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Prominient Literature Writings of Rajasthan - राजस्थानी साहित्य की प्रमुख रचनाएं-






पुस्तक एवं लेखक-
1.     भरतेस्वर बाहुबलि घोर- वज्रसेन सूरि
2.     भरतेस्वर-बाहुबलि रास- सालिभद्र सूरि
3.     बुद्धिरास- सालिभद्र सूरि
4.     बीसलदेव रासौ- नरपति नाल्ह
5.     हंसावली- कवि असाइत
6.     रणमल्ल छंद- श्रीधर व्यास
7.     खुमाण रासौ- दलपत विजय (दौलतविजय)
8.     विजयपाल रासौ- नल्ल
9.     अचळदास खीची री वचनिका- सिवदास गाडण
10.            कान्हड़दे प्रबन्ध- पद्मनाभ
11.            वीरमायण- बादर ढाढ़ी
12.            राणा रासो- दयालदास
13.            वंशभास्कर- सूर्यमल्ल मिश्रण
14.            हम्मीर रासो- सारंगधऱ
15.            कुवलयमाला- उद्योतन सूरि
16.            बिन्ने रासो- महेशदास
17.            विरूद्ध छिहतरी- दुरसा आढ़ा
18.            चंदनबाला रास- जैन कवि आसगु
19.            पृथ्वीराज रासौ- चंद बरदाई
20.            चिन्तामणीं- मेरूतुंग
21.            महादेव पारबती री वेलि- क्रिसना आढ़ा
22.            वीर सतसई- सूर्यमल्ल मिश्रण
23.            गजगुण रूपकबंध- केसवदास गाडण
24.            महाराणा प्रताप रा झूलणा- माला सांदू
25.            वीरवांण- वादर ढाढ़ी
26.            पृथ्वीराज विजय- जयानक
27.            समरारास- अंबदेव
28.            छंद राव जैतसी रौ- सूजाजी बीठू
29.            पंच सहेली रा दूहा- छीहल
30.            लक्ष्मणायण- आसानंद बारहठ
31.            निरंजनप्राण गोगाजी री पेड़ी- आसानंद बारहठ
32.            उमादे भटियाणी रा कवित्त- आसानंद बारहठ
33.            हालां झालां रा कुण्डलिया- ईसरदास
34.            हरिरस- ईसरदास
35.            वेलि क्रिसन रूकमणी री- प्रथ्वीराज राठौड
36.            रूक्मणी हरण- सांयाजी झूजा
37.            रामरासो- माधवदास दधवाड़िया
38.            भासा भूसण- जसवंत सिंह
39.            संमतसार- सांइदान
40.            ढोला मारू रा दूहा- कवि कल्लोल
41.            सत्रुसाल रासौ- डूंगरसी
42.            वचनिका राठौड़ रतनसिंहजी री महेसदासोत री- खिड़िया जग्गा
43.            राजप्रकास- किसोरदास
44.            सगत रासौ- गिरधर आसिया
45.            हरिपिंगळ प्रबन्ध- जोगीदास
46.            राजरूपक- वीरभांण
47.            सूरजप्रकास- करणीदान
48.            भासा भारथ- खेतसी
49.            राजिया रा सोरठा- किरपाराम खिड़िया
50.            भीमविलास- किसनाजी
51.            रघुनाथ रूपक- मंछाराम सेवक
52.            द्रोपदी विनय- रामनाथ कविया
53.            पार्श्वनाथ रास- श्रीरास
54.            शीलवती रास- कुशल धीर
55.            मृगावती रास- समयसुंदर
56.            क्रिसन री वेलि- करमसी सांखला
57.            रूक्मिणी हरण- साया झूला
58.            नागदमन- साया झूला
59.            पद्मिनी चरित चौपाई- लब्धोदय
60.            माताजी री वचनिका- जयचंद यति
61.            सूर छत्तीसी, सीह छत्तीसी, वीर विनोद, दातार बावनी, नीतिमंजरी, संतोस बावनी, कायर बावनी और कुकवि बत्तीसी- बांकीदास
62.            गोरा बादल चरित चौपाई- हेमरतन सूरि
63.            हरिरस, छोटा हरिरस, बाळ लीळा, गुण भागवत हंस, गुरूड़ पुराण, गुण आगम, निन्दा स्तुति, देवियाण, वैराट, रास कैलास, सभापर्व, हाळां झाळां री कुंडळिया- ईसरदास
64.            किरतार बावनी- दूरसा आढ़ा
65.            हंसावली- असाइत
66.            माधवानल कामकंदला चौपाई- कुशललाभ
67.            रूघरास- रूंघा मुहता
68.            रूक्मणी मंगल (हरजी रो ब्याहलो) - पद्मा तेली महेश्वरी
69.            नरसी जी रो मायरो- रतना खाती
70.            पाबूजी रा पवाड़ा- मोड़जी आसिया
71.            धवळ पच्चीसी - कविराजा बांकीदास
72.            रतनसी खीवावत री वेल- दूदो विसराल
73.            राय हम्मीरदेव चौपई- भांडउ व्यास
74.            मारवाड़ परगना री विगत- मुंहता नैणसी
75.            मुंहता नैणसी री ख्यात- मुंहता नैणसी

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Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन

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हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क

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