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'कंजर'- राजस्थान की एक अनुसूचित जाति

'कंजर'- राजस्थान की एक अनुसूचित जाति कंजर जाति को भारत सरकार के The Constitution(Scheduled Castes) Order , 1950 1 (C.O.19) Part XV के अंतर्गत अनुसूचित जाति में सम्मिलित किया गया है । कई पुस्तकों एवं वेबसाइट्स पर इसे जनजाति बताया गया जो ठीक नहीं है ।     कंजर’ शब्द की उत्पति ‘काननचार’/’कनकचार’ से हुई है जिसका अर्थ है ‘जंगलो में विचरण करने वाला’ ।   ये मुख्यतः झालावाड, बारां, कोटा ओर उदयपुर जिलो में रहते हैं।    कंजर एक यायावर प्रकृति की जाति है। ये स्थान बदल बदल कर रहते हैं ।   कंजर जाति जरायमपेशा जाति मानी जाती है, यह अपनी अपराध प्रवृति के लिए कुख्यात है।   कंजर जाति के मुखिया को पटेल कहते हैं ।   पाती माँगना – ये अपराध करने से पूर्व किसी मंदिर में जाकर ईश्वर  का आशीर्वाद लेते है। उसको पाती माँगना कहा जाता है।   हाकम राजा का प्याला – यह कहा जाता है कि ये हाकम राजा का प्याला पीकर कभी झूठ नहीं बोलते है।     इन लोगो के घरों में भागने के लिए पीछे की तरफ खिडकी होती है परन्तु दरवाजे पर किवाड़ नहीं होते है। ये लोग हनुमान और चौथ माता की पूजा

संझ्या : सांझ से जुड़ा एक कन्‍या लोकपर्व

सांझी, संझ्या, मामुलिया, रली आदि कई नाम से जाना जाने वाला ये पर्व प्रत्येक घर में मनाया जाता है जिसमें महिलाएं विशेषकर कन्याएं अपने घर के मुख्य द्वार के पास की दीवार पर गोबर और फूलों से सझ्याँ की झांकी बनाती है ।   लोक देवी गौरी (पार्वती) का रूप भी है संझ्या- साँझी की प्रतिष्ठा राजस्थान में लोक देवी गौरी (पार्वती) के रूप में भी है, इसीलिए यहाँ संध्या देवी को प्रातःकाल में दूध व पुष्प से तथा शाम को शक्कर मिले आटे को छिड़क कर पूजते हैं। लड़कियाँ इस पर्व में साँझी को माता पार्वती मानकर अच्छे घर तथा वर के लिए कामना करती है।  गोबर और पुष्पों से होता है संझ्या का अलंकरण - इस पर्व में पहले दिन कुंवारी लड़कियां अपने घर के मुख्य द्वार के समीप गेरू से एक सम चौरस आकृति बनाती है, फिर इस पर चूने से बोर्डर बनाती है। गोबर से अलग-अलग आकृतियां बनाकर उन्हें फूल व पत्तियों से सजाया जाता है। बाद में इसकी पूजा-अर्चना की जाती है। इसे प्रतिदिन भोग लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में शाम को घर के बाहर संझ्या बनाने से पितृ खुश होते हैं और सुख-समृद्धि प्रदान करने के साथ ही संकटों

Damor and Sahriya Tribes of Rajasthan - राजस्थान की डामोर एवं सहरिया जनजाति

भारत सरकार के अनुसार राजस्थान की जनजातियों की सूची- 1. Bhil, Bhil Garasia, Dholi Bhil, Dungri Bhil, Dungri Garasia, Mewasi Bhil, Rawal Bhil, Tadvi, Bhagalia, Bhilala, Pawra, Vasava, vasave. 2. Bhil Mina 3. Damor, Damaria 4. Dhanka, Tadvi, Tetaria, Valvi 5. Garasia (Excluding Rajput Garasia) 6. Kathodi, Katkari, Dhor Kathodi, Dhor Katkari, Son Kathodi, Son Katkari 7. Kokna, Kokni, Kukna 8. Koli dhor, tokre Koli, Kolcha, Kolgha 9. Mina 10. Naikda, Nayaka, Cholivala Nayaka, Kapadia Nayaka, Mota Nayaka, Nana Nayaka 11. Patelia Seharia, Sehria, Sahariya. 12. Seharia, Sehria, Sahariya. डामोर जनजाति- यह जनजाति डूंगरपुर जिले की सीमलवाड़ा पंचायत समिति के दक्षिण - पश्चिमी केन्द्र (गुदावाड़ा - डूंका आदि गाँवों में) केन्द्रित है। यह क्षेत्र डामरिया क्षेत्र कहलाता है। सर्वाधिक डामोर डूंगरपुर जिले में है। जो कुल डामोरों का 61.61 प्रतिशत है। इसके पश्चात बांसवाडा व उदयपुर जिले में क्रमशः सर्वाधिक डामोर रहते है। डामोर जनजाति के परमार गौत्र के लोगों

राजस्थान की भामाशाह योजना-

भामाशाह योजना का उद्देश्य सभी राजकीय योजनाओं के नगद एवं गैर नगद लाभ को प्रत्येक लाभार्थी को सीधा पारदर्शी रुप से पहुँचाना है।  इस योजना का शुभारम्भ राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे द्वारा 15 अगस्त, 2014 को उदयपुर में किया गया था । यह योजना राशन कार्ड, पेन्शन, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति, जैसे लाभार्थियों को भी सम्मिलित करेगी। यह योजना परिवार को आधार मानकर उनके वित्तीय समावेश के लक्ष्य को पूरा करती है, जहाँ हर परिवार को 'भामाशाह कार्ड' दिया जाता है, जो उनके बैंक खातों से जुड़े होंगे।  यह बैंक खाता परिवार की मुखिया, जो कि महिला होगी, के नाम से होगा और वह ही इस खाते की राशि को परिवार के उचित उपयोग में कर सकेगी।  यह कार्ड बायो-मैट्रिक पहचान सहित कोर बैंकिंग को सुनिश्चित करता है। इसके अन्तर्गत, प्र