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BARMER DISTRICT OF RAJASTHAN - राजस्थान का बाड़मेर जिला





बाड़मेर जिला दक्षिण पश्चिमी राजस्थान के थार मरूस्थल के मध्य स्थित है। 12वीं शताब्दी में परमार शासक बाहड़राव द्वारा प्राचीन बाड़मेर को बसाया गया था, जिसकी स्थिति किराड़ू के पहाडों के पास स्थित 'जूना बाड़मेर' थी। विक्रम संवत् 1608 में जोधपुर के शासक रावल मालदेव ने जूना बाड़मेर पर अधिकार कर लिया व वहां का सरदार भीमा जैसलमेर भाग गया। भीमा ने जैसलमेर के भाटी राजपूतों के साथ सैन्य बल मजबूत कर मालदेव के साथ युद्ध किया एवं पुनः पराजित होने पर बापड़ाउ के ठिकाने पर 1642 में सुरम्य पहाड़ियो की तलहटी में वर्तमान बाड़मेर नगर बसाया।
बाड़मेर प्रारम्भ से ही भारत एवं मध्य एशिया के मध्य ऊॅंटो के कारवां से होने वाले व्यापारी मार्ग पर होने से बाड़मेर आर्थिक रूप से समृद्ध रहार। सन् 1899 में बाड़मेर जोधपु रेल्वे सम्पर्क से जुड़ा, जिससे रेल्वे ने बाड़मेर को भारत के अन्य शहरों से जोड़कर विकास के नये आयाम प्रदान किए।
भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित होने से सन् 1965 एवं 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान बाड़मेर का नाम भारत के मानचित्र पर विशेष रूप से उभरा। वर्तमान में बाड़मेर में निकले तेल के भण्डार एवं अन्य खनिज से बाड़मेर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में सफल हुआ है।
बाड़मेर लोक कला, संस्कृति, हस्तकला, परम्परागत मेले-त्यौहार की दृष्टि से भी सम्पन्न है। बाड़मेर में कपड़े पर हाथ से रंगाई-छपाई, आरीतार, जूट पट्टी, गलीचा उद्योग, कांच-कशीदाकारी, ऊनी पट्टू एवं दरी बुनाई, लकड़ी पर नक्काशी का कार्य बेजोड़ है। बाड़मेर में निर्मित कलात्मक वस्तुओं ने अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अपनी पहचान बनाई है। बाड़मेर जिला लंगा और माँगणयियार के लोक संगीत के लिए विश्व में प्रसिद्ध है
बाड़मेर शहर की प्राचीन बनावट, सुरम्य पहाड़ियों के मध्य निर्मित जलकुण्ड, पहाड़ियों के शिखरों पर निर्मित देवी-देवताओं के प्राचीन मन्दिर, जैन धर्मावलम्बियों द्वारा नगर में निर्मित जैन मन्दिर एवं बाड़मेर जिले के विस्तृत क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर निर्मित प्राकृतिक सौन्दर्य, पुरातत्व महत्व के स्थल, मन्दिर, भवन, रेतीले धोरे, लोक कला संस्कृति पर्यटकों के लिए आर्कषण एवं आस्था के प्रमुख केन्द्र एवं दर्शनीय स्थल है।

सामान्य जानकारी -

1. जिले का दूरभाष कोड-   +91-2982 या 02982

2. जिले की जनसंख्या (2011 की जनगणना के अनुसार)

Population

0-6 Population

Literates

Persons

Males

Females

Persons

Males

Females

Persons

Males

Females

Total

2,604,453

1,370,494

1,233,959

499,328

262,925

236,403

1,210,278

800,983

409,295

Rural

2,422,037

1,274,070

1,147,967

473,290

249,155

224,135

1,085,931

726,366

359,565

Urban

182,416

96,424

85,992

26,038

13,770

12,268

124,347

74,617

49,730

जनसंख्या घनत्व-         92 /km2 (240/sq mi)

 साक्षरता-                         56.53

स्त्री-पुरुष अनुपात-           904 


3. क्षेत्रफल-

नगरीय क्षेत्र:-             15 वर्ग किलोमीटर

जिला क्षेत्र-               2817322 हेक्टर = 28234  वर्ग किलोमीटर

4. बाड़मेर शहर की समुद्र तल से ऊॅंचाई-       250 मीटर

5. भौगोलिक स्थिति-   

                                    बाड़मेर शहर- अक्षांश  25° 45' N, देशांतर  71° 23' E

6. बोली जाने वाली भाषा-      हिन्दी, राजस्थानी (मारवाड़ी), अंग्रेजी

7. भ्रमण हेतु उपयुक्त समय-   माह अक्टूबर से माह मार्च तक

8. उद्योग धन्धे-            कृषि, पशुपालन, हस्तकला, पेट्रोल उत्पाद एवं खनिज।

9. औसत तापमान

      गर्मी:-         अधिकतम  440 C    न्यूनतम  250 C

            सर्दी:-               अधिकतम  300 C    न्यूनतम  90 C

10. औसत वर्षा-                  25 सेन्टीमीटर

11. औसत आर्द्रता-    रात्रि  में      15 % से 45 %

                  दिन में       50%  से 85%

12. औसत वायु वेग दक्षिण से उत्तर -

                  साफ मौसम में-            8 से 12 कि.मी

                  आंधी मौसम में-     20 से 24 किमी

13. संभागीय मुख्यालय-   जोधपुर 

14. बाड़मेर जिला स्थिति-   राजस्थान के पश्चिमी भाग में थार मरुस्थल में
            जिले की सीमायें-
                  उत्तर में - जैसलमेर जिला
                  दक्षिण में- जालौर जिला
                  पूर्व में- पाली व जोधपुर जिला
                  पश्चिम में- पाकिस्तान

15. सबसे बड़ी नदी-             लूणी 480 km, कच्छ की खाड़ी में गिरती है

बाड़मेर जिले के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित ऐतिहासिक, धार्मिक दर्शनीय पर्यटक स्थल-

1. किराडू:-  

बाड़मेर से 35 कि.मी. मुनाबाब मार्ग पर हाथमा गांव के पास किराडू एक ऐतिहासिक स्थल है। यहां 1161 ई. काल का शिलालेख भग्नावेश में ब्रह्मा, विष्णु, शिव एवं सोमेश्वर भगवान के पाँच मन्दिर विद्यमान है। मन्दिरों के निर्माण में रामायण, महाभारत एवं अन्य पौराणिक कथाओं, देवी-देवताओं एवं जनजीवन का चित्रण पत्थरों पर बारीकी से उत्कीर्ण किया गया है। मन्दिर परिसर के आस-पास बिखरे पाषाण यहां प्राचीन नगर बसा होना प्रमाणित करते हैं। किराड़ू का प्राचीन नाम "किराटकूप" बताया जाता है। किराड़ू भारत-पाक अन्तर्राष्ट्रीय सीमा की तरफ होने से विदेशी पर्यटकों को वहां पहुँचने हेतु जिला प्रशासन से अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है। गृहमंत्रालय भारत सरकार के विदेशी प्रतिबन्धित क्षेत्र संशोधित आदेश दिनांक 29.04.1993 के अनुसार भारत-पाक अन्तर्राष्ट्रीय सीमा क्षेत्र के राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 15 रामदेवरा-पोकरण-लाठी-जैसलमेर-सांगड़-फतेहगढ़-बाड़मेर की मुख्य सड़क से पश्चिम का सीमा क्षेत्र विदेशी पर्यटकों के आवागमन हेतु प्रतिबन्धित क्षेत्र है।


2. जूना बाड़मेर:- 

बाड़मेर से 40 कि.मी. मुनाबाब मार्ग पर प्राचीन शहर के अवशेष, 12 एवं 13वीं शताब्दी के शिलालेख, जैन मन्दिरों के स्तम्भ देखने को मिलते है। पहाड़ी पर प्राचीन किला, जिसकी परिधि 15 किलोमीटर के क्षेत्रफल में प्रतीत होती है। यहां से उखड़े लोगों ने बाड़मेर नगर के निर्माण का कार्य किया है।

3. खेड़ का भगवान रणछोड़राय मंदिर :-

जोधपुर-बाड़मेर मार्ग पर लूणी नदी के किनारे भगवान रणछोड़राय का विशाल परकोटे से घिरा अति प्राचीन मन्दिर एवं मूर्ति दर्शनीय है। इसके अतिरिक्त शेष शैय्या भगवान विष्णु, पंचमुखा महादेव, खोड़ीया हनुमान जी, महिषासुर मर्दिनी के मन्दिर दर्शनीय है। यहां भादवा कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि एवं कार्तिक पूर्णिमा को लगने वाले मेले में हजारों दर्शनार्थी पहुँचते हैं। यहां यात्रियों के ठहरने की समुचित व्यवस्था है।

4. तिलवाड़ा:-  

जोधपुर-बाड़मेर मार्ग पर लूणी नदी के किनारे बसा ग्राम तिलवाड़ा लोक देवता मल्लीनाथ का स्थल है। बालोतरा से दस किलोमीटर दूर लूणी नदी की तलहटी में राव मल्लीनाथ की समाधि स्थल पर मल्लीनाथ मन्दिर निर्मित है। यहां चैत्र कृष्णा सप्तमी से चैत्र शुक्ला सप्तमी तक 15 दिन का विशाल मल्लीनाथ तिलवाड़ा पशु मेला भरता है, जहां देश के विभिन्न प्रान्तों, शहरों से आये पशुओं का क्रय-विक्रय होता है। मेले में ग्रामीण परिवेश, सभ्यता एवं सस्कृति का दर्शन करने देशी-विदेशी पर्यटक भी पहुँचते हैं। मेले के दौरान हजारों की संख्या में श्रृद्धालु मल्लीनाथ की समाधि पर नतमस्तक होते हैं।

5. जसोल:-  

बाड़मेर जिले के बालोतरा व नाकोड़ा (मेवानगर) के मध्य मालाणी शासकों का निवास प्राचीन नगर जसोल, जिसमें 12 एवं 16वीं शताब्दी के जैन मन्दिर एवं माताजी का मन्दिर दर्शनीय है।

6. कनाना:-  

बालोतरा से 20 कि.मी. व ग्राम पारलू से 8 कि.मी. की दूरी पर ग्राम कनाना वीर दुर्गादास की कर्मस्थली है। यहां पर शीतलामाता अष्टमी पर आयोजित होने वाला पारम्परिक गैर नृत्य व मेला विश्व प्रसिद्ध है। कनाना में निर्मित रावला एवं छत्रिया पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

7. सिवाना दुर्ग:- 

बालोतरा से 35 कि.मी., मोकलसर रेल्वे स्टेशन से 12 कि.मी. दूर प्राचीन नगर सिवाना में ऐतिहासिक दुर्ग शहर के मध्य काफी ऊॅंचाई पर स्थित है। वर्तमान में दुर्ग की चारदीवारी,  दो-तीन झरोखे, व पोल ही विद्यमान है। किले के मध्य पानी का बड़ा तालाब है। अलाउदीन खिलजी, राव मल्लीनाथ, राव तेजपाल, राव मालदेव, अकबर, उदयसिंह आदि इतिहास प्रसिद्ध पुरूषों का सम्बन्ध भी इस किले से रहा है। सिवाना के पास ही हिंगुलाज देवी मन्दिर, हल्देश्वर, मोकलसर पग बावड़ी, मोकलसर जैन मन्दिर, दन्ताला पीर, साईं की बगेची धार्मिक आस्था के रमणीय पर्यटन स्थल है।

8. कपालेश्वर महादेव मन्दिर:- 

बाड़मेर से 55 कि.मी. दूर चौहटन कस्बे की विशाल पहाड़ियों के मध्य 13वीं शताब्दी का कपालेश्वर महादेव मन्दिर शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है। इन्हीं पहाड़ियों में प्राचीन दुर्ग के अवशेष मौजूद हैं जिसे हापाकोट कहते हैं। किदवन्तियों के अनुसार पाण्डवों ने अज्ञातवास का समय यही छिप कर बिताया था।

9. विरात्रा माता का मन्दिर:- 

 बाड़मेर से लगभग 48 कि.मी. व चौहटन से 10 कि.मी. उत्तर दिशा में सुरम्य पहाड़ियों की घाटी में विरात्रा माता का मन्दिर है, जहां माघ माह व भादवा की शुक्ल पक्ष चौदस को दर्शन मेले लगते हैं। मन्दिर के अलावा विभिन्न समाधि स्थल, जलकुण्ड व यात्रियों के विश्राम स्थल भी बने हुए हैं।

10. कोटड़ा का किला:- 

बाड़मेर से 65 किलोमीटर दूर बाड़मेर-जैसलमेर मार्ग पर शिव कस्बे से 12 किलोमीटर रेगिस्तानी आंचल में बसे गांव कोटड़ा में छोटी पहाड़ी पर किला बना हुआ है। किले में पुरातत्व महत्व की सुन्दर कलाकृति युक्त मेड़ी व सरगला नामक कुंआ दर्शनीय है। कोटड़ा कभी जैन सम्प्रदाय का विशाल नगर था।

11. देवका का सूर्य मन्दिर:- 

बाड़मेर-जैसलमेर मार्ग पर स्थित गांव देवका से 1 कि.मी. पहले दाहिनी तरफ पुरातत्व महत्व के ऐतिहासिक मन्दिर प्राचीनतम प्रस्तरकला से परिपूर्ण है, जो भग्नावस्था में है, जिनका जीर्णोद्धार पुरातत्व विभाग द्वारा किया जा रहा है। यह एक दर्शनीय  स्मारक है। बाड़मेर-जैसलमेर मार्ग पर शिव में गरीबनाथ मन्दिर, ग्राम फतेहगढ़ में व ग्राम देवीकोट में छोटे किलेनुमा कोट प्राचीन भवन निर्माण कला के दर्शनीय है।

12. बाटाड़ू का कुआँ:-  

बाड़मेर जिले की बायतु पंचायत समिति के ग्राम बाटाड़ू में आधुनिक पाषाण संगमरमर से निर्मित कुआँ जिन पर की गई धार्मिक युग की शिल्पकला दर्शनीय है। 

13. बालोतरा तथा नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ स्थल-
जोधपुर-बाड़मेर रेलवे लाईन पर मध्य में स्थित बालोतरा एक औद्योगिक नगर है, जहाँ पर अनेक वस्त्र उद्योग विकसित है। यहाँ वृहद स्तर पर कपड़ा बुनाई, रंगाई एवं छपाई कार्य होता है।
बालोतरा के दक्षिण में ग्राम मोकलसर, आसोतरा उत्तर में ग्राम पचपदरा, दक्षिण पश्चिम में नाकोड़ा पार्श्वनाथ मन्दिर एवं पश्चिम में खेड़ ऐतिहासिक, धार्मिक एवं दर्शनीय स्थल है। 

Nakoda Bheru ji.

 

 उक्त स्थानों के अतिरिक्त आसोतरा में ब्रह्मा मन्दिर, ग्रामनगर में 12वीं शताब्दी का महावीर मन्दिर, धोरीमन्ना में आलमजी का मन्दिर, पचपदरा नागणेची माताजी का मन्दिर भी दर्शनीय है।

बाड़मेर शहर में स्थित ऐतिहासिक, धार्मिक दर्शनीय पर्यटक स्थल
1. बांकल माता गढ़ मन्दिर:-
बाड़मेर शहर के पश्चिमी छोर पर 675 फीट ऊँची पहाड़ी पर 16वीं शताब्दी का प्राचीन गढ़ (छोटा किला) था, जिसे बाड़मेर गढ़ कहा जाता था, जिसके अवशेष आज भी विद्यमान है। इसी पहाड़ी पर बांकल माता का प्राचीन देवी मन्दिर धार्मिक आस्था का प्रमुख स्थल है। देवी मन्दिर तक चढ़ने के लिए लगभग 500 सीढ़ियां निर्मित है। मन्दिर के प्रांगण से बाड़मेर का विहंगम दृश्य, आस-पास की पर्वत श्रृंखलाएँ, मैदानी भाग एवं सुरम्य घाटियाँ दृष्टिगोचर होती है। पहाड़ी की सीढ़ियो के मार्ग पर ही नागणेची देवी का मन्दिर भी प्राचीन एवं शक्ति उपासकों का प्रमुख स्थान है।
2. श्री पार्श्वनाथ जैन मन्दिर:-
बांकल माता देवी की तलहटी में प्रारम्भिक सीढ़ियों के पास ही शहर के कोने पर 12वीं शताब्दी में निर्मित श्री पार्श्वनाथ जैन मन्दिर में शिल्पकला के अतिरिक्त काँच, जड़ाई का कार्य एवं चित्रकला दर्शनीय है। स्टेशन रोड़ से सीधे बाजार होते हुए जैन मन्दिर तक पहुँचा जा सकता है।
3. शिव मुण्डी महादेव मन्दिर:-
बाड़मेर शहर के पश्चिमी भाग में स्थित सुरम्य पहाड़ियों में सबसे ऊँची चोटी पर स्थित प्राचीन शिव मन्दिर एक रमणीय एवं धार्मिक स्थल है। ऊँची पहाड़ी से शहर का विहंगम दृश्य, सूर्यास्त दर्शन एवं प्राकृतिक सौन्दर्य देखने योग्य है।
4. पीपला देवी, दक्षिणायनी देवी एवं गणेश मन्दिर:-
बाड़मेर की सुरम्य पहाड़ियों के मध्य घाटियों में निर्मित पीपला देवी, गणेश मन्दिर एवं दक्षिणायनी मन्दिर उपासना के साथ ही स्थानीय लोगों के लिए आमोद-प्रमोद हेतु रमणीक स्थल है। घाटी में स्थित जलकुण्ड के आस-पास पार्क निर्माण के साथ पर्यटक सुविधाओं का विकास भी किया जा रहा है।
5. सोहननाड़ी ताल:-
सुरम्य पहाड़ियों के मध्य में स्थित प्राचीन ताल सोहननाड़ी का निर्माण बाड़मेर नगर की स्थापना के साथ ही करवाया गया था, जो पूर्व में नगरीय जन जीवन के लिए पानी का एक मात्र स्त्रोत था। वर्तमान में नलों द्वारा जल वितरण की व्यवस्था होने से ऐतिहासिक तालाब की उपयोगिता एवं महत्व में कमी आई है। परम्परागत जल स्त्रोतों को पर्यटन हेतु रमणीक स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है।
6. जसदेवसर नाड़ी तालाब:-
बाड़मेर शहर से करीब 3 किलोमीटर दूर उत्तरलाई मार्ग पर स्थित प्राचीन कृत्रिम तालाब जसदेव नाड़ी का निर्माण बरसाती पानी को संग्रहित कर उपयोग में लेने हेतु करवाया गया था, जो आस-पास के गांवो के लिए प्रमुख जल स्त्रोत रहा है, जिसका उपयोग निरन्तर है, उसे पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित किया जा रहा है। यहां शिव शक्ति धाम मन्दिर स्थल रमणीय एवं उपासना का स्थल है।
7. सफेद आकड़ा महादेव मन्दिर:-
बाड़मेर से मात्र 3 किलोमीटर दूर सफेद आकड़ा महादेव मन्दिर स्थानीय निवासियों के लिए एक पिकनिक स्थल है।
8. महाबार धोरा:-
बाड़मेर से 5 किलोमीटर दूर रेतीले धोरे, सूर्योदय एवं सूर्यास्त दर्शन एवं केमल सवारी हेतु आकर्षक स्थल है।
बाड़मेर का थार महोत्सव -

बाड़मेर के पुरातत्व, ऐतिहासिक, धार्मिक, दर्शनीय स्थलों के प्रचार-प्रसार करने, बाड़मेर की लोक कला एवं संस्कृति को अक्ष्क्षुण बनाये रखने, हस्तशिल्प उद्योग का प्रचार-प्रसार करते हुए औद्योगिक स्तर में विकास करने एवं बाड़मेर को अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर विशिष्ट स्थान प्रदान करने के उद्देश्य में जिला प्रशासन द्वारा पर्यटन विभाग के सहयोग में वर्ष 1986 से बाड़मेर थार समारोह का आयोजन प्रारम्भ किया गया था, फलस्वरूप बाड़मेर के अनेक लुप्त प्रायः पुरातत्वद्व धार्मिक, ऐतिहासिक, धार्मिक एवं अन्य दर्शनीय स्थलों, लोककला, हस्तशिल्प एवं प्रकृति द्वारा निर्मित स्थलों का विकास प्रारम्भ हुआ। तीन दिवसीय समारेाह के दौरान पर्यटकों के लिए लोक-संगीत के कार्यक्रम, हस्तकलाओं का प्रदर्शन, श्रृंगारिक ऊँटों के करतब, मि. थार एवं क्वीन थार जैसी रोचक प्रतिस्पद्र्धाओं को शामिल किया जाता है।
बाड़मेर थार समारोह में जिला प्रशासन-पर्यटन विभाग के अतिरिक्त क्षेत्र की विभिन्न नगरपालिकाओं, समस्त राजकीय, अर्द्धशासकीय एवं निजी प्रतिष्ठानों के अलावा जनप्रतिनिधियों, पत्रकारों, स्वेच्छिक संगठनों, गणमान्य नागरिकों एवं लोक-कलाकारों, शिल्पकारों का अपेक्षित सहयोग प्राप्त कर आयोजन को सफल बनाने एवं विकास के उद्देश्यों को पूरा करने के प्रयास निरन्तर हैं। वर्तमान में बाड़मेर थार समारेाह अपनी अलग पहचान बना रहा है।
आयोजन के प्रथम दिवस पर शोभा यात्रा में पारम्परिक वेशभूषा में लोक कलाकार, मंगल कलश लिए बालिकाएँ, श्रृंगारित ऊँट, राजस्थानी लोक-धुनों को बजाते हुए बैण्ड समूह, बैलगाड़ियों पर गायन वादन करते लोक कलाकार एवं मार्ग पर नृत्य प्रस्तुत करती नृत्यागंनाएँ जब शहर के विभिन्न मार्गों से गुजरती है तो स्थान-स्थान पर स्वागतद्वारों में उनका उत्साह वर्धक स्वागत प्राप्त करती आदर्श स्टेडियम में पहुँचती है, जहाँ स्टेज पर मि. थार, थार क्वीन, साफा बांध, लम्बी मूँछ आदि रोचक प्रतिस्पर्धात्मक प्रतियोगिताएँ आयोजित होती है। पुरातत्व महत्व के प्राचीन वैभवशाली ऐतिहासिक स्थल किराडू पर भजन संध्या से वीरान पेड़-मंदिरों में जीवन संवारती प्रतीत होती है। तृतीय दिवस रेगिस्तान के जहाज ऊँटों द्वारा किए जाने वाले करतब एवं ऊँट की पीठ पर बैठकर रणबांकुरों द्वारा खेले जाने वाले खेल रोमाचंक होते है।
तीन दिवसीय समारेाह में महाबार के रेतीले धोरों पर ऊँट संवारी का आनन्द एवं सांस्कृतिक संध्या में राजस्थानी लोकगीत, लोकनृत्य कार्यक्रमों से हजारों देशी दर्शक एवं विदेशी पर्यटक मंत्र-मुग्ध हो जाते है।

बाड़मेर का हस्तशिल्प एवं दस्तकारी इकाईयां/कलस्टर्स-
बाड़मेर जिले में हस्तशिल्प/दस्तकारी की लगभग 2500 इकाईयां स्थाई रूप से पंजीकृत है। इनमें ब्लॉक प्रिन्ट, हैण्डीक्राप्ट, कांच कशीदाकारी, लकड़ी पर नक्काशी का कार्य कर बनाया गया फर्नीचर, दरवाजे व अन्य घरेलू कलात्मक सामान, मिट्टी के बर्तन, ऊनी पट्टू, चर्म कशीदाकारी, चमड़े की जूतियां व अन्य सामान, कपड़े पर कशीदाकारी एवं काँच टिकिया जड़ाई, भेड़-बकरी, ऊँट की जट की दरी व गलीचा बुनाई उद्योग, चांदी के आभूषण, कूटा के खिलौने, बर्तन, लोहे का सामान, आदि प्रमुख उत्पाद है, जिनकी देश एवं विदेश में अच्छी मांग है। इसके अतिरिक्त कुछ स्वयं सेवी संस्थाएं भी इस क्षेत्र में प्रशिक्षण एवं क्लस्टर संचालन कार्य कर रही है। जिले में निम्नलिखित दस्तकारी समूह विद्यमान है, जो परम्परागत तरीके से शिल्पकला का कार्य करते हैं:-
1. कपड़े पर कांच कशीदा एवं पैचवर्क:-
महिलाओं द्वारा बाड़मेर शहर एवं ग्रामीण क्षेत्र के रामसर पंचायत समिति, चौहटन पंचायत समिति में धनाऊ, सरूपे का तला, बींजासर, मीठे का तला, आलमसर, बूठ बावड़ी, मिठड़ाऊ, तहसील शिव के गडरारोड़, जयसिन्धर, राणासर, खुडानी, हरसाणी आदि गांवों में कपड़े पर कांच कशीदाकारी एवं पैचवर्क का कार्य करती है, जो इनके जीविकोपार्जन का साधन है। इनकी संख्या लगभग 6000 हैं। इनको कच्चामाल हैण्डीक्राप्ट के थोक विक्रेता अन्य उद्यमियों से प्राप्त होता है। माल तैयार कर उन्हें ही वापिस दिया जाता हैं।
2. अजरक हैण्डीक्राप्ट प्रिन्ट:-
बाड़मेर शहर में लगभग 25-30 दस्तकारों द्वारा कपड़े पर हाथ से ब्लॉक हैण्ड प्रिन्ट का कार्य करके बेडशीट, लूंगी, पिलो कवर, ड्रेस मेटेरियल आदि तैयार किए जाते हैं तथा इन्हें राजस्थान के विभिन्न शहरों एवं अन्य राज्यों में बिक्री के लिए भेजा जाता है। उक्त उत्पादों की कई जगह अच्छी मांग है। सभी दस्तकार परम्परागत प्राकृतिक वेजीटेबल रंगों से उत्पाद तैयार करते हैं। उक्त इकाईयों में छपाई कार्य परिवार के सदस्यों द्वारा ही किया जाता है। दस्तकार छपाई के लिए प्रयुक्त ग्रे क्लोथ को स्थानीय बाजार एवं किशनगढ़, मुम्बई, अहमदाबाद आदि स्थानों से प्राप्त करते हैं। बाड़मेर से 110 कि.मी. दूर बालोतरा, रंगाई एवं छपाई का औद्योगिक केन्द्र है, परन्तु बाड़मेर में भी कपड़ो की रंगाई, हाथ से छपाई का कार्य बहुतायात से होता है। बाड़मेर प्रिन्ट की अपनी अलग पहचान है।
3. चर्म जूती:-
बाड़मेर, बालोतरा, सिणधरी, पाटोदी, समदड़ी, सिवाना, पादरू आदि में चर्म जूती के तकरीबन 500 दस्तकार है, जो देशी जूती एवं चप्पल आदि बनाते हैं। ये लोग स्थानीय बाजार से कच्चा माल क्रय कर तैयार माल को स्वयं की दुकान पर एवं थोक विक्रेताओं को बेचते हैं। इसमें कुछ दस्तकार लेदर पर्स, बैग्स, स्टूल आदि बनाते हैं। इन्हें वे मेलों-प्रदर्शनियों आदि में ले जाकर भी बेचते हैं।
4. हथकर्घा वस्त्र उत्पाद:-
बाड़मेर में कई बुनकरों द्वारा परम्परागत ढंग से हथकर्घे से ऊनी शाल, कम्बल, पटू, एवं सूती खेसले आदि वस्त्र बनाए जाते हैं। ये बुनकर रानीगांव, सीलगण, भाडखा, बोथिया, भीमड़ा, बिसाला-आगोर, बाछड़ाऊ, नोखड़ा, शिवकर, गिराब, बालेबा आदि स्थानों पर बड़ी संख्या में विद्यमान हैं।
5. लकड़ी का नक्काशीयुक्त फर्नीचर:-
बाड़मेर का लकड़ी का नक्काशीयुक्त फर्नीचर विश्व प्रसिद्ध है। बाड़मेर जिले में लकड़ी पर नक्काशी कार्य करके फर्नीचर निर्मित करने वाले लगभग 80 दस्तकार हैं जो बाड़मेर शहर, चौहटन शहर, आलमसर तथा माहबार गाँव में हैं। इनमें अधिकांश दस्तकार बड़ी इकाईयों में कार्यरत है, जिन्हें उनके काम के अनुसार मजदूरी दी जाती है। इनके द्वारा टेबल, कुर्सी, सोफा, डाईनिंग टेबल, आदि मांग के आधार पर तैयार किये जाते हैं। नक्काशी का अधिकांश कार्य हाथ से ही किया जाता है। कच्चा माल स्थानीय बाजार में उपलब्ध होता है।
6. मिट्टी के बर्तन:-
बाड़मेर जिले में कुम्हार जाति के लोग परम्परागत ढंग से मिट्टी के घड़े, सुराही अन्य कलात्मक बर्तन बनाते है। ग्राम भाडखा, बिसाला, पचपदरा एवं माहबार के करीब 100 परिवार इस कार्य में संलग्न हैं।

    बाड़मेर जिले में हस्तशिल्प के विकास के लिए नेहरू युवा केन्द्र, विश्वकर्मा निर्माण आपूर्ति विपणन संस्था, बाड़मेर, श्री मारवाड़ विकास समिति, चौहटन, रेडी- बालोतरा, रेड्रस- बाड़मेर, धारा संस्थान, बाड़मेर, महिला मण्डल, बाड़मेर, नेहरू युवा कल्चरल एण्ड वेलफेयर सोसायटी, बाड़मेर, श्योर संस्था, बाड़मेर आदि स्वयं सेवी संस्थाएं कार्यरत हैं। इन संस्थाओं द्वारा हस्तशिल्पियों को बाबा साहब अम्बेडकरहस्तशिल्प योजनान्तर्गत विभिन्न ट्रेडस में दस्तकारों को प्रशिक्षण एवं मार्गदर्शन दिया जाता है। इसके अलावा इनके द्वारा भारत सरकार की योजनान्तर्गत महिलाओं को कांच कशीदाकारी एवं पैचवर्क का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। कई गांवों में इन संस्थाओं के उक्त ट्रैडस के कलस्टर भी कार्यरत हैं।





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हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

THE SCHEDULED AREAS Villages of Udaipur district - अनुसूचित क्षेत्र में उदयपुर जिले के गाँव

अनुसूचित क्षेत्र में उदयपुर जिले के गाँव- अनुसूचित क्षेत्र में सम्मिलित उदयपुर जिले की 8 पूर्ण तहसीलें एवं तहसील गिर्वा के 252, तहसील वल्लभनगर के 22 व तहसील मावली के 4 गांव सम्मिलित किए गए हैं। ये निम्नानुसार है- 1. उदयपुर जिले की 8 पूर्ण तहसीलें (कोटड़ा, झाडोल, सराड़ा, लसाड़िया, सलूम्बर, खेरवाड़ा, ऋषभदेव, गोगुन्दा) - 2. गिर्वा तहसील (आंशिक) के 252 गाँव - S. No. GP Name Village Name Village Code Total Population Total Population ST % of S.T. Pop to Total Pop 1 AMBERI AMBERI 106411 3394 1839 54.18 2 AMBERI BHEELON KA BEDLA 106413 589 573 97.28 3 AMBERI OTON KA GURHA 106426 269 36 13.38 4 AMBERI PRATAPPURA 106427 922 565 61.28 5 CHEERWA CHEERWA 106408 1271 0 0.00 6 CHEERWA KARELON KA GURHA 106410 568 402 70.77 7 CHEERWA MOHANPURA 106407 335 313 93.43 8 CHEERWA SARE 106406 2352 1513 64.33 9 CHEERWA SHIVPURI 106409 640 596 93.13 10 DHAR BADANGA 106519 1243 1243 100.00 11 DHAR BANADIYA 106...

Scheduled Areas of State of Rajasthan - राजस्थान के अनुसूचित क्षेत्र का विवरण

राजस्थान के अनुसूचित क्षेत्र का विवरण (जनगणना 2011 के अनुसार)-   अधिसूचना 19 मई 2018 के अनुसार राजस्थान के दक्षिण पूर्ण में स्थित 8 जिलों की 31 तहसीलों को मिलाकर अनुसूचित क्षेत्र निर्मित किया गया है, जिसमें जनजातियों का सघन आवास है। 2011 की जनगणना अनुसार इस अनुसूचित क्षेत्र की जनसंख्या 64.63 लाख है, जिसमें जनजाति जनसंख्या 45.51 लाख है। जो इस क्षेत्र की जनसंख्या का 70.42 प्रतिशत हैं। इस क्षेत्र में आवासित जनजातियों में भील, मीणा, गरासिया व डामोर प्रमुख है। सहरिया आदिम जाति क्षेत्र- राज्य की एक मात्र आदिम जाति सहरिया है जो बांरा जिले की किशनगंज एवं शाहबाद तहसीलों में निवास करती है। उक्त दोनों ही तहसीलों के क्षेत्रों को सहरिया क्षेत्र में सम्मिलित किया जाकर सहरिया वर्ग के विकास के लिये सहरिया विकास समिति का गठन किया गया है। क्षेत्र की कुल जनसंख्या 2.73 लाख है जिसमें से सहरिया क्षेत्र की अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 1.02 लाख है जो क्षेत्र की कुल जनसंख्या का 37.44 प्रतिशत है।  अनुसूचित क्षेत्र में राजकीय सेवाओं में आरक्षण सम्बन्धित प्रावधान-  कार्मिक (क-...