ग्रामीण विकास की कुछ योजनाएँ-
राजस्थान
में ग्रामीण विकास के लिए कई योजनाओं का आरंभ किया गया उनमें से कुछ महत्वपूर्ण
योजनाओं का वर्णन नीचे किया गया है।
1. राजस्थान में समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम -
- राजस्थान में नवम्बर 1977 में ‘अन्त्योदय’ कार्यक्रम शुरु किया गया जिसका उद्देश्य ग्रामीण निर्धनतम परिवारों के जीवन-स्तर में सुधार लाना था। इस कार्यक्रम को अभूतपूर्व सफल कार्यक्रमों का उदाहरण माना जाता है।
- अन्त्योदय कार्यक्रम के महत्व को दृष्टिगत रखते हुए भारत सरकार ने इस कार्यक्रम में कुछ परिवर्तन लाते हुए 1978-79 में एक कार्यक्रम शुरु किया जिसे समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP) की संज्ञा दी गई।
2. ग्राम स्वरोजगार योजना-
- अप्रैल 1999 से ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY) नामक एकल कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। इसे अब ''स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना'' के नाम से जाना जाता है । अब ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों के लिए स्वरोजगार का यह एक मात्र कार्यक्रम है। इसके अन्तर्गत विभिन्न कार्यक्रम जैसे समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम द्वारका आदि चलाए जा रहे है।
- इस योजना का उद्देश्य गरीबी रेखा से ऊपर जीवनयापन कर रहे लोगों की मदद करके सामाजिक एकजुटता, प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और आमदनी देने वाली परिसंपत्तियों की व्यवस्था के जरिए उन्हें स्वयं-सहायता समूहों के रूप में संगठित करना है।
- यह कार्य बैंक ऋण और सरकारी सब्सिडी के जरिए किया जाता है।
- लोगों की अभिवृत्ति और कौशल, संसाधनों की उपलब्धता और बाजार की संभाव्यता के आधार पर चुने हुए मुख्य कार्यकलापों के द्वारा कार्यकलाप समूह की स्थापना पर यह योजना ध्यान देती है।
- इस योजना में प्रक्रियागत दृष्टिकोण और गरीब ग्रामीणों की क्षमता निर्माण पर बल दिया जाता है। इसलिए इसमें स्वयंसेवी सहायता समूहों के विकास और पोषण, जिसमें कौशल-विकास भी शामिल है, में गैर-सरकारी संगठनों/सीबीओज/व्यक्तियों/बैंकों को स्वयं सहायता संवर्द्धन संस्थान/सुविधा प्रदाता के रूप में शामिल किया जाता है।
- योजना के अंतर्गत सब्सिडी कुल परियोजना लागत के 30 प्रतिशत की दर से दी जाती है लेकिन इसकी अधिकतम सीमा 7,500 रुपए (अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों और विकलांगों के लिए यह सीमा 50 प्रतिशत रखी गई है जो अधिकतम 10,000 रुपए है) तय की गई है।
- स्वयं-सहायता समूहों को परियोजना लागत का 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती है जिसकी अधिकतम सीमा 1.25 लाख या प्रति व्यक्ति 10,000 रुपए, इनमें जो भी कम हो, तय की गई है।
- लघु सिंचाई परियोजनाओं, स्वयं सहायता समूहों और स्वरोजगारियों के लिए सब्सिडी की कोई अधिकतम सीमा तय नहीं की गई है।
- एसजीएसवाई में ग्रामीण गरीबों में कमजोर वर्गों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। तदनुरूप स्वरोजगारियों में से कम से कम 50 प्रतिशत अनुसूचित जातियों/जनजातियों से, 40 प्रतिशत महिलाओं और 3 प्रतिशत विकलांगों को शामिल करना अनिवार्य बनाया गया है।
- योजना के तहत एक बार ऋण देने के बजाय बहु-ऋण सुविधा को तरजीह दी जाती है।
3. जवाहर रोजगार योजना -
1 अप्रेल 1989 से जवाहर रोजगार योजना प्रारंभ की गई इस योजना का
मुख्य उद्देश्य रोजगार के अतिरिक्त अवसर उपलब्ध कराकर ग्रामीण क्षेत्रों के निर्धन
परिवारों के जीवन-स्तर में सुधार लाना है। साथ ही यह भी ध्येय है कि गांवों में
निर्माण कार्य कराकर सार्वजनिक सम्पत्तियों का सृजन हो जिससे गांवों का आर्थिक और
सामाजिक आधारभूत ढांचा सुदृढ़ हो सके।
4. जवाहर ग्राम समृद्धि योजना -
अप्रैल 1999 से जवाहर रोजगार योजना का पुनर्गठन कर इसे ‘‘जवाहर ग्राम समृद्धि
योजना’’ का नाम दिया गया है। इसके
पुनर्गठन का मुख्य उद्देश्य योजना को प्रभावी ढंग से लागू करना है। वास्तव में यह
जवाहर रोजगार योजना का पुनर्गठित,
व्यवस्थित एवं व्यापक रुप है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य गांवों में रहने वाले
गरीबों के जीवन स्तर में सुधार करने के लिए उन्हें लाभप्रद रोजगार के अवसर उपलब्ध
करवाना है।
5 प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना:-
अच्छी
जीवनचर्या (विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में) के लिये सामाजिक आर्थिक ढांचे के पांच
घटक बहुत महत्वपूर्ण है - शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, आवास एवं सड़कें। लेकिन हमारे देश के योजनाकारों ने
गांवों को सड़कों के द्वारा शहरों से नहीं जोड़कर बहुत बड़ी गलती की है। आजादी के बाद
लगभग छः दशक की अवधि बीत जाने के बावजूद देश के ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत
सेवाओ की स्थिति संतोषजनक नहीं है। देश के चालीस प्रतिशत गांवों में उपयुक्त सड़कें
नहीं है। हजारों गाँवों में पेयजल की समस्या हैं लगभग 140 लाख ग्रामीण आवासों की कमी है तथा ग्रामीण
स्वास्थ्य सुविधाओं में बहुत बड़ी विसंगतियाँ एवं कमियाँ है।
उपर्युक्त
समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए रखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2000 से प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना (PMGY) शुरु की। समयबद्ध कार्यक्रम के रुप में ग्रामीण
निर्धन लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति इस कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य था।
इस कार्यक्रम की अनुवर्ती कार्यवाही के रुप में विशेषकर ग्रामीण संयोजनता के
उद्देश्य से 25 दिसम्बर,
2000 को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (Pradhan
Mantri Gramodaya Yojana-PMGY) नामक यह कार्यक्रम वर्ष 2000-01 से देश के सभी राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों
में शुरु किया गया ताकि ग्राम स्तर पर स्थायी मानव दिवस के उद्देश्य को पूरा किया
जा सके। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत राज्येां एवं केन्द्र शासित प्रदेषों को कुछ
चुनी हुई आधारभूत न्यूनतम सेवाओं के लिए अतिरिक्त केन्द्रीय सहायता प्रदान की गई
ताकि सरकार द्वारा घोषित कुछ प्राथमिक क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया जा सके। इसके
अंतर्गत दो मुख्य कार्यक्रम निम्न हैं-
(i) ग्रामीण पेयजल परियोजना -
इस
कार्यक्रम के अन्तर्गत सम्बन्धित राज्य सरकार कुल आवंटित राशि का कम से कम 25 प्रतिशत राशि की रेगिस्तान विकास कार्यक्रम /सूखा
प्रभावित क्षेत्र कार्यक्रम वाले क्षेत्रों में निम्नांकित परियोजनाओं/कार्यक्रमों
के लिए प्रयुक्त करेगी-
क. जल संरक्षण
ख. जल एकत्र करना
ग. पेयजल स्त्रोतों को पुनः भरना तथा उनका अस्तित्व बनाये रखना।
(ii) प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना -
शत-प्रतिशत
केंद्र द्वारा प्रायोजित प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना 25 दिसंबर, 2000 को शुरू की गई। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य
ग्रामीण इलाकों
में 500 या इससे अधिक आबादी वाले (पहाड़ी और रेगिस्तानी
क्षेत्रों में
250
लोगों की आबादी वाले गांव) सड़क-संपर्क से वंचित
गांवों को बारहमासी
सड़कों से जोड़ना है।
भारत
निर्माण के अंतर्गत, 2009 तक समयबद्ध तरीके से, मैदानी क्षेत्रों
में 1000 से ज्यादा जनसंख्या वाले आबाद क्षेत्र और पहाड़ी
व जनजातीय इलाकों
में 500 या ज्यादा की जनसंख्या वाले आबाद क्षेत्रों को
जोड़ने का लक्ष्य
रखा गया है। विद्यमान
ग्रामीण सड़क नेटवर्क का क्रमबद्ध उन्नयन भी इस योजना का घटक है। तदनुसार 1,46,185
किलोमीटर, बारहमासी सड़कों द्वारा
66,802 आबाद क्षेत्रों को जोड़ने की एक
कार्य-योजना तैयार की गई है। इस कार्य
योजना में, विद्यमान ग्रामीण सड़क नेटवर्क के
उन्नयन/नवीकरण भी परिलक्षित
हैं। ऐसा अनुमान है कि भारत निर्माण के अंतर्गत लक्ष्यों की
प्राप्ति हेतु 48,000 करोड़ के निवेश की आवश्यकता होगी। क्रियान्वयन
रणनीति, गुणवत्ता, मूल्य-प्रबंधन एवं ‘समय पर’ सुपुर्दगी पर फोकस कर रही
है।
PMGSY का क्रियान्वयन सभी राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों
में किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत सभी पंचायत मुख्यालयों एवं पर्यटन
की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थानेां को सड़क से जोड़ा जा रहा है। इसके लिए उन स्थानों
की जनसंख्या के आकार को ध्यान में नहीं रखा जा रहा है।
जुलाई,
2008 तक 81,717 करोड़ रुपए के परियोजना प्रस्तावों को स्वीकृति
दी गई जिसमें 38,999 करोड़ रुपए जारी किए गए। इसमें 86,146
सड़कों को शामिल किया गया, जिनकी लंबाई 3,31,736 किलोमीटर है। इसमें 1,75,629 किलोमीटर की 52,218 सड़कों का कार्य पूरा हुआ जिसमें 35,295
करोड़ रुपए व्यय हुए।
6. मनरेगा-
सितम्बर,
2005 में पारित हुए NREGA अधिनियम (Mahatma Gandhi National Rural
Employment Guarantee Act)
के साथ राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी स्कीम को
देश के 200 अभिज्ञात जिलों में 2 फरवरी 2006 से प्रारम्भ किया गया। एनआर. ई.जी.ए. को ऐसे
प्रत्येक ग्रामीण परिवार को न्यूनतम 100 दिन का गारण्टीयुक्त अकुशल मजदूरी रोजगार उपलब्ध
कराए जाने के उद्देश्य से कार्यान्वित किया गया जो इसके लिए इच्छुक होगें । SGRY के चल रहे कार्यक्रमों और काम के बदले अनाज
कार्यक्रम (NFWP) को इन जिलों में NREGA के अन्तर्गत मिला दिया गया है। वर्ष 2007-08 में NREGA का विस्तार करते हुए इसे 330 जिलों में लागू कर दिया गया। वर्ष 2008-09 में इसे देश के सभी ग्रामीण जिलों में लागू कर दिया
गया। वर्तमान में योजना का क्रियान्वयन 651 जिलों के 6,834
ब्लॉक्स की 2,50,109 ग्राम पंचायतों में किया जा रहा है। इसमें 27.3
करोड़ मजदूर पंजीकृत है जिनके कुल जॉब कार्ड की संख्या 12.92 करोड़ हैं । एनआरईजीए
एक मांग आधारित स्कीम है जिसका केन्द्र बिन्दु जल संरक्षण, सूखाग्रस्त क्षेत्रों का उद्धार (वानिकी/वृक्षारोपण
सहित) भूमि विकास, बाढ़ नियन्त्रण/संरक्षण (जल ठहराव वाले क्षेत्रों में जल निकासी सहित) और सभी
मौसमों में अच्छी सड़कों हेतु सड़क सम्बद्धता से सम्बन्धित क्षेत्रों पर ध्यान देना
रहा है। वर्तमान में इस योजना का नया नाम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार
गारंटी योजना है।
इसके अंतर्गत राज्य सरकारों को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे रोजगार
प्रदान करने में कोताही न बरतें क्योंकि रोजगार
प्रदान करने के खर्च का 90 प्रतिशत हिस्सा केन्द्र वहन करता है। इसके अलावा इस
बात पर भी जोर दिया जाता
है कि रोजगार शारीरिक श्रम आधारित हो जिसमें ठेकेदारों और मशीनों का
कोई दखल हो। अधिनियम में महिलाओं की 33
प्रतिशत श्रम भागीदारी को भी
सुनिश्चित किया गया है। श्रम मद पर 60
प्रतिशत और सामग्री मद में 40
प्रतिशत व्यय किये जाने की अधिकतम सीमा निश्चित की
गयी है।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम का उद्देश्य:
इस
अधिनियम का उद्देश्य, प्रत्येक वित्तीय वर्ष में,
प्रत्येक ग्रामीण परिवार अकुषल शारीरिक कार्य करने
के इच्छुक वयस्क सदस्य को कम से कम 100 कार्य दिवसों का रोजगार प्रदान करके देश के
ग्रामीणों क्षेत्रों के परिवारों को आजीविका प्रदान करना है।
काम के बदले अनाज योजना -
''राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम''
नवंबर, 2004 में ग्रामीण विकास मंत्रालय और राज्य सरकारों के
परामर्श से योजना
आयोग द्वारा देश के चुने हुए 150 सर्वाधिक पिछड़े जिलों में प्रारंभ
किया गया था।
इस
कार्यक्रम का उद्देश्य देश के सर्वाधिक पिछड़े 150 जिलों में संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना
(एसजीआरवाई) के
अंतर्गत उपलब्ध संसाधनों के अलावा अतिरिक्त संसाधन
प्रदान करना है ताकि
इन जिलों में आवश्यकता आधारित आर्थिक-सामाजिक और सामुदायिक
परिसंपत्तियों के निर्माण के जरिए पूरक दिहाड़ी
रोजगार और खाद्य सुरक्षा प्रदान
करने के काम को और सशक्त बनाया जा सके। यह कार्यक्रम शत-प्रतिशत
केंद्र प्रायोजित है। यह कार्यक्रम अब राष्ट्रीय
ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम
में शामिल हो गया है। यह अधिनियम, प्रत्येक उस ग्रामीण
परिवार को, जिसके सदस्य अकुशल शारीरिक श्रम करने की इच्छा
प्रकट करें, 100 दिन के
काम की गारंटी प्रदान करता है।
7. भारत निर्माण योजना-
- भारत निर्माण योजना ग्रामीण इलाकों के लिए बनाई गई एक समयबद्ध योजना है।
- केंद्र सरकार ने ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं को विकास करने के उद्देश्य से 2005 में भारत निर्माण कार्यक्रम की शुरूआत की है जो वर्ष 2005-06 से 2008-09 तक की अवधि में लागू किया जा चुका है।
- इसके तहत 6 क्षेत्र हैं- 1. सिंचाई, 2. ग्रामीण आवास, 3. ग्रामीण जल प्रदाय, 4. टेलीफोन सेवा, 5. ग्रामीण विद्युतीकरण तथा 6. ग्रामीण सड़कें। इसके अंतर्गत इन 6 क्षेत्र में विकास कार्य किए जा रहे हैं। ये 6 क्षेत्र निम्नानुसार है-
(i) सिंचाई-
- भारत निर्माण के सिंचाई मद के अंतर्गत चिन्हित किए गए बड़े और मझोले आकार की सिंचाई परियोजना अभियानों को चार वर्षों (2005-06 से 2008-09) के अंदर पूरा कर अतिरिक्त एक करोड़ हेक्टेयर भूमि हेतु सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने क लक्ष्य रखा गया।
- 42 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई क्षमता का निर्माण चल रहे अभियानों को शीघ्रतापूर्वक पूरा करके किया जाएगा।
- सिंचाई क्षमता के निर्माण और उनके दोहन में एक बड़ी विषमता है। भारत निर्माण के तहत कमान क्षेत्र विकास, जल प्रबंधन के साथ-साथ विस्तार, पुनरोद्धार और नवीनीकरण योजनाओं के द्वारा 10 लाख हेक्टेयर की सिंचाई क्षमता की बहाली करना है।
(ii) टेलीफोन सेवा -
- ग्रामीण बुनियादी ढांचे के सुधार में बेहतर टेलीफोन सेवा की पहुंच का महत्वपूर्ण योगदान होता है। भारत निर्माण योजना के तहत जिन 66,822 राजस्व गांवो में सार्वजनिक फोन नहीं हैं, उन्हें भी शामिल किया जाएगा।
- इनमें से 14,183 सुदूर एवं दूर-दराज के गांवों में कनेक्टिविटी डिजिटल उपग्रह फोन टर्मिनल के माध्यम से उपलब्ध कराई जाएगी। इन ग्रामीण सार्वजनिक फोनों के लिए लागत और परिचालन व्यय राशि सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि से प्रदान की जाएगी।
(iii) इंदिरा आवास योजना (आईएवाय)-
- गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और बंधुआ मजदूरों के निवास स्थलों के निर्माण और उन्नयन के लिए वर्ष 1985-86 से भारत सरकार वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए इंदिरा आवास योजना को कार्यान्वित कर रही है।
- वर्ष 1993-94 से इस योजना के दायरे को बढ़ा कर इस योजना के तहत गैर अनुसूचित जाति, जनजाति के गरीब परिवारों को भी शामिल किया गया। लेकिन योजना के तहत कुल आवंटित राशि के 40% से अधिक की सहभागिता इन्हें नहीं प्रदान की जाएगी।
- इस योजना का विस्तार सेवानिवृत्त सेना और अर्द्धसैनिक बल के मुठभेड़ में मारे गए लोगों के परिवारों तक भी किया गया है।
- योजना के तहत आवंटित किए जाने वाले 3 प्रतिशत मकान शारीरिक और मानसिक विकलांगों के लिए वर्ष 2006-07 आरक्षित किए गए हैं।
- प्रत्येक राज्य में गरीबी रेखा के नीचे के अल्पसंख्यकों को भी इस योजना का लाभ प्रदान के लिए चिह्नित किया जा रहा है।
- योजना के तहत प्रदान की जा रही सहायता में केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 75:25 के अनुपात में होगी।
- चूंकि योजना का उद्देश्य आवासविहीन लोगों की संख्या में कमी लाना है इसलिए योजना आयोग द्वारा राज्यस्तरीय आवंटन में 75% आवासों की कमी को और 25% गरीबी को वरीयता दी गई है।
- जिलास्तरीय आवंटन में एक बार फिर 75% वरीयता आवासों की कमी को तथा शेष 25% संबंधित राज्य की अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को दी गई है।
- एक बार आवंटन राशि तथा लक्ष्य तय होने के बाद जिला ग्रामीण विकास एजेंसी/जिला परिषद इंदिरा आवास योजना के तहत ग्रामवार बनाए जाने वाले मकानों की संख्या तय करती हैं और इस आशय की जानकारी संबंधित गांवों को प्रेषित कर दी जाती है। इसके बाद ग्राम सभाएं योजना के लाभार्थियों का चयन स्थायी इंदिरा आवास योजना प्रतीक्षा सूची से करती हैं। इसके बाद किसी अन्य उच्च अधिकारी से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती।
- इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत दी जाने वाली राशि को 1 अप्रैल, 2008 से मैदानी इलाकों में प्रति गृह निर्माण सहायता को 25,000 रुपए से बढ़ाकर 35000 रुपए और पहाड़ी/पर्वतीय क्षेत्रों में 27,500 रुपए से बढ़ाकर 38,500 रुपए कर दिया गया है।
- कच्चा मकान को पक्का बनाने के लिए प्रति मकान 12,500 रुपए की राशि को बढ़ाकर 15000 रुपए कर दिया गया है।
- इसके अलावा वित्त मंत्रालय ने भारतीय रिजर्व बैंक से निवेदन किया है कि इंदिरा आवास योजना के तहत प्रति मकान दिए जाने वाले लिए 20,000 रुपए तक के ऋण को 4% की दर पर जारी करे।
- योजना के तहत आवासीय इकाई परिवार की महिला सदस्य के नाम से ही आवंटित होनी चाहिए। विकल्प के तौर पर मकान को महिला और पुरूष (पति या पत्नी) दोनों के नाम पर भी आवंटित किया जा सकता है। केवल उसी स्थिति में परिवार के पुरूष सदस्य के नाम मकान आवंटित किया जाना चाहिए जबकि परिवार में कोई योग्य महिला सदस्य न हो।
- शौचालय, धुआं रहित चूल्हा, उपयुक्त नाली प्रत्येक इंदिरा आवास योजना के घरों में होने चाहिए। लाभार्थी चाहे तो इंदिरा आवास मकान के लिए अलग से शौचालय का निर्माण कर सकता है।
- मकान का निर्माण करना लाभार्थी की व्यक्तिगत जवाबदेही है। किसी ठेकेदार की सहभागिता को प्रतिबंधित किया गया है।
- इंदिरा आवास योजना के तहत बनाए जाने वाले आवासों के लिए किसी तरह का विशेष डिजाइन निर्धारित नहीं किया गया है। डिजाइन, तकनीक और सामग्री का चयन पूरी तरह लाभार्थी के ऊपर निर्भर करता है।
- इंदिरा गांधी आवास योजना के तहत 31 मई, 2008 तक 181.51 लाख आवासों का निर्माण किया गया तथा इस पर 36900.41 करोड़ रुपए व्यय हुए हैं।
(iv) ग्रामीण विद्युतीकरण योजना -
- ऊर्जा मंत्रालय भारत सरकार ने अप्रैल 2005 में सभी गांवों और बस्तियों का चार वर्षों में विद्युतीकरण करने के लिए राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना लागू की।
- इसके तहत हर घर तक बिजली पहुंचाए जाने का लक्ष्य है। इस योजना को भी भारत निर्माण योजना के अधीन लाया गया है।
- राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के लिए बुनियादी ढांचे की जरूरत होगी जिसके लिए ग्रामीण विद्युत वितरण रीढ़ (आरईडीबी) स्थापित करने की जरूरत होगी जिसके लिए कम से कम एक 33/11 KV उप स्टेशन, ग्रामीण विद्युतीकरण ढांचा जिसके लिए हर गांव में या केंद्र पर कम से कम एक वितरण ट्रांसफॉर्मर और जहां ग्रिड नहीं लगाई जा सकती वहां उत्पादन सुविधा के साथ ही स्वतंत्र ग्रिडों की आवश्यकता होगी।
(v) ग्रामीण जल प्रदाय -
- केंद्र सरकार ने ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं को विकास करने के उद्देश्य से 2005 में भारत निर्माण कार्यक्रम की शुरूआत की है जो वर्ष 2005-06 से 2008-09 तक की अवधि में लागू किया जा चुका है।
- ग्रामीण पेयजल भारत निर्माण कार्यक्रम के छ: घटकों में से एक है। भारत निर्माण को लागू की गई इस अवधि में जहां जलापूर्ति बिल्कुल नहीं थी, ऐसे 55,067 क्षेत्रों और 3.31 लाख ऐसे इलाकों जहां आंशिक रूप से जलापूर्ति की जा रही थी, शामिल करके पेयजल उपलब्ध कराया गया।
- 2.17 लाख ऐसे इलाकों में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराया गया जहां गंदे पानी सप्लाई की जाती थी।
- पेयजल में सामुदायिक भागीदारी को और बढ़ाने तथा मजबूत बनाने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण पेय जल गुणवत्ता निगरानी और सतर्कता कार्यक्रम फरवरी, 2006 में प्रारंभ किया गया।
(vi) ग्रामीण सड़कें -
- ग्रामीण आधारभूत ढांचे का उन्नयन करने के लिए, सरकार ने 1000 से अधिक की जनसंख्या वाले 38,484 से अधिक ग्रामों को तथा पहाड़ी और जनजातीय क्षेत्रों में 500 से अधिक की जनसंख्या वाली सभी 20,867 आबादियों के लिए सड़क संयोजकता की व्यवस्था करने के एक प्रस्ताव का निरूपण किया है।
- भारत निर्माण के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए, वर्ष 2007 तक 1,46,185 कि.मी. लंबी सड़क के निर्माण का प्रस्ताव है। इससे देश में 66,802 असंयोजित पात्र आबादियों को लाभ होगा।
- खेतों को बाजार से जोड़ने के लिए, विद्यमान 1,94,132 कि.मी. लंबे मार्गों के उन्नयन करने का भी प्रस्ताव है। इसे हासिल करने के लिए लगभग 48,000 करोड रुपए के निवेश का प्रस्ताव है।
8. संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना-
- संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (एसजीआरवाई) 25 सितंबर, 2001 को प्रारंभ की गई।
- यह कार्यक्रम पहले से जारी रोजगार आश्वासन योजना और जवाहर ग्राम समृद्धि योजना को मिलाकर बनाया गया था।
- इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ दिहाड़ी रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए स्थायी सामुदायिक परिसंपत्तियों का निर्माण करना है।
- कार्यक्रम का लक्ष्य समाज के कमजोर वर्गों, विशेषकर महिलाओं, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और जोखिमपूर्ण व्यवसायों से हटाए गए बच्चों के अभिभावकों पर विशेष ध्यान देना है।
- हालांकि इस योजना के तहत रोजगार देने में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे परिवारों को वरीयता दी जाती है लेकिन गरीबी की रेखा से ऊपर के लोगों को भी रोजगार मुहैया कराया जा सकता है, जहां एनआरईजीए प्रारंभ हो चुका है।
- इस योजना का स्वीकृत वार्षिक परिव्यय 10,000 करोड़ रुपए है, जिसमें 50 लाख टन अनाज शामिल है।
- योजना में खर्च की जाने वाली धनराशि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा 75:25 के अनुपात में वहन की जाती है।
- राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को अनाज मुफ्त मुहैया कराया जाता है।
- रियायती दर से अनाज के दाम का भुगतान केंद्र द्वारा सीधे भारतीय खाद्य निगम को किया जाता है। लेकिन एफसीआई गोदामों से कार्यस्थल/सार्वजनिक वितरण केंद्र तक अनाज ढुलाई का खर्च और इसके वितरण की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है।
- इस योजना के अधीन काम में लगे मजदूरों को दिहाड़ी के रूप में न्यूनतम 5 किलोग्राम अनाज और कम से कम 25 प्रतिशत मजदूरी नकद दी जाती है।
- यह कार्यक्रम पंचायती राज संस्थानों के तीनों स्तरों पर कार्यान्वित किया जाता है। पंचायत का प्रत्येक स्तर कार्ययोजना बनाने और इसे लागू करने के मामले में एक स्वतंत्र इकाई होता है। जिला पंचायत, मध्यवर्ती पंचायत और ग्राम पंचायतों के बीच संसाधनों का वितरण 20:30:50 के अनुपात में किया जाता है।
- ग्राम पंचायत उपलब्ध संसाधनों तथा अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप ग्राम सभा के अनुमोदन से कोई कार्य शुरू कर सकती है।
- ग्राम पंचायतों के लिए आवंटित धनराशि का 50 प्रतिशत हिस्सा अनुसूचित जाति/जनजाति बस्तियों में ढांचागत सुविधाओं के विकास पर खर्च करना होता है।
- जिला पंचायत और मध्यवर्ती पंचायतों के संसाधनों के हिस्से का 22.5 प्रतिशत अजा/अजजा के लिए लागू निजी लाभार्थी योजना पर खर्च किया जाना आवश्यक है।
- इस योजना में किसी प्रकार का काम ठेकेदारों से कराने की अनुमति नहीं है और न ही इसमें किसी मध्यस्थ तथा बिचौलिया एजेंसी को शामिल करने का प्रावधान है।
- कार्यक्रम पर लगातार निगरानी रखी जाती है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा इस कार्यक्रम का मूल्यांकन प्रतिष्ठित संस्थानों और प्रायोजित संगठनों द्वारा प्रभाव-अध्ययन के जरिए कराया जा रहा है।
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