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राजस्थान की जल धरोहरों की झलक : - 3

वैभवशाली राजस्थान के गौरवपूर्ण अतीत में पानी को सहेजने की परम्परा का उदात्त स्वरुप यहाँ की झीलों, सागर-सरोवरों,कलात्मक बावड़ियों और जोहड़ आदि में परिलक्षित होता है। स्थापत्य कला में बेजोड़ ये ऐतिहासिक धरोहरेँ जहाँ एक ओर जनजीवन के लिए वरदान है तो वहीं दूसरी ओर धार्मिक आस्था और सामाजिक मान्यताओं का प्रतिबिम्ब भी है।
राजस्थान में प्राचीन काल से ही लोग जल स्रोतों के निर्माण को प्राथमिकता देते थे। आइए इस कार्य से संबंधित शब्दों पर एक नजर डालें।


मीरली या मीरवी-
तालाब, बावड़ी, कुण्ड आदि के लिए उपयुक्त स्थान का चुनाव करने वाला व्यक्ति।


कीणिया-
कुआँ खोदने वाला उत्कीर्णक व्यक्ति।


चेजारा-
चुनाई करने वाला व्यक्ति।

आइए राजस्थान की जल विरासत की झाँकी का अवलोकन करें!


चाँद बावड़ी - आभानेरी दौसा-

दौसा जिले की बाँदीकुई तहसील के आभानेरी गाँव में लगभग 11 वीं शताब्दी में बनी चाँद बावड़ी करीब 100 फुट गहरी एवं विशाल है। किंवदंती है कि इसका निर्माण आभानेरी के संस्थापक राजा चंद्र ने कराया था। अद्भुत कलात्मकता की प्रतीक चाँद बावड़ी के तीन ओर आकर्षक सीढ़ियाँ एवं विश्राम घाट बने हुए हैं। इस बावड़ी के नीचे एक लंबी सुरंग है तथा माना जाता है कि भंडारेज स्थित बड़ी बावड़ी से होती हुई आलूंदा गाँव के कुंड तक जाती है।


जलमहल या मानसागर जयपुर-

जयपुर-आमेर रोड पर स्थित इस मानसागर तालाब का निर्माण सवाई मानसिंह द्वितीय ने जयपुर की जल आपूर्ति के लिए कराया था। इसी मानसागर में सुंदर जलमहल स्थित है। यह काफी समय तक शिकार व सैरगाह बना रहा था। मध्यकालीन वास्तुकला का अद्भुत नमूना यह जलमहल वर्ग आकार में हैं तथा इसमें दो मंजिलें हैं। इसकी अपूर्व सुंदरता इसकी छतरियों व जीनो से दृष्टिगोचर होती हैं।


सागर जलाशय अलवर-

सागर नामक यह जलाशय अलवर में सिटी पेलेस के पीछे दुर्ग की पहाड़ी के नीचे स्थित है। यह आयताकार है तथा इसके चारों तरफ लाल पत्थर की 12 छतरियां है। इसके दक्षिण में मूसी महारानी की छतरी तथा उत्तर में किशन कुंड है। राजस्थानी शैली की स्थापत्य कला इसे अनूठा सौंदर्य प्रदान करती है।


सिलीसेढ़ झील अलवर-

अलवर से 16 किमी दूर तीन ओर से अरावली पर्वत श्रृंखलाओं से घिरी सिलीसेढ़ एक सुरम्य स्थली है। इस झील के किनारे लेकपैलेस हैं एवं यहाँ नौका विहार के लिए पैडल बोट भी उपलब्ध होती है।

पन्ना मीना की बावड़ी, आमेर जयपुर-

अत्यंत आकर्षक इस बावड़ी के एक ओर जयगढ़ दुर्ग व दूसरी ओर पहाड़ों की नैसर्गिक सुंदरता है। यह अपनी अद्भुत आकार की सीढ़ियों, अष्टभुजा किनारों और बरामदो के लिए विख्यात है। चाँद बावड़ी तथा हाड़ी रानी की बावड़ी के समान इसमें भी तीन तरफ सीढ़ियाँ है। इसके चारों किनारों पर छोटी-छोटी छतरियां और लघु देवालय इसे मनोहारी रूप प्रदान करते हैं।


झीलों की नगरी उदयपुर की जल समृद्धि

पूर्व का वेनिस व भारत का दूसरे कश्मीर माना जाने वाला उदयपुर अरावली की सुंदर सुरम्य वादियों से घिरा हुआ है। उदयपुर के महाराणा जल संरक्षण तथा जल के सदुपयोग के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे, इसलिए उन्‍होंने अपने शासनकाल में कई बाँध तथा जलकुण्‍ड बनवाए थे। ये कुण्‍ड उस समय की विकसित इंजीनियरिंग का सबूत हैं। यहाँ की सात प्रमुख छोटी-बड़ी झीलें हैं- पीछोला, दूध तलाई, गोवर्धन सागर, कुम्हारिया तालाब, रंगसागर, स्‍वरूप सागर, फतहसागर इन्‍हें सामूहिक रूप से 7 बहनों के नाम से जानते है। ये झीलें कई शताब्दियों से इस शहर की जीवनरेखा बनी हुई है।

इनमें से पीछोला व फतहसागर झीलें अधिक प्रसिद्ध हैं और ये अत्यंत सुन्दर व मनोहारी है। उदयपुर के पास ही महाराणा उदयसिंह द्वारा निर्मित एक बड़ी झील उदयसागर एवं 'बड़ी तालाब', छोटा मदार बड़ा मदार तालाब स्थित है।


पीछोला झील

पीछोला का निर्माण 14 वीं शताब्दी के अन्त में राणा लाखा के काल एक बंजारे ने कराया था और बाद में राजा उदयसिंह ने इसे ठीक कराया था। पीछोला में स्थित टापू पर जगमंदिर व जगनिवास नामक दो महल है जिनका प्रतिबिम्ब झील में पड़ता है। ये महल लेक पेलेस के नाम से विख्यात है। बादशाह बनने से पहले शाहजहाँ भी इस झील के महलों में ठहरा था। यह झील लगभग 7 किमी लंबी व 2 किमी चौड़ी है।


फतहसागर झील

फतहसागर झील, पीछोला से डेढ़ किमी दूर है। इस झील का निर्माण सर्वप्रथम महाराजा जयसिंह द्वारा सन् 1678 में किया गया था परंतु अतिवृष्टि ने इसे तहस-नहस कर दिया। इसका सशक्त पुनर्निर्माण महाराणा फतेहसिंह ने छः लाख रुपयों की लागत से कराया। फतहसागर झील पीछोला झील से एक नहर द्वारा मिली हुई है। साढ़े दस वर्गमीटर में विस्तृत फतहसागर के मध्य दो टापू हैं जिनमें से एक बड़े टापू पर 'नेहरू उद्यान' बना है एवं छोटे टापू पर एशिया की एकमात्र 'सौर वेधशाला' स्थापित है जिसमें सूर्य से संबंधित शोध की जाती है। इस झील की आधारशिला ड्यूक ऑफ कनाट द्वारा रखी गई थी। फतहसागर पूरे भारत में अपने किस्म का अकेला बाँध है।

राजसमंद झील

इसका निर्माण 1662 ई. में मेवाड़ के राणा राजसिंह ने करवाया था। यह बनास की सहायक गोमती नदी पर बाँध बनाकर निर्मित की गई है। राजसमंद झील की पाल का स्थापत्य सौंदर्य अति मनोहारी है। पाल पर प्रत्येक नौ सीढ़ियों (चौकियों) के बाद एक बड़ी सीढ़ी बनाई गई है इसलिए इन्हें नौ चौकी पाल कहते हैं। नौ चौकी पाल पर सुंदर छतरियां निर्मित है जिनकी छत, स्तम्भों व तोरण द्वार पर उत्कीर्ण मूर्तिकला व नक्काशी अतिआकर्षक है। यहाँ 25 शिलालेख पर मेवाड़ का इतिहास संस्कृत में अंकित है। इसके दूसरी ओर कांकरोली में झील के तट पर पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय की द्वितीय पीठ का भगवान द्वारकाधीश का मंदिर है।

पुष्कर सरोवर

यह किंवदंती है कि जब भगवान ब्रह्मा यज्ञ के लिए शांति स्थान की खोज के लिए निकले तो कर से गिरे कमल से पुष्कर ( पुष-कमल, कर-हाथ) सरोवर की रचना हुई। चौथी शताब्दी में कालिदास ने अपनी कृति 'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' इसी स्थान पर रची थी। गुरु गोविन्द सिंह ने यहाँ पर गुरुग्रंथ साहिब का पाठ किया था। इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने कहा कि इस सरोवर की तुलना तिब्बत की मानसरोवर झील के अलावा और किसी से नहीं की जा सकती। तीन ओर से पहाड़ियों से घिरी अर्धचंद्राकार 10 मीटर गहरी इस झील के किनारे बावन घाट हैं एवं विश्व का एकमात्र व सबसे प्राचीन ब्रह्माजी का मंदिर भी है। प्रयाग को तीर्थराज कहते हैं तो पुष्कर को सभी तीर्थों का सम्राट कहते हैं।


माही बजाज सागर बाँध, बाँसवाड़ा

यह राजस्थान के विराट बाँधों में से एक है। यह बाँध माही नदी नदी पर बना है जो मध्यप्रदेश के धार जिले में विन्ध्यांचल पर्वत से निकल कर अरावली की पहाड़ियों में बाँसवाड़ा में प्रवेश कर गुजरात की खम्भात की खाड़ी में गिरती है। यह राजस्थान व गुजरात की अंतःराज्यीय संयुक्त परियोजना का यह बाँध केवल बाँसवाड़ा ही नहीं अपितु समूचे वागड़ क्षेत्र के साथ साथ गुजरात में सिंचाई के लिए वरदान सिद्ध हुआ है। इससे राज्य में लगभग 54259 हैक्टेयर भूमि में सिंचाई होती है जिसे बढ़ा कर 80 हजार हैक्टेयर करने का लक्ष्य है। इस बाँध पर विद्युत उत्पादन परियोजना भी संचालित है। इसमें 16 रेडियल गेट लगे हैं। इस बाँध के परिक्षेत्र में 250 से अधिक पक्षी पाए जाते है। इस बाँध का अधिकतम जलस्तर 31 मीटर तथा न्यूनतम जलस्तर 28 मीटर है।

आनासागर झील, अजमेर

अजमेर की यह झील दो पहाड़ियों के मध्य स्थित है जिसका निर्माण पृथ्वीराज चौहान के दादा अन्नाजी ने 1137 ई. में कराया था। इसकी परिधि 8 मील है। इस झील पर शाहजहाँ द्वारा निर्मित बारादरी में संगमरमर के बारह दरवाजे है। झील के किनारे जहाँगीर ने दौलतबाग बनवाया था जिसे आजकल सुभाष उद्यान कहते हैं।

फॉयसागर, अजमेर

इस झील में वर्षभर पानी भरा रहता है। इसका जलस्तर अधिक हो जाने पर इसका पानी आनासागर में भेज दिया जाता है।

बालसमंद झील, जोधपुर

जोधपुर के उत्तर में मंडोर मार्ग पर स्थित इस झील का निर्माण परिहार शासक राव ने 1159 ई. में कराया था। इसके पानी को पेयजल में उपयोग लेते हैं।


गेपसागर झील, डूंगरपुर

नगर के मध्य स्थित इस झील का निर्माण डूंगरपुर के महारावल श्री गोपा रावल ने करवाया था। अत्यंत विहंगम व चित्ताकर्षक दृश्य वाली इस झील के चारों ओर प्राचीन श्रीनाथ मंदिर, विजय राजेश्वर मंदिर, बादल महल, उदय विलास महल स्थित है। यह झील भी विविध प्रजातियों के पक्षियों का बसेरा है।


केवलादेव अभयारण्य जलक्षेत्र. भरतपुर

29 वर्ग किमी में फैले व यूनेस्को की विश्व धरोहर कोष की सूची में सम्मिलित केवलादेव भारत का सबसे बड़ा पक्षी अभयारण्य है। इसे वर्ष 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। यह 100 वर्ष पूर्व भरतपुर के महाराजाओं की आखेट स्थली था। यहाँ शीतकाल में लगभग साइबेरिया से पाँच हजार किमी की यात्रा करके साइबेरियन क्रेन तथा अफगानिस्तान, चीन व मंगोलिया से पक्षी देशांतर गमन के लिए आते हैं।

गढ़सीसर सरोवर, जैसलमेर

जैसलमेर के प्रवेश मार्ग पर यह सुंदर सरोवर स्थित है। जैसलमेर के महारावल गढ़सीसिंह ने इसका निर्माण कराया था। यह कलात्मक प्रवेश द्वार एवं इसके अंदर स्थित सुंदर छतरियों तथा किनारे पर बनी बगीचियों के कारण प्रसिद्ध है। इसके किनारे पर "जैसलमेर लोक सांस्कृतिक संग्रहालय भी बना है। इस तालाब के आधे भाग में घाट, मंदिर, स्तम्भ व बरामदे हैं।

कायलाणा झील, जोधपुर

जोधपुर के पश्चिम में स्थित इस झील का निर्माण महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय ने कराया था। इसमें सात नहरों से पानी आता है जिसमें से आसपास की पहाड़ियों से आने वाली छः नहर इसकी पारंपरिक जल स्रोत है जबकि सातवीं नहर 'लिफ्ट कैनाल' बाद में जोड़ी गई है। झील के मध्य एक टापू है जिसकी प्राकृतिक सुंदरता मनमोहक है।

बड़ोपाल झील, हनुमानगढ़

हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर यह झील बढ़ोपाल गाँव में स्थित है। यह झील लगभग बीस वर्ष पूर्व निर्मित है। यहाँ कुछ दूरी पर कालीबंगा व पीलीबंगा की प्राचीन सभ्यता मौजूद है। इस झील में जब फ्लेमिंगो के समूह अठखेलिया करते है तो यह बहुत सुंदर लगती है।

पवित्र कोलायत झील, बीकानेर

बीकानेर से लगभग 45 किमी दूर यह झील हिन्दूओं के लिए पवित्र स्थल है। यहाँ नेपाल से भी तीर्थ यात्री आते हैं। इस झील के तट पर परमपिता ब्रह्मा के पुत्र महर्षि कर्दम्ब व मनु की पुत्री देवहुति के पुत्र सांख्य दर्शन के प्रणेता कपिल मुनि का मंदिर स्थित है। यहाँ कार्तिक माह में एक विशाल मेला भरता है जिसमें लाखों लोग आते हैं।

किशोर सागर झील, कोटा

इसका निर्माण बूँदी के राजकुमार धीरदेव ने कराया था। आकर्षक नजारे वाली इस झील के बीच में जगमंदिर है जो लाल पत्थर से बना एक स्मारक है। महल की ऊँची व उत्कृष्ट दीवारें जब इसके स्वच्छ नीले जल में प्रतिबिम्बित होती है तो नयनाभिराम दृश्य बनता है। इस झील के किनारे आकर्षक बृजविलास महल संग्रहालय भी है।

जैतसागर झील, बूँदी

यह बूँदी शहर के उत्तर पूर्व में पहाड़ की तलहटी में स्थित है। पहाड़ों के मध्य झूला झूलती प्रतीत होती इस झील को बूँदी के राजा जैता मीणा ने बनवाया था जिसका पुनरुद्धार राव राजा विष्णु सिंह के कारीगर सुखराम ने कराया और इसके निकट सुखमहल भी बनवाया जिसमें विश्वविख्यात लेखक रुड्यार्ड किपलिंग ठहरे थे। इसे बड़ा तालाब भी कहते हैं। यह झील 4455 हैक्टेयर भूमि में फैली है। 1995 तक यह झील ताजा पानी का स्रोत थी।


पद्म तालाब, सवाई माधोपुर

यह रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान की सबसे विशाल झील है। 400 वर्ग किमी में फैली इस सुंदर झील में चित्ताकर्षक पद्म या कमल इसकी खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देते हैं। पास ही स्थित जोगी महल इसकी नयनाभिराम दृश्यावली अनुपम अंग है। पद्म तालाब पर वन्य जीवन के उस समय मनभावन नजारे होते है जब चिंकारा, हिरण, बाघ इत्यादि यहाँ पानी पीने आते हैं। यह दृश्य पर्यटकों के लिए अत्यंत रोमांचकारी होता है।

हाड़ी रानी की बावड़ी, टोडाराय सिंह, टौंक

बेजोड़ स्थापत्य कला के इस नमूने का निर्माण बूँदी की राजकुमारी हाड़ी रानी ने लगभग 16 वीं शताब्दी में करवाया था जिनका विवाह सोलंकी शासक से हुआ था। इसके एक ओर बने अनूठे विश्राम कक्ष अपने आकार ऊँचाई व ठंडक के कारण जाने जाते हैं।

मेनाल भीलवाड़ा, मेनाल 

माण्डलगढ से 20 किमी दूर चितौडगढ की सीमा पर स्थित पुरातात्विक एवं प्राकृतिक सौन्दर्य स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। इसे राजस्थान का खजुराहो भी कहते हैं। मेनाल में 12 वीं शताब्दी के चौहान काल में लाल पत्थरों से निर्मित महानालेश्वर मंदिर, रूठी रानी का महल तथा हजारेश्वर मंदिर दर्शनीय हैं। सैकडों फीट से गिरता मेनाली नदी का जल प्रपात पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केन्द्र हैं। यह जलप्रपात तीन धारों में विभाजित होकर ग्रेनाइट की पट्टियों के ऊपर से गुजरते हुए करीब 400 फुट गहरे दर्रे में समा जाता है।

जयसमंद झील

उदयपुर से करीब 48 किमी दूर स्थित इस झील का निर्माण महाराणा जयसिंह ने 1685 ई. में गोमती नदी पर करवाया था। मिश्र की आसवान झील बनने के बाद यह एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मानव निर्मित झील मानी जाती थी। इस झील का दूसरा नाम 'ढेबर' भी है। यह झील 36 वर्गकिमी में फैली है जिसकी लंबाई 14 किमी व चौड़ाई 9 किमी है। इसकी अधिकतम गहराई 102 फुट है व इसकी परिधि 30 मील है। इस झील में सात टापू है जिसमें से एक पर भील मीणा आदिवासियों की बस्ती है जो नौका से आवागमन करते हैं। यहाँ के सबसे बड़े टापू को बाबा का भागड़ा हैं तथा दूसरे बड़े टापू को प्यारी कहते हैं। जयसमंद के अभयारण्य में पक्षी, पेंथर, तेंदुएं, हिरण, जंगली भालू एवं मगर संरक्षित है।

नक्की झील, माउंट आबू

राजस्थान के एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू की सुरम्य नक्की झील भारत की एकमात्र ऐसी झील है जो समुद्र तल से 1200 मीटर ऊँचाई पर स्थित है। इसके बारे में किंवदंती है कि इसे देवताओं ने अपने नख से खोदा था इसलिए इसका नाम नक्की है। झील के चारों ओर चट्टान की अजीब आकृति आकर्षक है। झील के किनारे मेंढक के आकार की 'टॉड रॉक' कौतूहल पैदा करती है।

जवाई बाँध, पाली

600 करोड़ घन फुट जल क्षमता वाला यह बाँध पश्चिम राजस्थान का सबसे बड़ा बाँध है। यह जोधपुर व पाली के सेंकड़ों गाँवों के पेयजल का स्रोत है। पहाड़ियों से घिरे इस बाँध के आसपास वन्य जीव भी बहुतायत से पाए जाते हैं।

तालाब-ए-शाही, धौलपुर

यह बाड़ी कस्बे से 2 किमी दूर एक विशाल पक्की झील है जिसे जहाँगीर के मनसबदार सुलेह खां ने बनवाई थी। इसमें विदेशी पक्षी सर्दियों में बसेरा करते हैं। झील किनारे महाराजा उदयभान सिंह द्वारा निर्मित एक इमारत भी है।

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