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राजस्थान के तीर्थ स्थल-2

1. श्रीनाथद्वारा- उदयपुर से लगभग 45 किमी दूर पुष्टिमार्गीय वैष्णव सम्प्रदाय की प्रधान पीठ यहाँ स्थित है। यहाँ श्रीनाथजी का विशाल मंदिर है जिसमें अन्य मंदिरों की तरह वास्तुकला दिखाई नहीं देती। भगवान श्रीनाथजी को कृष्ण का बाल रूप माना गया है , इसी बाल रूप की लीलाओं की झाँकी हमें इस मंदिर और इसमें होने वाले दर्शनों में मिलती है। पुष्टिमार्ग में इस मंदिर को मंदिर न मान कर हवेली की संज्ञा दी गई है। हवेली का तात्पर्य है भवन। वस्तुत: इसे नंदबाबा के भवन का प्रतीक माना गया है। मंदिर में श्रीकृष्ण की काले पत्थर की अत्यंत मनोहारी आदमकद मूर्ति है , जिसका प्रतिदिन आकर्षक श्रंगार किया जाता है।   पुष्टिमार्ग की परंपरा के अनुसार इस मंदिर में प्रतिदिन आठ दर्शन होते हैं , ये दर्शन मंगला , ग्वाल , श्रृंगार , राजभोग , उत्थापन , भोग , आरती और शयन के होते है। यहाँ जन्माष्टमी , डोल , स्नान जात्रा (यात्रा) , छप्पन भोग और दीपावली (खेखरा , गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव) आदि उत्सव विशेष उत्साह के साथ मनाए जाते हैं जिनमें से दीपावली एवं जन्माष्टमी के उत्सवों में भारी भीड़ का

"राजस्थान के तीर्थ स्थल"

1. तीर्थराज पुष्कर - यह अजमेर से 11 किमी दूर है। पुष्कर ब्रह्माजी के मंदिर के लिए विश्व प्रसिद्ध है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, रामेश्वरम आदि तीर्थोँ के बाद पुष्कर में भी स्नान करना आवश्यक माना है । कहा जाता है कि विश्वामित्र ने यहाँ पर तपस्या की थी व भगवान राम ने यहाँ गया कुंड पर पिता दशरथ का पिण्ड तर्पण किया था। पांडवो ने भी अपने निर्वासित काल का कुछ समय पुष्कर में बिताया था। पुष्कर को गायत्री का जन्मस्थल भी माना जाता है। यहाँ प्रतिदिन तीर्थयात्री आते हैं लेकिन प्रसिद्ध पुष्कर मेले में हजारों देशी-विदेशी तीर्थयात्री आते हैं। यह मेला कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक चलता है। 2. कपिलमुनि का कोलायत - सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल की तपोभूमि कोलायत बीकानेर से लगभग 50 किमी दूर है। कार्तिक माह (विशेषकर पूर्णिमा) में यहाँ झील में स्नान का विशेष महत्व है। 3. भर्तृहरि - अलवर से 35 किमी दूर है यह नाथपंथ की अलख जगाने वाले राजा से संत बने भर्तृहरि का समाधि स्थल। यहाँ भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को मेला लगता है । कनफडे नाथ साधुओं के लिए इस तीर्