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Ancient Environment and Geography of Rajasthan राजस्थान का पुरा-पर्यावरण एवं भूगोल -

राजस्थान का पुरा-पर्यावरण एवं भूगोल -

राजस्थान प्रदेश का भू-भाग अपनी अनेकता में एकता समेटे हुए है। इसके 66000 वर्ग मील रेतीले क्षेत्र के अतिरिक्त अरावली के 430 मील लम्बी अरावली पर्वत श्रृंखला ने भौगोलिक दृष्टि से इसे विभाजित कर रखा है। अरावली पर्वत की श्रृंखला आबू पर्वत के गुरु शिखर से प्रारम्भ होकर अलवर के सिंघाना तक विस्तृत है। विश्व की इस प्राचीन पर्वत श्रृंखला का उत्तर-पश्चिमी भाग वर्षा के अभाव में सूखा रह गया है। यह क्षेत्र अरावली पर्वत के सूखी ढाल पर है। उत्तर-पश्चिमी भाग विशेषकर जोधपुर, जैसलमेंर व बीकानेर का भूभाग आता है। इस प्रदेश की जलवायु शुष्क है। यहां पर विशाल एवं उच्च बालू रेत के टीलों की प्रधानता है। इस क्षेत्र में वर्षा के अभाव के कारण प्रागैतिहासिक में बसावट की गहनता का अभाव दिखाई देता है। इस क्षेत्र में बहने वाली प्रमुख नदियों में लूणी नदी महत्त्वपूर्ण है। यह अजमेर के आनासागर से निकल कर जोधपुर, बाड़मेर व जालौर जिलों का सिंचन कर कच्छ की खाडी में जा समाती है। सूकड़ी, जोजरी, बांडी सरस्वती, मीठडी आदि इसकी सहायक नदियां है। अरावली पर्वत श्रृंखला के दक्षिणी-पूर्वी भाग में अच्छी वर्षा होती है तथा यहां कई नदियाँ बहती है इसलिए राजस्थान का यह भाग अत्यधिक उपजाऊ है। इस क्षेत्र में बहने वाली प्रमुख नदियों में चंबल, बनास, बेडच, बनास की सहायक कोठारी, कालीसिंध, माही, साबरमती आदि नदियाँ हैं।


सामजिक विकास के प्राम्भिक स्तर पर प्रागैतिहासिक मानव के इतिहास का स्वरुप ज्यादा इस पर निर्भर था कि वह किस प्रकार वहां तत्कालीन पर्यावरण के साथ परस्पर संपर्क करता था।


बिना भूगोल के इतिहास अधूरा रहता है और अपने एक प्रमुख तत्व से वंचित हो जाता है। यही कारण है कि इतिहास को मानव जाति के इतिहास और पर्यावरण का इतिहास दोनों ही परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। मिट्टी, वर्षा, वनस्पति, जलवायु और पर्यावरण मानव संस्कृति के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

राजस्थान की जलवायु का प्रागैतिहासिक काल में अपना महत्त्व रहा है। 1960 के दशक में पुरावनस्पति शास्त्रियों, पुरातत्ववेत्ताओं ने इस क्षेत्र का सर्वेक्षण किया जिसमें अमलानन्द घोष, गुरदीपसिंह अल्चिन, गोधी, हेगड़े, धीर, वी.एन. मिश्रा, साहा आदि विद्वान सम्मिलित थे। इन्होने सर्वप्रथम लूनी बेसीन में सर्वेक्षण के दौरान पाया कि यहां 10,000 वर्ष पूर्व सांभर, डीडवाना, पुष्कर, और लूणकरणसर क्षेत्र की जलवायु मनुष्यों के रहने के अनुकूल थी। इस प्रदेश की मिट्टी रेतीली थी। यहां पर ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्र अधिक होने से वर्षा का अभाव था जबकि दक्षिणी-पूर्वी भाग में मिट्टी अधिक उपजाऊ थी इसीलिए यहां सिंचाई के अभाव के बावजदू अच्छी फसलें हो जाती थी। इस भू भाग में ताम्रपाषाण युगीन बस्तियां काफी संख्या में फैली हुई थी। इसकी भौगोलिक अवस्थाओं को देखते हुए प्रतीत होता है कि प्रागैतिहासिककालीन संस्कृति का विस्तार इस भू-भाग में जलवायु के अनुकूल रहने के कारण हुआ होगा।



स्रोत- राजस्थान का इतिहास (प्रारंभ से 1206 . तक), वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा

Comments

  1. कृपया और अधिक व विस्तृत जानकारी उपलब्ध करवायें।

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    Replies
    1. धन्यवाद् ज्योति जी, आपके सुझाव अनुसार जरुर कोशिश करेंगे..

      Delete
  2. Aapko Blogspot par Adsense kaise mila

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