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Showing posts from April, 2011

राजस्थान समसामयिकी- अलवर के टपुकड़ा में विकसित होगी अपेरल सिटी

बड़े शहरों में श्रमिकों की भारी समस्या को देखते हुए अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (ए. ई. पी. सी.) ने अब गाँवों के आसपास अपैरल सिटी विकसित करने का फैसला किया है। इस दिशा में सर्वप्रथम राजस्थान अपैरल सिटी की स्थापना अलवर जिले के टपूकड़ा में 250 एकड़ में विकसित की जाएगी। यह विश्वस्तरीय सुविधाओं से लैस होगी और यहाँ श्रमिकों को प्रशिक्षित भी किया जाएगा। राजस्थान स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट एंड इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड ( रीको ) ने ए. ई. पी. सी. की इस बड़ी परियोजना को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है और शीघ्र ही टपुकड़ा में भूमि भी दे दी जाएगी। मानेसर से लगभग 40 किमी दूर बनने वाली इस अपैरल सिटी में 1000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश की आशा है। अगले पाँच साल के दौरान इस सिटी से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर हजारों लोगों को रोजगार मिलने की संभावना है। रीको ने इस परियोजना के लिए टपुकड़ा में जमीन चिह्नित कर ली है एवं अगले एक-दो सप्ताह में ए. ई. पी. सी. को 250 एकड़ जमीन सौंप दी जाएगी। ए.ई.पी.सी. स्पेशल परपस व्हीकल्स (एस.पी.वी.) के जरिए यहाँ अपैरल सिटी विकसित करेगी। ए.ई.पी.सी. के अनुसार भारत

महिला अधिकारिता विभाग

वर्ष 2007–08 के बजट घोषणा में पृथक से महिला अधिकारिता निदेशालय के गठन की घोषणा की गई। इस घोषणा की अनुपालना में महिला एवं बाल विकास विभाग का विभाजन कर पृथक से महिला अधिकारिता निदेशालय का गठन दिनांक 18 जून, 2007 को किया गया। इस विभाग के सृजन का मुख्य उद्देश्य महिलाओं के वैयक्तिक, सामाजिक, आर्थिक एवं आयोत्पादक गतिविधियों को बढ़ावा देना एवं उनका विकास करना था। महिला अधिकारिता निदेशालय के अंतर्गत वर्तमान में महिला विकास से संबन्धित समस्त योजनाएं, जो कि महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु राज्य/जिला/ब्लॉक स्तर पर संचालित है, का क्रियान्वयन एवं प्रबोधन किया जाता है। महिला अधिकारिता निदेशालय द्वारा विभिन्न विभागों की योजनाओं एव नीतियों में समन्वयन कर महिलाओं को वास्तविक लाभ पहुचाने का प्रयास किया जा रहा है। महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, परिवार कल्याण, रोजगार तथा प्रशिक्षण एवं उनका सामाजिक सशक्तिकरण महिला अधिकारिता के प्रमुख क्षेत्र हैं। इसके अन्तर्गत महिलाओं को विकास की प्रक्रिया में केवल लाभार्थी के रूप में नहीं देखा जाकर एक आवश्यक भागीदार के रूप में समझा जाता है ताकि एक समेकित मानवीय दृष्टिकोण

राजस्थान राजस्‍व मंडल

स्वाधीनता से पूर्व की राजस्व बंदोबस्त से संबंधित विभिन्न समस्‍याओं को हल करने के लिए तथा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए 1949 में राजस्‍थान में शामिल होने वाली रियासतों के उच्‍च बन्‍दोबस्‍त एवं भू-अभिलेख विभाग का पुनर्गठन एवं एकीकरण किया गया। उस समय इस विभाग का एक ही अधिकारी था जो कई रूपों में कार्य करता था, यथा- > बन्‍दोबस्‍त आयुक्‍त, > भू-अभिलेख निदेशक, > राजस्‍थान का पंजीयन महानिरीक्षक एवं > मुद्रा अधीक्षक आदि। एक वर्ष बाद, मार्च 1950 में भू-अभिलेख, पंजीयन एवं मुद्रा विभागों को बन्‍दोबस्‍त विभाग से पृथक कर दिया गया। भू-अभिलेख विभाग के निदेशक को ही पदेन मुद्रा एवं पंजीयन महानिरीक्षक बना दिया गया। भू-अभिलेख निदेशक की सहायता के लिए तीन सहायक भू अभिलेख निदेशक नियुक्‍त किए गए। इन सभी निकाय गठित किया गया। इसे राजस्‍व मंडल कहा गया। इसका कार्य राजस्‍व वादों का भय एवं पक्षपात रहित होकर उच्‍चतम स्‍तर पर निर्णय करना था। संयुक्‍त राजस्‍थान राज्‍य के निर्माण के पश्‍चात महामहिम राजप्रमुख ने 7 अप्रैल 1949 को एक अध्‍यादेश द्वारा राजस्‍थान के राजस्‍व मंडल { Board

राज्य के बजट की प्रमुख घोषणाएं

राजस्थान बजट 2011-12 >50 हजार शिक्षकों की भर्ती की घोषणा, जिनमें संस्कृत शिक्षा के शिक्षक भी। इसके लिए राइट टू एजूकेशन एक्ट तहत अध्यापक पात्रता परीक्षा { टी. ई. टी. } के लिए माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अधिकृत किया गया। > राज्य में उच्च माध्यमिक विद्यालयों के प्रथम ग्रेड शिक्षक व लैब टेक्नीशियनों के 25406 पदों की भर्ती होगी। > रहवास वाले गाँवों के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर छात्राओं के लिए 8 वीं कक्षा की शिक्षा प्राप्त करने पर साइकिल उपलब्ध कराने का प्रावधान। इसके लिए अंशदान राशि 300 से घटाकर 100 रुपए किया। 142 हजार छात्राएं लाभान्वित होंगी। > विद्यार्थी सुरक्षा बीमा योजना में सभी स्कूली विद्यार्थियों का 1 लाख रुपए तक का बीमा किया जाएगा। > जनजातीय क्षेत्र में एन. टी. टी. प्रशिक्षितों को नियुक्ति दी जाएगी। > अध्यापक ग्रेड तीन के उर्दू शिक्षकों के 500 पदों पर नियुक्ति देने की घोषणा। > आगामी वर्ष में प्रयोगशाला सहायकों के 200 पद भरे जाएंगे। > कोटा में आई. आई. आई. टी. खोले जाने की घोषणा। > इसके लिए निशुल्क भूमि व 45 करोड़ रुपए का अनुदान दिया जाएगा। इस

राजस्थान समसामयिक घटनाएँ

हाड़ौती में मिले शैल चित्र रावतभाटा-गांधी सागर मार्ग पर बने कचोटी के नाले की कंदराओं में लगभग 30 हजार साल पुराने शैलचित्र मिले हैं। हाल ही में मिले एक शैलचित्र में एक चट्टान पर बैल की आकृति उकेरी गई है, जिसके सामने एक व्यक्ति शिकार की मुद्रा में खड़ा है। विशेषज्ञों द्वारा इसकी आयु 30 हजार वर्ष बताई गई है जिसका पता पुराअन्वेषकों द्वारा "कार्बन डेंटिंग विधि" से गणना कर किया है। यह हाड़ौती क्षेत्र में एक नई खोज है। इससे पहले यहाँ लाल रंग के भालू का सुंदर व दुर्लभ शैलचित्र भी मिल चुका है। पुरा अन्वेषकों के अनुसार सामान्यतया शैलचित्रों में भालू की रॉक पेंटिंग कम मिलती है। प्राचीन काल में आदिमानव चट्टान या पत्थर पर चित्र उकेरता था इसे शैलचित्र कहा जाता है। कचोटी के नाले में हुई शैल चित्रों की खोज में मानव शिकार के अलावा वन्य जीवन की पूरी झलक नजर आती है। यहां इनके चित्रांकन में वन्य पशु, शिकार, शिकारी सहित अन्य चित्र भी हैं। यहां सबसे प्राचीन चित्र एक बैल का है जो उत्तर प्राचीन काल का 30 हजार वर्ष से भी ज्यादा पुराना है। इस चित्र का रंग हरा एवं काला मिश्रित है। यहाँ के शैल चित्रों

प्रदेश को पंचायती राज का डेढ़ करोड़ रुपए का प्रथम पुरस्कार

पंचायती राज व्यवस्था के सुदृढ़ीकरण तथा नवाचारों को अपनाने के लिए राजस्थान को डेढ़ करोड़ रुपयों का प्रथम पुरस्कार दिनांक 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायत दिवस के अवसर पर प्रदान किया गया। यह पुरस्कार नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित दूसरे राष्ट्रीय पंचायत दिवस समारोह में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन अध्यक्ष सोनिया गांधी से राज्य के ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री भरत सिंह ने ग्रहण किया। समारोह में अजमेर जिले की श्रीनगर पंचायत समिति की ग्राम पंचायत अराडका को भी "राष्ट्रीय गौरव ग्राम सभा पुरस्कार" से नवाजा गया। ग्राम पंचायत को दस लाख रुपए नकद पुरस्कार स्वरूप प्रदान किए गए। यह पुरस्कार ग्राम पंचायत अराड़का की सरपंच रईसा खातून होशियारा ने प्राप्त किया। उल्लेखनीय है कि पंचायती राज संस्थाओं के कामकाज का आंकलन करने वाली आईआईपी संस्था ने विस्तृत सर्वे कर वर्ष 2010-11 के दौरान राजस्थान में पंचायती राज के विकास के लिए किए कार्यों को उत्कृष्ट माना हैं। इसी तरह राष्ट्रीय गौरव ग्राम सभा पुरस्कार के लिए राजस्थान सहित देश के सात राज्यों गोवा, गुजरात, हरियाण

सूरज के रहस्यों को खोलती उदयपुर की सौर वैधशाला-

सौर अनुसंधान के क्षेत्र में विश्व प्रसिद्ध 'उदयपुर सौर वैधशाला { यू. एस. ओ. }' भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत अहमदाबाद में कार्यरत 'भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला {पी. आर. एल. }' की एक यूनिट के रूप में संचालित है। उदयपुर सौर वेधशाला उदयपुर की प्रसिद्ध फतहसागर झील के मध्य एक टापू पर स्थित है तथा इसका मुख्य भवन इस झील के उत्तर पश्चिम में रानी रोड़ पर स्थित है। उदयपुर के आकाश की स्थिति सूर्य के अवलोकन या प्रेक्षण के लिए उपयुक्त है, इसी कारण इसकी स्थापना यहाँ की गई थी। इसे पानी के अंदर स्थापित करने का कारण यह है कि सूर्य अध्ययन के उपयोग में लिए जाने वाले दूरदर्शी के चारों ओर पानी होने से सतह की परतें सूर्य की गर्मी से कम गर्म हो पाती है, फलस्वरूप हवा में परिवर्तन या डिस्टर्बेंस कम होते हैं और दूरदर्शी से सूर्य के चित्र अच्छी क्वालिटी के प्राप्त होते हैं। इस कारण सूर्य के प्रकाश मंडल या फोटोस्फीयर तथा वर्णमंडल या क्रोमोस्फीयर में होने वाली हलचल व सूर्य की सतह पर होने वाली घटनाओं का अधिक अच्छी तरह से अध्ययन कर समझा जा सकता है। इस वेधशाला में सूर्य में होने वाली घटनाओं

जोधपुर का 'धींगा गवर' का प्रसिद्ध बेंतमार मेला

राजस्थान के पश्चिमी भाग के जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर आदि क्षेत्रों में सुहागिनें अखंड सुहाग की कामना के लिए धींगा गवर की पूजा करती है। यह पूजा सामान्यत: गणगौर पूजा के बाद चैत्र शुक्ल तृतीय से वैसाख कृष्ण पक्ष की तृतीया तक होती है। धींगा गवर का पर्व पति-पत्नी के आपसी प्रेम का द्योतक भी माना जाता है। गवर को विधवाएं व सुहागिनें साथ-साथ पूजती हैं, लेकिन कुंआरी लडकियों के लिए गवर पूजा निषिद्ध है। गवर की सोलह दिवसीय पूजा शुरू करने से पूर्व महिलाएं मोहल्ले के किसी एक घर में दीवार पर गवर का चित्र बनाती है। ये स्त्रियाँ घरों की दीवारों पर कच्चे रंग से शिव, गजानन व बीचों बीच में घाघर सिर पर उठाए स्त्री के चित्र भी बनाती हैं। इन चित्रों में मूषक, सूर्य व चंद्रमा आदि के भी चित्र होते हैं। इन चित्रों के नीचे कूकड, माकडव तथा उसके चार बच्चों के चित्र भी बनाए जाते हैं या फिर उनके मिट्टी से बने पुतले रखे जाते हैं। इसके अलावा कई घरों में गवर की प्रतिमा भी बिठाई जाती है। इस पर्व की पूजा का समापन बैसाख शुक्ल पक्ष की तीज की रात्रि को गवर माता के रातीजगा के साथ होता है। गवर पूजा में सोलह की संख्या का अत्यंत

राजस्थान के पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग द्वारा संचालित म्यूजियम-

राज्य स्तरीय संग्रहालय { म्यूजियम }- 1. राजकीय केन्द्रीय संग्रहालय, अलबर्ट हॉल { अलबर्ट म्यूजियम }, जयपुर संभाग स्तरीय संग्रहालय- 1. राजकीय संग्रहालय, उदयपुर 2. राजकीय संग्रहालय, जोधपुर 3. राजकीय संग्रहालय, बीकानेर 4. राजकीय संग्रहालय, कोटा 5. राजकीय संग्रहालय, अजमेर 6. राजकीय संग्रहालय, हवामहल, जयपुर 7. राजकीय संग्रहालय, भरतपुर जिला स्तरीय संग्रहालय- 1. राजकीय संग्रहालय, अलवर 2. राजकीय संग्रहालय, डूंगरपुर 3. राजकीय संग्रहालय, चित्तौड़गढ़ 4. राजकीय संग्रहालय, जैसलमेर 5. राजकीय संग्रहालय, पाली 6. राजकीय संग्रहालय, झालावाड़ 7. राजकीय संग्रहालय, सीकर स्थानीय संग्रहालय- 1. राजकीय संग्रहालय, आहड़, उदयपुर 2. राजकीय संग्रहालय, मंडोर, जोधपुर 3. राजकीय संग्रहालय, माउंट आबू, सिरोही राज्य की आर्ट गैलरी- 1. आर्ट गैलरी, विराटनगर, जयपुर संग्रहालय जो प्रारंभ किए जाने हैं- 1. राजकीय संग्रहालय, केसरीसिंह बारहठ की हवेली, शाहपुरा, भीलवाड़ा 2. टाउन हॉल, पुराना विधानसभा भवन, जयपुर 3. राजकीय संग्रहालय, बारां

राजस्थान समसामयिक घटनाचक्र

संस्थाओं को रियायती दर पर भूमि आवंटन नीति मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत राज्य मंत्रिमंडल की दिनांक 13 अप्रैल को हुई बैठक में सार्वजनिक, चैरिटेबल एवं सामाजिक संस्थाओं को रियायती दर पर भूमि के आवंटन के संबंध में नीति को स्वीकृति प्रदान की गई। > शिक्षा एवं चिकित्सा के क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं को भूमि आवंटन के लिए विशेष रूप से इस नीति को बनाया गया है। > इस नीति के अनुसार किसी संस्था को निःशुल्क भूमि देने का निर्णय मंत्रिमंडल की बैठक में होगा। > भूमि के आवंटन में 70 प्रतिशत तक की छूट कैबिनेट सब कमेटी द्वारा दी जा सकेगी तथा 50 प्रतिशत तक की छूट संबंधित विभाग के मंत्री दे सकेंगे। > इस नीति में स्पष्ट किया गया है कि जिन प्रकरणों में भूमि का नि:शुल्क आवंटन किया गया है, उनमें भूमि का स्वामित्व सामान्य तौर पर संस्था को हस्तांतरित नहीं कर संबंधित स्थानीय निकाय में रहेगा। > जिन शिक्षण संस्थाओं को भूमि आवंटित की जाएगी, उसमें 25 प्रतिशत सीटें गरीबी की रेखा से नीचे के परिवारों के बच्चों के लिए आरक्षित रहेंगी। >भू आवंटन नीति के अनुसार आवंटित भूमि पर बनने वाले अस्पताल या

चतुर्थ राज्य वित्त आयोग एवं उसके कार्य

चतुर्थ राज्य वित्त आयोग का संगठन- अध्यक्ष - डॉ. बी. डी. कल्ला सदस्य- राजपाल सिंह शेखावत एवं जे. पी. चन्देलिया सदस्य सचिव- डॉ. पी. एल. अग्रवाल कार्यकाल- 31 दिसम्बर, 2011 तक प्रमुख कार्य- > सभी स्तरों पर पंचायतों की वित्तीय स्थिति का पुनरावलोकन। > राज्य के और सभी स्तरों की पंचायतों के मध्य, राज्य द्वारा उद्ग्रहणीय ऐसे करों, शुल्कों, पथ करों और फीसों के शुद्ध आगमों का वितरण, ऐसे आगमों के सभी स्तरों की पंचायतों के मध्य उनके अपने अपने अंशों का आवंटन के विषय सहित ऐसे करों, शुल्कों, पथ करों और फीसों का अवधारण जो सभी स्तरों पर की पंचायतों को समनुदेशित किए जा सकेंगे या उनके द्वारा विनियोजित किए जा सकेंगे। > राज्य की संचित निधि में से सभी स्तरों पर की पंचायतों को सहायता, अनुदान तथा पंचायतों की वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए आवश्यक उपाय सम्बन्धी विषयों पर सिफारिश करना। > नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति का भी पुनरावलोकन करना। > राज्य के और नगरपालिकाओं के मध्य, राज्य द्वारा उद्ग्रहणीय ऐसे करों, शुल्कों, पथ करों और फीसों के शुद्ध आगमों का वितरण। > ऐसे आगमों के स

राजस्थान समसामयिक सामान्य ज्ञान-

राजस्थान की सौर ऊर्जा नीति को स्वीकृत

राजस्थान देश का वह प्रथम राज्य है, जहाँ सौर ऊर्जा नीति लागू की गई है। राज्य में सौर ऊर्जा के उत्पादन एवं उपयोग को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में दिनांक 13 अप्रैल को इस सौर ऊर्जा नीति को स्वीकृति प्रदान की गई। >इस नीति से राज्य के ऊर्जा के क्षेत्र में बाहरी कंपनियों के लिए निवेश के रास्ते खुलेंगे। >बैठक के बाद मुख्यमंत्री गहलोत ने बताया कि सौर ऊर्जा नीति में पारदर्शिता को प्राथमिकता दी गई है। > केंद्र सरकार ने भी जवाहर लाल नेहरू सौर ऊर्जा मिशन के प्रथम चरण के लक्ष्य 825 मेगावाट में अकेले राजस्थान में 589 मेगावाट के संयंत्र लगाने का प्रावधान किया गया है। > इसके द्वितीय चरण में 300 मेगावाट के सौर ऊर्जा संयंत्र को मंजूरी मिल सकती है। >राज्य में 700 मेगावाट के प्लांट पहले से ही प्रक्रियाधीन है, जिसमें एक-एक मेगावाट के लघु संयंत्र भी सम्मिलित हैं। >देश का 5 मेगावाट का प्रथम संयंत्र नागौर जिले के खींवसर में प्रारंभ हुआ। > देश में सौर ऊर्जा उत्पादन की सर्वाधिक संभावना राजस्थान में है। >इस नीति

राजस्थान सामान्य ज्ञान-
मारवाड़ का घुड़ला त्यौहार


मारवाड़ के जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर आदि जिलों में चैत्र कृष्ण सप्तमी अर्थात शीतला सप्तमी से लेकर चैत्र शुक्ला तृतीया तक घुड़ला त्यौहार मनाया जाता है। इस त्यौहार के प्रति बालिकाओं में ज्यादा उत्साह रहता है। घुड़ला एक छिद्र किया हुआ मिट्टी का घड़ा होता है जिसमें दीपक जला कर रखा होता है। इसके तहत लड़कियाँ 10-15 के झुंड में चलती है। इसके लिए वे सबसे पहले कुम्हार के यहां जाकर घुड़ला और चिड़कली खरीद कर लाती हैं, फिर इसमें कील से छोटे-छोटे छेद करती हैं और इसमें दीपक जला कर रखती है। इस त्यौहार में गाँव या शहर की लड़कियाँ शाम के समय एकत्रित होकर सिर पर घुड़ला लेकर समूह में मोहल्ले में घूमती है। घुड़ले को मोहल्लें में घुमाने के बाद बालिकाएँ एवं महिलाएँ अपने परिचितों एवं रिश्तेदारों के यहाँ घुड़ला लेकर जाती है। घुड़ला लिए बालिकाएँ घुड़ला व गवर के मंगल लोकगीत गाती हुई सुख व समृद्धि की कामना करती है। जिस घर पर भी वे जाती है, उस घर की महिलाएँ घुड़ला लेकर आई बालिकाओं का अतिथि की तरह स्वागत सत्कार करती हैं। साथ ही माटी के घुड़ले के अंदर जल रहे दीपक के दर्शन करके सभी कष्टों को दूर करने तथा घर में सुख शांति

राजस्थान समसामयिक सामान्य ज्ञान

राजस्थान में वाइफरेकशन डबल किसिंग टेक्नोलॉजी से एंजियोप्लास्टी फ्रांस की कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. एम. सी. मोरिस ने जयपुर के चिकित्सकों की टीम के साथ राजस्थान के चिकित्सा इतिहास में प्रथम बार वाइफरेकशन डबल किसिंग टेक्नोलॉजी से एंजियोप्लास्टी की। कॉम्प्लेक्स कॉरोनरी एंजियोप्लास्टी पर दिनांक 9 अप्रैल से शुरू हुई चौथी कांफ्रेंस में यह एंजियोप्लास्टी की गई। इस तकनीक में धमनी और इसकी ब्रांच में एक साथ बैलून डाले गए। इसकी सफलता दर काफी अच्छी होने से अब हृदय रोगियों का उपचार इस नई तकनीक से किया जा सकेगा। जयपुर हार्ट इंस्टीट्यूट में की गई इस सर्जरी का लाइव टेलिकास्ट एस. एम. एस. अस्पताल के कन्वेशन सेंटर में किया गया। अभी हाल में जिस टेक्नोलॉजी से एंजियोप्लास्टी हो रही है उसकी तुलना में यह पांच से दस प्रतिशत महंगी है लेकिन इसमें अभी तक ज्यादा सफलता मिल रही है। इसके अलावा इस कांफ्रेंस में हृदय आघात को लेकर सिम्पोजियम भी हुई। चिकित्सकों के अनुसार विदेशों में जीवन शैली और भोजन में बदलाव करते हुए व्यायाम करने पर जोर देने के कारण विदेशों में हृदय आघात में कमी आ रही है। वहीं भारत में इनमें तेजी से वृद्धि

राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड

राजस्थान में शक्ति विकास सन् 1949 में प्रारंभ हुआ। उस समय विद्युत शक्ति केवल बहुत कम शहरों तक ही सीमित थी तथा विद्युत को लक्जरी वस्तु माना जाता था। उस समय कुल 42 से अधिक शहर और गाँव विद्युतीकृत नहीं थे तथा स्थापित उत्पादन क्षमता केवल 13.27 MW थी। राजस्थान राज्य विद्युत बोर्ड का गठन 1 जुलाई 1957 को होने के पश्चात राज्य में विद्युत उत्पादन के प्रयास तेज हुए। राज्य सरकार द्वारा किए गए पावर रिफॉर्म्स के तहत राजस्थान राज्य विद्युत बोर्ड RESB को जुलाई 2000 में निम्नलिखित पाँच कंपनियों में बाँट दिया गया- 1. राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RVUN) 2. राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड (RVPN) 3. अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (AVVNL) 4. जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (JVVNL) 5. जोधपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (JDVVNL) राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड- इस निगम को निम्नलिखित कार्य सौंपा गया- >राज्य में शक्ति उत्पादन संयंत्रों का विकास, उनका संचालन और रखरखाव करना। राज्य सरकार द्वारा राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की स्थापना 1

आर. एस. एम. एम. एल. - राजस्थान स्टेट माइंस एंड मिनरल्स लिमिटेड

स्थापना- राजस्थान स्टेट माइंस एंड मिनरल्स लिमिटेड (RSMML) राजस्थान सरकार के अग्रणी व विकासशील उपक्रमों में से एक उपक्रम है। इसका मुख्यालय उदयपुर में है। इसकी स्थापना उदयपुर जिले के झामर कोटडा क्षेत्र से रॉक फॉस्फेट के खनन के लिए की गई थी। झामर कोटडा खान का विस्तार लगभग 26 किमी तक है जिसमें करीब 740 लाख टन रॉक फॉस्फेट होने का अनुमान है। उद्देश्य-  इसकी स्थापना का प्रारंभिक उद्देश्य उदयपुर जिले के झामर कोटडा क्षेत्र से रॉक फॉस्फेट के खनन के लिए था किन्तु प्रमुख उद्देश्य न्यून लागत वाले तकनीकी नवाचारों का विकास करना है। इसके साथ ही खनिज आधारित प्रायोजनाओं को विकसित करना भी इसका एक उद्देश्य है। इसके अलावा ''लिग्नाइट आधारित ताप विद्युत् संयंत्रों'' को ईंधन के रूप में लिग्नाइट उपलब्ध कराना और जैसलमेर में पवन ऊर्जा फार्म्स की स्थापना करना है।  RSMML द्वारा खनन कार्य- RSMML उपक्रम ने अधात्विक खनिजों के उत्पादन एवं विपणन में देश में सम्मानजनक स्थान अर्जित किया है। RSMML बहुखनिज उत्खनन प्रतिष्ठान है जो विभिन्न स्थानों पर रॉक फॉस्फेट, लिग्नाइट कोयला, SMS ग्रेड लाईम

गोविन्द गिरि की संप सभा और 'राजस्थान का जलियांवाला बाग' मानगढ़ नरसंहार

गोविन्द गिरि का भगत आंदोलन- राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा, दक्षिणी मेवाड़, सिरोही तथा गुजरात व मालवा के मध्य पर्वतीय अंचलों की आबादी प्रमुखतया भीलों और मीणा आदिवासियों की है। इन आदिवासियों में चेतना जागृत करने एवं उन्हें संगठित करने का बीड़ा डूंगरपुर से 23 मील दूर बांसिया गाँव में 20 दिसम्बर 1858 को जन्मे बणजारा जाति के गोविंद गुरु ने उठाया था। बताया जाता है कि स्वामी दयानन्द सरस्वती के उदयपुर प्रवास के दौरान गोविन्द गुरू उनके सानिध्य में रहे थे तथा उनसे प्रेरित होकर गोविन्द गुरू ने अपना सम्पूर्ण जीवन सामाजिक कुरीतियों, दमन व शोषण से जूझ रहे जनजातीय समाज को उबारने में लगाया था। गोविन्द गुरु ने आदिवासियों को संगठित करने के लिए 1883 में संप-सभा की स्थापना की जिसका प्रथम अधिवेशन 1903 में हुआ । गोविन्द गुरु के अनुयायियों को भगत कहा जाने लगा , इसीलिए इसे भगत आन्दोलन कहते हैं। संप का अर्थ है एकजुटता, प्रेम और भाईचारा। संप सभा का मुख्य उद्देश्य समाज सुधार था। उनकी शिक्षाएं थी - रोजाना स्नानादि करो, यज्ञ एवं हवन करो, शराब मत पीओ, मांस मत खाओ, चोरी लूटपाट मत करो, खेती

समसामयिक घटनाचक्र - Current Affairs Apri - 2011

राजस्थान सरकार ने बनाई IPL -4 हेतु समन्वय समिति इंडियन प्रीमियर लीग { आई.पी. एल. } के चौथे संस्करण के तहत राजस्थान के सवाई मानसिंह स्टेडियम में होने वाले सात मैचों की व्यवस्था विशेषकर सुरक्षा व्यवस्था की निगरानी करने के लिए राज्य सरकार ने एक समन्वय समिति का गठन किया है जिसके अध्यक्ष राज्य सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) पी. के. देब होंगे। राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन (आरसीए) के अधिकारी एवं वरिष्ठ पुलिस अधिकारी इस समिति के सदस्य होंगे और मैचों के दौरान प्रबंधन से सम्बंधित कोई भी निर्णय सभी के साथ विचार विमर्श के बाद ही लिया जाएगा। गौरतलब है कि 8 अप्रैल से शुरू हुए आईपीएल के कुल 7 मैच जयपुर में 12 अप्रैल से 11 मई तक खेले जाएंगे। प्रतापगढ़ वनमंडल को मिलेगा अमृतादेवी विश्नोई पुरस्कार राज्य सरकार ने वन एवं वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में सराहनीय कामों के लिए दिए जाने वाले अमृतादेवी विश्नोई स्मृति पुरस्कारों समेत अन्य वानिकी पुरस्कारों की घोषणा कर दी है। इसके तहत 50 हजार रूपए की राशि का अमृता देवी विश्नोई स्मृति पुरस्कार प्रतापगढ़ वनमंडल की वन सुरक्षा एवं प्रबंध समिति बलिचा ब

राजस्थान का खजुराहो है जगत का अंबिका मंदिर

राजस्थान के खजुराहो के नाम से विख्यात स्थापत्य कला व शिल्प कला अनुपम उदाहरण जगत का अंबिका मंदिर उदयपुर से करीब 58 किलोमीटर दूर अरावली की पहाडियों के बीच 'जगत गाँव' में स्थित है। मध्यकालीन गौरवपूर्ण मंदिरों की श्रृंखला में सुनियोजित ढंग से बनाया गया जगत का यह अंबिका मंदिर मेवाड़ की प्राचीन उत्कृष्ट शिल्पकला का नमूना है। इतिहासकारों का मानना है कि यह स्थान 5 वीं व 6 ठीं शताब्दी में शिव शक्ति सम्प्रदाय का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा था। इसका निर्माण खजुराहो के लक्ष्मण मंदिर से पूर्व लगभग 960 ई. के आस पास माना जाता है। मंदिर के स्तम्भों के लेखों से पता चलता है कि 11वीं सदी में मेवाड़ के शासक अल्लट ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। मंदिर को पुरातत्व विभाग के अधीन संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। इस मंदिर के गर्भगृह में प्रधान पीठिका पर मातेश्वरी अम्बिका की प्रतिमा स्थापित है। राजस्थान के मंदिरों की मणिमाला का चमकता मोती यह अंबिका मंदिर आकर्षक अद्वितीय स्थापत्य व मूर्तिशिल्प के कलाकोष को समेटे हुए है। प्रणयभाव में युगल, अंगडाई लेती व दर्पण निहारती नायिका, क्रीड़ारत शि

उदयपुर का मेवाड़ महोत्सव

पर्यटन विभाग के तत्वावधान में लोकपर्व गणगौर से जुड़े तीन दिवसीय मेवाड़ महोत्सव का आयोजन उदयपुर में किया जाता है। इस वर्ष यह आयोजन दिनांक 6 से 8 अप्रैल तक किया गया। इसके तहत उदयपुर के पुराने शहर व गणगौर घाट पर मेला भरा गया। 6 अप्रैल को गणगौर व ईसरजी की भव्य सवारियां निकाली गई तथा रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुतियाँ हुई। इसमें महिलाएं गणगौर संबंधी विभिन्न लोकगीत गाते हुए तथा सभी लोग जयकारे लगाते चल रहे थे। चैत्र नवरात्रि की तीज के अवसर पर अंचल में गणगौर—ईसरजी की पूजा विधि विधान से की गई। व्रतार्थी महिलाओं ने घर—घर गणगौर व ईसरजी की प्रतिमाओं को सजाया और उनको जल आचमन करवाया। गणगौर व्रत की कथाओं को सुनकर आरती की। पहले दिन की गणगौर को गुलाबी गणगौर माना जाता है। इस दिन महिलाओं ने गणगौर की प्रतिमाओं को गुलाबी वस्त्र धारण करवाए तथा नख—शिख आभूषण धारण करवाए और उन्हें लाड़ लड़ाते हुए उनके सामने घूमर नृत्य किया। शहर के विभिन्न समाजों की सजी धजी गणगौरों की सवारियां गणगौर घाट पर पहुंची जहाँ पर्यटन विभाग की ओर से सर्वश्रेष्ठ गणगौर का खिताब लगातार तीसरी बार राजमाली समाज को तथा द्वितीय स्थ

शिल्प सौंदर्य अनुपम है अर्थूना के मंदिरों में - sculptural Beauty is incomparable in the temples of Arthuna

राजस्थान के वागड़ क्षेत्र के बाँसवाड़ा नगर से लगभग 45 किमी दक्षिण पश्चिम में अर्थूना नामक स्थान भारतीय इतिहास के 11 वीं एवं 12 वीं सदी में निर्मित मंदिर समूह और मूर्तियों के लिए विख्यात है। वागड़ क्षेत्र में 8 वीं शताब्दी में मालवा के राजा उपेन्द्र ने परमार वंश की नींव डाली थी। बाद में इसी परमार वंश की उपशाखाएं राजस्थान में चंद्रावती, भीनमाल, किराडू एवं वागड़ में फैली। मध्यप्रदेश के परमार वंश के राजा पुण्डरीक ने प्राचीन अमरावती नगरी या उत्थुनक (अर्थूना) की स्थापना की थी। अर्थूना क्षेत्र को सन् 1954 में पुरातत्व विभाग के संरक्षण में लेने के पश्चात इस पूरे क्षेत्र में हुई खुदाई में बड़ी संख्या में मूर्तियां और 30 से अधिक मंदिरों का अस्तित्व प्रकाश में आया है। ये मंदिर विभिन्न श्रेणी के हैं। इतिहासकारों ने यहाँ के शिल्प को सात भागों में बाँटा है- 1. शैव संप्रदाय से संबंधित शिल्प- शिवलिंग, शिवबाण, लकुलीश या लकूटीश की दण्डधारी मूर्तियाँ, शिव की अंधकासुर वध मूर्ति, भैरव मूर्ति, शिव के 12 वें अवतार के रूप में हनुमान की मूर्ति, उमा महेश अभिप्राय आदि। 2. वैष्णव संप्रदाय की

आदिवासियों की तीर्थ स्थली 'घोटिया आंबा' का प्रसिद्ध मेला

 आदिवासियों की तीर्थ स्थली 'घोटिया आंबा' का प्रसिद्ध मेला पौराणिक महत्त्व की आदिवासियों की तीर्थ स्थली 'घोटिया आंबा' बाँसवाड़ा से करीब 45 किमी दूर स्थित है। यह जिले की बागीदौरा पंचायत समिति के बारीगामा ग्राम पंचायत क्षेत्र अंतर्गत आता है। यह तीर्थ पाण्डवकालीन माना जाता है। कहा जाता है कि यहाँ पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास के दिन गुजारे थे। यहाँ स्थित कुंड को पाण्डव कुंड कहा जाता है। घोटिया आंबा में प्रतिवर्ष चैत्र माह में एक विशाल मेला लगता है जिसमें भारी संख्या में आदिवासी भाग लेते हैं। वेणेश्वर के पश्चात यह राज्य का आदिवासियों की दूसरा बड़ा मेला है। इस वर्ष घोटिया आंबा मेला 1 अप्रैल से प्रारंभ होकर 5 अप्रैल तक चला। दिनांक 3 अप्रैल को अमावस्या के अवसर पर मुख्य मेला भरा। इस मुख्य मेले में मेलार्थियों का भारी सैलाब उमड़ा और यहाँ घोटेश्वर शिवालय तथा मुख्यधाम पर स्थित अन्य देवालयों व पौराणिक पूजा-स्थलों पर श्रृद्धालुओं ने पूजा अर्चना की। वनवासियों के इस धाम के प्रमुख मंदिर घोटेश्वर शिवालय के गर्भ गृह में पाटल वर्णी शिवलिंग के अलावा पांडवों के साथ देवी कुंती व भगवान कृष

Pichwayi Art of Nathdwara | नाथद्वारा की पिछवाई चित्रकला

Pichwayi Art of Nathdwara | नाथद्वारा की पिछवाई चित्रकला राजस्थान में उदयपुर से करीब 50 किमी दूर राजसमंद जिले में स्थित छोटा - सा धार्मिक नगर 'नाथद्वारा' पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय की प्रमुख पीठ है। यहाँ की प्रत्येक सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधि पर पुष्टिमार्ग का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। नाथद्वारा शैली की चित्रकला तो पूर्णरूपेण पुष्टिमार्ग से ओतप्रोत है। नाथद्वारा की चित्र शैली का उद्भव भी श्रीनाथजी के नाथद्वारा में आगमन के साथ ही माना जाता है। नाथद्वारा चित्रशैली का सबसे महत्वपूर्ण अंग है - पिछवाई चित्रकला। पिछवाई शब्द का अर्थ है पीछेवाली। पिछवाई चित्र आकार में बड़े होते हैं तथा इन्हें कपड़े पर बनाया जाता है। नाथद्वारा के श्रीनाथजी मंदिर तथा अन्य मंदिरों में मुख्य मूर्ति के पीछे दीवार पर लगाने के लिये इन वृहद आकार के चित्रों को काम में लिया जाता है। ये चित्र मंदिर की भव्यता बढ़ाने के साथ - साथ भक्तों को श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र की जानकारी भी देते हैं। चटक रंगों में डूबे श्रीकृष्ण की लीलाओं के दर्शन कराती ये पिछवाईयां आगंतुकों को अपनी ओर सहसा आकर्षित करती है। श्री