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राजस्थान समसामयिक घटनाचक्र-
विभिन्न पुरस्कार २०१३

  राजस्थान साहित्य अकादमी के 2013-14 के पुरस्कार- 1.        सर्वोच्च मीरा पुरस्कार- सर्वोच्च मीरा पुरस्कार कांकरोली (राजसमन्द) से प्रकाशित पत्रिका ‘संबोधन’ के संपादक और वरिष्ठ लेखक कमर मेवाडी को उनके कहानी संग्रह ‘ जिजीविषा और अन्य कहानियों पर । 2.        सुधीन्द्र पुरस्कार-      अजमेर के डॉ. अनुराग शर्मा को उनके कविता संग्रह ‘ तेरे जाने के बाद तेरे आने से पहले ’ पर । 3.        रांगेय राघव पुरस्कार- जयपुर के रामकुमार सिंह को उनके कहानी संग्रह ‘ भोभर तथा अन्य कहानियां ’ पर। 4.        देवीलाल सांभर पुरस्कार(नाट्य विधा)- जयपुर के सुनील खन्ना को उनकी नाट्य पुस्तक ‘ नव्य लघु नाटक ’ पर । 5.        आलोचना का देवराज उपाध्याय पुरस्कार- कोटा के डॉ. नरेन्द्र चतुर्वेदी को उनकी पुस्तक ‘ हाडौती अंचल की हिन्दी काव्य परंपरा और विकास’ पर। 6.        कन्हैयालाल सहल पुरस्कार- सवाई माधोपुर के प्रभाशंकर उपाध्याय को उनके व्यंग्य संग्रह ‘ काग के भाग बडे ’ पर । 7.        डॉ. आलमशाह खान अनुवाद पुरस्कार- बीकानेर के जेठमल मारू को उनकी पुस्तक ‘ ईप्सितायन ’ पर । 8

राजसमन्द का राजप्रशस्ति शिलालेख-

राजसमन्द का राजप्रशस्ति शिलालेख- राजप्रशस्ति महाकाव्य की रचना श्री रणछोड़ भट्ट नामक संस्कृत कवि द्वारा मेवाड़ के महाराणा राजसिंह की आज्ञा से 1676 ई. में की थी । इस ग्रन्थ के लिखे जाने के छ: वर्ष पश्चात महाराणा जयसिंह की आज्ञा से इसे शिलाओं पर उत्कीर्ण किया गया । छठी शिला में इसका संवत 1744 दिया हुआ है । इसे 25 बड़ी शिलाओं में उत्कीर्ण करवा कर राजसमन्द झील की नौ चौकी पाल (बांध) पर विभिन्न ताकों में स्थापित किया गया । यह भारत का सबसे बड़ा शिलालेख है । इसका प्रत्येक शिलाखंड काले पत्थर से निर्मित है जिनका आकार तीन फुट लम्बा तथा ढाई फुट चौड़ा है । प्रथम शिलालेख में माँ दुर्गा , गणपति गणेश , सूर्य आदि देवी-देवताओं की स्तुति है । संस्कृत भाषा में प्रणीत इस महाकाव्य के शेष 24 शिलालेखों में प्रत्येक में एक-एक सर्ग है तथा इस प्रकार कुल 24 सर्ग है । इसमें कुल 1106 श्लोक है । संस्कृत भाषा में होने के बावजूद इसमें अरबी , फ़ारसी तथा लोकभाषा का भी प्रभाव है। इसमें मुख्यतः महाराणा राजसिंह के जीवन-चरित्र एवं उनकी उपलब्धियों का वर्णन किया गया है किन्तु इसके प्रथम 5 सर्गों में मेवाड़ का प्रारं

चैनो अमन की इच्छुक लोक गायिका रेशमा का निधन -,
समसामयिक घटनाचक्र

अपनी मधुर आवाज से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाली पाकिस्तान की मशहूर लोक गायिका रेशमा का रविवार 31 अक्टूबर को सुबह निधन हो गया। वे गले के कैंसर से पीड़ित थी तथा एक महीने से वह कोमा में थीं। रेशमा का जन्म सन 1947 में राजस्थान के बीकानेर में एक बंजारा परिवार में  हुआ था। भारत पाकिस्तान विभाजन के बाद उनका परिवार पाकिस्तान के कराची चला गया था। वे 12 वर् ष की उम्र से गायन कर रही थी। वह शाबाज कलंदर न्यास से जुडी थी और उसके के लिए लंबे समय से गायन की सेवा दे रही थी। रेशमा उन गिने-चुने सितारों में से थी जिन्हें भारत तथा पाकिस्तान दोनों देशों में एक-सी शोहरत हासिल थी। अपनी विशिष्ट गायन शैली के कारण उन्होंने भारत में भी खूब नाम कमाया। रेशमा ने साल 1960 के दशक में भारतीय तथा पाकिस्तान दोनों की फिल्म इंडस्ट्री के लिए पार्श्व गायन किया तथा विदेशों में भी अपने गीतों से लोकप्रियता हासिल की। उन्होंने देश-विदेश में भी कई शो किए तथा उन्हें पाकिस्तान में तीसरे सबसे बडे नागरिक सम्मान 'सितारा-ए-इम्तियाज' से भी सम्मानित गया था। उनके सबसे चर्चित गीतों में लंबी जुदाई, दमा दम मस्त क

Major forts of Rajasthan | राजस्थान के प्रमुख दुर्ग

Major forts of Rajasthan | राजस्थान के प्रमुख दुर्ग राजस्थान में दुर्ग निर्माण की परम्परा पूर्व मध्यकाल से ही देखने को मिलती है। यहाँ शायद ही कोई जनपद हो, जहाँ कोई दुर्ग या गढ़ न हो। इन दुर्गों का अपना इतिहास है। इनके आधिपत्य को लेकर कई लड़ाइयाँ भी लड़ी गई। कई बार स्थानीय स्तर पर तो यदा-कदा विदेशी सत्ता द्वारा इन पर अधिकार करने को लेकर दीर्घ काल तक संघर्ष भी चले। युद्ध कला में दक्ष सेना के लिए दुर्ग को जीवन रेखा माना गया है। यहाँ यह बात महत्त्वपूर्ण है कि सम्पूर्ण देश में राजस्थान वह प्रदेश है, जहाँ पर महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के बाद सर्वाधिक गढ़ ओर दुर्ग बने हुए हैं। एक गणना के अनुसार राजस्थान में 250 से अधिक दुर्ग व गढ़ हैं। खास बात यह कि सभी किले और गढ़ अपने आप में अद्भुत और विलक्षण हैं। दुर्ग निर्माण में राजस्थान की स्थापत्य कला का उत्कर्ष देखा जा सकता है। प्राचीन ग्रंथों में किलों की जिन प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख हुआ है, वे यहाँ के किलों में प्रायः देखने को मिलती हैं। सुदृढ़ प्राचीर, अभेद्य बुर्ज, किले के चारों तरफ़ गहरी खाई या परिखा, गुप्त प्रवेश द्वार तथा सुरंग, किले के भीतर