  8. आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद....

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  9. Thank you

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  10. आभार Sandeep Respwak जी...

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  11. Ger lock nartya me purso(logo) ki dress ko kya kahte he

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    1. गैर नृत्य करते समय पुरूष एक विशेष प्रकार का वस्त्र पहनते हैं, जिसे ओंगी कहा जाता हैं।

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  12. Replies
    1. आपका अत्यंत धन्यवाद और आभार..

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    2. Total 29 h aapne 19 ka hi bataya

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  13. Sanghi sagvad ji konse jile ke hai

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  14. Replies
    1. Thanks... आपका बहुत बहुत आभार ...

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  15. Replies
    1. Thanks... आपका बहुत बहुत आभार ...

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  16. Rajasthan gk
    www.online-study.org.in

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हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

THE SCHEDULED AREAS Villages of Udaipur district - अनुसूचित क्षेत्र में उदयपुर जिले के गाँव

अनुसूचित क्षेत्र में उदयपुर जिले के गाँव- अनुसूचित क्षेत्र में सम्मिलित उदयपुर जिले की 8 पूर्ण तहसीलें एवं तहसील गिर्वा के 252, तहसील वल्लभनगर के 22 व तहसील मावली के 4 गांव सम्मिलित किए गए हैं। ये निम्नानुसार है- 1. उदयपुर जिले की 8 पूर्ण तहसीलें (कोटड़ा, झाडोल, सराड़ा, लसाड़िया, सलूम्बर, खेरवाड़ा, ऋषभदेव, गोगुन्दा) - 2. गिर्वा तहसील (आंशिक) के 252 गाँव - S. No. GP Name Village Name Village Code Total Population Total Population ST % of S.T. Pop to Total Pop 1 AMBERI AMBERI 106411 3394 1839 54.18 2 AMBERI BHEELON KA BEDLA 106413 589 573 97.28 3 AMBERI OTON KA GURHA 106426 269 36 13.38 4 AMBERI PRATAPPURA 106427 922 565 61.28 5 CHEERWA CHEERWA 106408 1271 0 0.00 6 CHEERWA KARELON KA GURHA 106410 568 402 70.77 7 CHEERWA MOHANPURA 106407 335 313 93.43 8 CHEERWA SARE 106406 2352 1513 64.33 9 CHEERWA SHIVPURI 106409 640 596 93.13 10 DHAR BADANGA 106519 1243 1243 100.00 11 DHAR BANADIYA 106...

Scheduled Areas of State of Rajasthan - राजस्थान के अनुसूचित क्षेत्र का विवरण

राजस्थान के अनुसूचित क्षेत्र का विवरण (जनगणना 2011 के अनुसार)-   अधिसूचना 19 मई 2018 के अनुसार राजस्थान के दक्षिण पूर्ण में स्थित 8 जिलों की 31 तहसीलों को मिलाकर अनुसूचित क्षेत्र निर्मित किया गया है, जिसमें जनजातियों का सघन आवास है। 2011 की जनगणना अनुसार इस अनुसूचित क्षेत्र की जनसंख्या 64.63 लाख है, जिसमें जनजाति जनसंख्या 45.51 लाख है। जो इस क्षेत्र की जनसंख्या का 70.42 प्रतिशत हैं। इस क्षेत्र में आवासित जनजातियों में भील, मीणा, गरासिया व डामोर प्रमुख है। सहरिया आदिम जाति क्षेत्र- राज्य की एक मात्र आदिम जाति सहरिया है जो बांरा जिले की किशनगंज एवं शाहबाद तहसीलों में निवास करती है। उक्त दोनों ही तहसीलों के क्षेत्रों को सहरिया क्षेत्र में सम्मिलित किया जाकर सहरिया वर्ग के विकास के लिये सहरिया विकास समिति का गठन किया गया है। क्षेत्र की कुल जनसंख्या 2.73 लाख है जिसमें से सहरिया क्षेत्र की अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 1.02 लाख है जो क्षेत्र की कुल जनसंख्या का 37.44 प्रतिशत है।  अनुसूचित क्षेत्र में राजकीय सेवाओं में आरक्षण सम्बन्धित प्रावधान-  कार्मिक (क-...