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जयपुर के पास भरता है गधों का विचित्र मेला

जयपुर से करीब दस किलोमीटर दूर गोनेर रोड पर लूणियावास के निकट भावगढ़ बंध्या में स्थित कुम्हारों की कुलदेवी खनकानी माता ( पूर्व नाम कल्याणी माता ) के मंदिर परिसर के मैदान में गधों का विचित्र-सा सालाना मेला भरता है, जिसका मुख्य उद्देश्य घोडों गधों और खच्चरों की खरीद और बिक्री है। यूं तो मेले की शुरूआत गधों की खरीद बिक्री से होती है, लेकिन धीरे धीरे अन्य जानवर भी बिकने के लिए आने लगते हैं। मेले में गधों की रोमांचक दौड़ और सौन्दर्य प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है। गधों , खच्चरों और घोडों के स्वामी प्रतियोगिता जीतने के लिए उन्हें चना , गुड , चने की दाल खिलाते हैं वहीं कुछ मालिक उनकी मालिश करके तैयार करते हैं। इन्हें सजाया संवारा जाता है तथा उनके गले में घंटिया बांधी जाती है। पशुओं को बुरी नजर से बचाने के लिए काला धागा सहित अन्य कुछ टोटके भी किए जाते हैं। खलकाणी माता के प्रति कुम्हार , धोबी , खटीक आदि जातियों में बरसों पहले से आस्था रही है।   भावगढ़ पर राजपूतों का शासन रहा था। भावगढ़ के एक पूर्व जागीरदार के अनुसार माधोसिंह द्वितीय ने ईश्वरसिंह राजावत को भावगढ़

नाथद्वारा का अद्भुत दीपोत्सव, गोवर्धन पूजा और अन्नकूट

पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय के प्रमुख तीर्थ स्थल नाथद्वारा में दीपावली का दिन सर्वाधिक आनंद का दिन होता है। भक्त मानते हैं कि प्रभु श्रीनाथजी प्रातः जल्दी उठकर सुगन्धित पदार्थों से अभ्यंग कर , श्रृंगार धारण कर खिड़क (गौशाला) में पधारते हैं , गायों का श्रृंगार करते हैं तथा उनको खूब खेलाते हैं। श्रीजी का दीपावली का सेवाक्रम - दीपावली का महोत्सव होने के कारण श्रीनाथजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं। मंदिर में प्रातः 4.00 बजे शंखनाद होता है तथा प्रातः लगभग 4.45 बजे मंगला के दर्शन खोले जाते हैं। मंगला के दर्शन के उपरांत प्रभु को चन्दन , आंवला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है। श्रीनाथजी को लाल सलीदार ज़री की सूथन , फूलक शाही श्वेत ज़री की चोली , चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ज़री की कूल्हे के ऊपर पाँच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धारण कराई जाती है। भगवान को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) तीन जोड़ी ( माणक , हीरा-माणक व पन्ना) का भारी श्रृंगार किया जाता है जिसमें हीरे , मोती , माणक , पन्न