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How to farming Moth - कैसे करें मोठ की खेती

कैसे करें मोठ की खेती -

दलहनी फसलों में मोठ सर्वाधिक सूखा सहन करने वाली फसल है। असिंचित क्षेत्रों के लिए यह फसल लाभदायक है। राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, देश के प्रमुख मोठ उत्पादक राज्य हैं। फसल स्तर बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2015) के अन्तर्गत भारत में मोठ का कुल क्षेत्रफल 9.26 लाख हेक्टेयर व उत्पादन 2.77 लाख टन था। राजस्थान देश में मोठ ऊत्पादन में प्रथम स्थान पर है। राजस्थान में मोठ का क्षेत्रफल (96.75 प्रतिशत) उत्पादन (94.49%) सर्वाधिक है। इसके बाद गुजरात का स्थान (2.38% व 3.6%) आता है। यद्यपि राजस्थान की उपज (292 किग्रा./हेक्टेयर) राष्ट्रीय औसत उपज (299 कि.ग्रा./हेक्टेयर) से कम है।

मोठ के लिए उपयुक्त जलवायु -

मोठ की फसल बिना किसी विपरीत प्रभाव के फूल व फली अवस्था में उच्च तापमान को सहन कर सकती है और इसके वृद्धि व विकास 0 0 के लिये 25 -37 सेन्टीग्रेड तापक्रम की आवश्यकता होती है। वार्षिक वर्षा 250-500 मि.मी. व साथ ही उचित निकास की आवश्यकता होती है। 

मोठ की उन्नत प्रजातियाॅं -

राज्यवार प्रमुख प्रजातियों का विवरण  -                                                         

राज्यप्रजातियाॅं
राजस्थानआर.एम.अ¨.-257, आर.एम.अ¨.-435, आर.एम.ओ.-2004 (आर.एम.बी.25), आर.एम.ओ.-225, आर.एम.ओ.-40, एफ.एम.एम. 96, मोठ 880, ज्वाला, काजरी मोठ-2 (सी.जेड.एम. 45), काजरी मोठ-3 (सी.जेड.एम. 99), टी.एम.वी. (एम.बी.-1)
गुजरातजी.एम.ओ.- 1, जी.एम.ओ.- 2, ), मारू बहार (आर.एम.ओ.-435)
महाराष्ट्रकाजरी मोठ-2 (सी.जेड.एम. 45), काजरी मोठ-3 (सी.जेड.एम.99), मारू बहार (आर.एम.ओ.-435)
हरियाणाकाजरी मोठ-2 (सी.जेड.एम. 45), काजरी मोठ-3 (सी.जेड.एम. 99)

अन्य प्रजातियां -

आर.एम.ओ.-257, आर.एम.ओ.-423, आर.एम.ओ.-435, जे.एम.वी.-1, सी.ऐ.जेड.आर.ई.-2, सी.ऐ.जेड.आर.ई.-3,

उपज अन्तर-

सामान्यतः यह देखा गया है कि अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन की पैदावार व स्थानीय किस्मों की उपज में 20-45% का अन्तर है। यह  अन्तर कम करने के लिये अनुसंधान संस्थानों व कृषि विज्ञान केन्द्र की अनुशंसा के अनुसार उन्नत कृषि तकनीक को अपनाना चाहिए।

भूमि का चुनाव -

अच्छे जल निकास व उच्च उर्वरता वाली दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है। भूमि में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। खेत में पानी का ठहराव फसल को भारी हानि पहुंचाता है।

खेत की तैयारी -

खेत को दो बार कल्टीवेटर या हैरो से जुताई कर पाटा लगाकर खेत समतल कर लेना चाहिए।

बुआई समय -

जून के तीसरे सप्ताह से लेकर जुलाई के पहले पखवाड़े तक या मानसून प्रारम्भ होने के तुरन्त बाद कर देना चाहिए। उड़द व मूॅंग की तरह पंक्तियों में निर्धारित गहराई पर सीड ड्रिल या चोंगा द्वारा बुआई करने पर पर्याप्त पौध संख्या प्राप्त की जा सकती है।

उर्वरक -

प्रति हेक्टर 10-20 कि.ग्रा नाइट्रोजन, 40 कि.ग्रा फास्फोरस की आवश्यकता होती है। सभी उर्वरकों को आधार उर्वरक के रूप में देना चाहिए।

बीजोपचार -

मृदाजनित रोगों से बचाव के लिए बीजों को 2 ग्राम थीरम व 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति कि.ग्रा अथवा 3 ग्राम थीरम प्रति कि.ग्रा. की दर से उपचार करें। फफूंदनाशी दवा के उपचार के बाद बीजों को राइजोबियम व पी.एस.बी कल्चर 5-7 ग्राम मात्रा प्रति कि.ग्रा. बीज के हिसाब से उपचारित करें।

फसल अंतराल  -

पंक्ति से पंक्तिः 30-45 से.मी. ; पौध से पौध: 10 -20 से.मी

बीजदर -

  • 1. शुद्ध फसल के लिए 10-15 कि.ग्रा/हे. (पंक्तियों में बुआई करने पर)।
  • 2. मिश्रित खेती के लिए 4-5 कि.ग्रा/हे.।
  • 3. चारे की खेती के लिए 20-25 कि.ग्रा/हे.।

सिंचाई -

चूॅंकि यह फसल असिंचित दशा में बोई जाती है लम्बे समय तक वर्षा न हो तो दाना बनते समय एक सिंचाई करना फायदेमन्द होता है।

खरपतवार नियंत्रण

बुआई के 25 से 30 दिन तक खरपतवार फसल को अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हैं बुआई से एक-दो दिन पश्चात पेन्डीमिथालीन की 0.75-1 कि.ग्रा सक्रिय तत्व की मात्रा को 400-600 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करना लाभप्रद रहता है। बुवाई के 25-30 दिन बाद एक निंदाई कर देनी चाहिए

फसल सुरक्षा एवं रोग प्रबंधन -

रस चूसक कीट-

नियन्त्रण के उपाय - रस चूसक कीट जैसे जैसिड, सफेद मक्खी, थ्रिप्स, माहू इत्यादि के नियंत्रण के लिये जल्दी बुवाई करें। फसल पर किसी एक कीटनाशी जैसे डायमिथिएट 30ई.सी. का 1.7 मि.ली./ली. या थायोमेथोक्जम 25 डब्लू.जी. का 0.2 ग्रा./ली. या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. का 0.2 मि.ली./ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

दीमक व सफेद ग्रब -

यह भूमिगत कीट है जो पौधे की जडे़ं काटकर नुकसान पहुँचाते हैं। अच्छी प्रकार पकी हुई गोबर की खाद का ही उपयोग करें मृदा में फोरेट 10जी को 10 कि.ग्रा./हे. या क्लोरोपायरीफाॅस 1.5% चूर्ण 20-25 कि.ग्रा./हे. की दर से बुवाई के पूर्व खेत में देना चाहिए।

जीवाणु पत्ती धब्बा या झुलसाः

इस रोग के कारण पत्तियों पर छोटे, बडे व अनियमित आकार के भूरे धब्बे दिखाई देते हैं तथा रोग की तीव्रता की दशा में पत्तियाँ गिर जाती है। इस रोग के नियंत्रण के लिए बीजों को बुवाई के पूर्व बीजों को स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के 500 पी.पी.एम. (0.5 ग्रा./ली.) घोल में बीजो को 30 मिनट के लिये भिगा कर रखें। इसके बाद खड़ी फसल में स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 0.01% (1ग्रा./10 ली.) व काॅपर आक्सीक्लोराइड 3 ग्रा./ली. के हिसाब से घोल बनाकर 12 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करें।

पीला मोजेक रोग

इस रोग के नियन्त्रण के लिए डायमिथिएट 30 ई.सी. का 1.7 मि.ली./ली. या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल का 0.2 मि.ली./ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें तथा 15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करें।

फली छेदक - 

यह कीट फसल के पौधों की पत्तियों को खाकर फसल को नुकसान पहुंचाता है। इसकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास 36 डब्ल्यू एसी सी या मैलाथियोन 50 ई.सी. या क्यूनालफांस 25 ई.सी. आधा लीटर या क्यूनालफांस 1.5 प्रतिशत  पाउडर की 20-25 किलो मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव/भुरकाव करना चाहिए । जरूरत पड़ने पर 15 दिन के बाद दूसरा छिड़काव/भुरकाव किया जा सकता है।

 कातरा - 

कातरे की लट फसल की प्रारम्भिक अवस्था में पौधों को काटकर हानि पहुंचाती हैं । इसके नियंत्रण के लिए खेत के चारों तरफ कर क्षेत्र साफ रहना चाहिए तथा लट के प्रकोप होने पर मिथाइल पैराथियोन पाउडर की 20-25 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करनी चाहिए।

सरस्कोस्पोरा रोग -  

इस रोग के कारण पत्तियों पर कोणदार भूरे लाल रंग के धब्बे बन जाते है। रोग पौधों की नीचे की पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती है तथा पौधों की जड़ें भी सूख जाती है । इस रोग के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम की 500 ग्राम मात्रा 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। बीज को बुवाई से पूर्व 3 ग्राम कैप्टान या 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।

जैसीडस -

यह कीट हरे रंग का होता है तथा पौधों की पत्तियों से रस चूस कर फसल को नुकसान पहुंचाता है। पत्तियां मुड़ी-सी लगने लगती हैं । इस कीट के नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफास की आधा लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। इमिडाक्लोप्रिड की 500 मि.ली. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है।  

मोयला, हरा तेला व मक्खी:-

इन कीटों की रोकथाम के लिए मैलाथियोन 50 ई.सी. 1 लीटर या डायमियोएक 30 ई.सी. या मोनोक्रोटोफाॅस 30 डब्ल्यू एस.सी.ए. की आधा लीटर या क्यूनालफाॅस 25 ई.सी. एक लीटर या मैलाथियोन 5 प्रतिशत पाउडर 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। 

कटाई, गहाई व भण्डारण -

जब फलियाँ पक जाएँ और उनका रंग भूरा पड जाए तब कटाई करना चाहिए। कटाई के उपरान्त फसल को ढेर लगाकर 3-5 दिन के लिये धूप में सुखाते है। इसके बाद गहाई की जाती है। गहाई के बाद दाने को धूप में लगभग 8-10% नमी होने तक सुखाते हैं। इसके बाद दाने का भण्डारण किया जाता है।

उपज

उन्नत विधि से खेती करने पर दाने के लिए बोई गई फसल से 6-8 क्विंटल दाना प्रति हे. प्राप्त होता है तथा हरे चारे के लिए बोई गई फसल से 12-25 क्विंटल प्रति हे. हरा चारा प्राप्त होता है।

मोठ के अधिक उत्पादन लेने हेतु आवश्यक बिंदु -

  • ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई तीन वर्ष में एक बार अवश्य करें।
  • बुवाई पूर्व बीजोपचार अवश्य करें।
  • पोषक तत्वों की मात्रा मृदा परीक्षण के आधार पर ही दें।
  • पौध संरक्षण के लिये एकीकृत पौध संरक्षण के उपायों को अपनाना चाहिए।
  • खरपतवार नियंत्रण अवश्य करें। 

कहाँ संपर्क करें-

तकनीकी जानकारी हेतु अपने जिले / नजदीकी कृषि विज्ञान केन्द्र से संपर्क करें।
भारत सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा फसल उत्पादन (जुताई, खाद, बीज, सूक्ष्म पोषक तत्व, कीटनाशी, सिंचाई के साधनों), कृषि यन्त्रों, भण्डारण इत्यादि हेतु दी जाने वाली सुविधाओं/अनुदान सहायता/ लाभ की जानकारी हेतु संबंधित राज्य /जिला/ विकासखण्ड स्थित कृषि विभाग से संपर्क करें।

अधिक जानकारी हेतु देखें-

एम-किसान पोर्टल- http://mkisan.gov.in/
फार्मर पोर्टल- http://farmer.gov.in/
किसान काॅल सेन्टर- टोल-फ्री नं - 1800-180-1551

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