Skip to main content

राजस्थान समसामयिक घटनाचक्र
राष्ट्रीय आजीविका मिशन की शुरुआत हुई बाँसवाड़ा से

यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिनांक 3 जून को बांसवाड़ा से राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की शुभारंभ किया तथा डूंगरपुर में 176.4 किमी. लंबी डूंगरपुर-बांसवाड़ा-रतलाम रेल लाइन का शिलान्यास किया।
बांसवाड़ा में योजना का शुभारंभ करते हुए उन्होंने कहा कि आज हमारा देश तेजी से प्रगति कर रहा है। ऐसी स्थिति में आदिवासी समाज के विकास के साथ-साथ उनकी परंपराओं की रक्षा के लिए भी हमें उपाय करने की जरूरत है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन देश के सभी भागों में महिलाओं के और अधिक सशक्तीकरण की दिशा में एक नई महत्वपूर्ण पहल है। देश में इस समय 10 से 15 सदस्यों वाले लगभग 50 लाख स्वयं सहायता समूह हैं जिनसे प्राप्त रोजगार के अवसरों के कारण महिलाओं के आत्मविश्वास में वृद्धि हुई है। इस योजना के प्रारंभ के बाद गरीब व कमजोर वर्ग की लाखों महिलाएँ संगठित होकर अपने परिवारों के जीवन में परिवर्तन और सुधार के लिए प्रयास करेंगी।
इस अवसर पर श्रीमती सोनिया गांधी ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के डॉक्यूमेंट का लोकार्पण भी किया। कार्यक्रम में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री डॉ. सीपी जोशी, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री विलासराव देशमुख व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन आदित्य, केंद्रीय मंत्री मुकुल वासनिक, नमोनारायण मीणा, सांसद व कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव ताराचंद भगोरा, तकनीकी शिक्षा मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीया, विधायक अर्जुन बामनिया आदि उपस्थित थे। साथ ही मुख्यमंत्री आवास योजना के लिए हुडको से स्वीकृत ऋण की पहली किश्त के रूप में 14 करोड़ रुपए का चैक सोनिया गांधी के माध्यम से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सौंपा गया। डूंगरपुर में रेल लाइन का शिलान्यास करने पहुंची सोनिया गांधी ने पूजन के बाद ईंट लगाकर निर्माण कार्य का श्रीगणोश किया। इसके बाद शिलान्यास पट्टिका का अनावरण किया। यह रेललाइन 176.4 किमी. लंबी है तथा इस पर कुल 2283 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इस परियोजना का 5 वर्ष में पूरा करने का लक्ष्य है।

क्या है राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन?
भारत सरकार द्वारा स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY) नामक कार्यक्रम को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के रूप में पुनर्गठित किया गया है, जिसके निम्न उद्देश्य है-
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के प्रमुख उद्देश्य-

> गरीब परिवारों के जीवन स्तर में सुधार लाना तथा उनके उत्थान के लिए लाभदायक स्वरोजगार एवं कुशल आजीविका के अवसर उपलब्ध कराकर उनकी स्थाई एवं सशक्त आय अर्जन का आधार प्रदान करना।

> दक्षता निर्माण मंच संवर्धन तथा स्वरोजगार हेतु संस्थाओं का पोषण करना।

>प्रत्येक बीपीएल परिवार को स्वयं सहायता समूह के दायरे में लाना।

> गरीब व्यक्ति को सामाजिक एवं आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए सभी क्षेत्रों में उसकी सार्थक सहभागिता तय करना तथा संस्थाओं के निर्माण, क्रियान्वयन एवं नियंत्रण में गरीब की अहम् भूमिका सुनिश्चित करना।

विशेषताएँ-

> राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन केरल, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, बिहार एवं मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर मिली सफलता पर आधारित है जहां सामाजिक जागरूकता एवं स्वयंसेवी संगठनों व संस्थानों के माध्यम से गरीबी में उल्लेखनीय कमी आई है तथा गरीबों का उत्थान हुआ है।

> यह योजना निर्धनों द्वारा स्वयं सहायता समूह गठित कर संचालित की जाएगी।

> इसमें स्वयं सहायता समूह की एक महिला सदस्य को "सामुदायिक संदर्भ व्यक्ति" बनाया जाएगा, जिसकी सहायता इसके संचालन में ली जाएगी। ये महिलाएं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की भावना को एक गाँव से दूसरे गाँव तथा एक जिले से दूसरे जिले तक पहुंचाएगी ताकि इसे आम जनता का मिशन बनाया जा सके।

> इसके तहत ब्लॉक, जिला एवं राज्य स्तर पर समूहों का संगठनात्मक ढांचा तैयार किया जाएगा जो आपस में एक दूसरे से जुड़े होंगे एवं प्रत्येक समूह का प्रतिनिधित्व इन संगठनात्मक ढांचे में होगा।

क्षमता निर्माण (Capacity Building)-

योजना के तहत क्षमता निर्माण एवं दक्षता प्रशिक्षण के लिए प्रति लाभार्थी 7,500 रुपए की आर्थिक सहायता दी जाएगी जबकि वर्तमान प्रावधान 5000 रुपए का है।

निधि का प्रावधान-

> स्वयं सहायता समूह निर्माण हेतु- प्रति समूह 10,000 रुपए।

> रिवोल्विंग फंड हेतु- प्रति स्वयं सहायता समूह न्यूनतम 10,000 रुपए एवं अधिकतम 15,000 रुपए।

> प्रति लाभार्थी पूंजीगत अनुदान- सामान्य वर्ग के लाभार्थी को 15,000 रुपए तथा अनुसूचित जाति जनजाति के लाभार्थी को 20,000 रुपए जबकि प्रति स्वयं सहायता समूह अधिकतम 2.5 लाख रुपए।

Comments

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली