महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा प्रत्येक ग्राम पंचायत पर एक महिला साथिन के रूप में नियुक्त होती है जिसका चयन उस पंचायत क्षेत्र की 'महिला ग्राम सभा' द्वारा किया जाता है।
साथिन के मुख्य कार्य–
1. ग्राम पंचायत स्तर पर साथिन वह कड़ी है, जो प्रशासन में गाँव की आधी आबादी अर्थात महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती है।
2. साथिन की भूमिका गाँव की महिलाओं को एक दोस्त, परामर्शदात्री और पथ–प्रदर्शक के रूप में सम्बल देना तथा उनकी समस्याओं को दूर करने का प्रयास करना।
3. ग्रामीण महिलाओं को
सरकार की विकास योजनाओं में महिलाओं को लाभ पहुंचाने के प्रावधानों की जानकारी देने के लिए संबंधित विकास विभाग के अधिकारियों/ कार्यकर्ताओं को जाजम पर बुलाकर गाँव की सभी महिलाओं से चर्चा करवाना।
4. महिलाओं में विकास योजनाओं का लाभ उठाने की ललक और मांग पैदा करना।
5. गाँव में बालिकाओं की स्थिति सुधरे, उसे भी पूरा प्यार, अधिकार और सम्मान मिले, समाज में ऐसा माहौल तैयार करने का सतत् प्रयास करना।
6. महिलाओं पर बढ़ती हिंसा, अत्याचार, अपराध, शोषण, उत्पीड़न के मामलों में गाँव की महिलाओं को संगठित करना एवं आवश्यकता होने पर पीड़ित महिलाओं को कानूनी सहायता उपलब्ध करवाना।
7. बच्चियों, किशोर बालिकाओं और महिलाओं के रोगों की रोकथाम के लिए नर्स, दाई–माँ और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की मदद से स्वास्थ्य–चिकित्सा व चेतना शिविरों का आयोजन करवाना।
8. नवयुवतियों व किशोर बालिकाओं को माहवारी संबंधी समस्याओं, कुंठाओं, डरों एवं शंकाओं से उबारने के लिए पूरी व सही जानकारी और यौनिक स्वच्छता की सलाह दिलवाना एवं अनीमिया (रक्त में लोह तत्व की कमी) की जाँच व उपचार करवाना।
9. दाम्पत्य जीवन में सुरक्षित सम्भोग, सुरक्षित मातृत्व व बच्चे की सम्भाल तथा परिवार को छोटा व नियोजित करने संबंधी व्यावहारिक अनौपचारिक जनसंख्या शिक्षा आंगनबाड़ी या महिला विकास केन्द्र पर सुलभ करवाने की व्यवस्था करवाना।
10. बच्चों का विवाह सही उम्र में हो, विवाह के समय लड़की की उम्र कम से कम 18 वर्ष की और लड़के की उम्र कम से कम 21 वर्ष की हो, शादी जल्दी हो चुकी हो तो गौना देर से करें इत्यादि बातों के लिए समाज की सकारात्मक सोच बनाना।
11. बालिकाओं की शिक्षा व अन्य अधिकारों के मामले में समानता स्थापित करने हेतु सामाजिक स्तर पर प्रयास करना।
12. महिलाओं के सामाजिक व आर्थिक उत्थान के लिए कार्य करना।
13. महिला समूह की एक राय बनाकर नारी शोषण और अत्याचार के विरोध में पूरे जनमानस को बदलने की मुहिम छेड़ना।
14. महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कुछ जरूरी कदम हैं – साक्षरता, कानूनी ज्ञान, व्यावहारिक ज्ञान और कौशल बढ़ाने के प्रशिक्षण, सही सूचना, पूरी जानकारी और ज्ञान ही शक्ति के संचार स्त्रोत हैं।
15. समाज में महिलाओं और लड़कियों का दमन करने वाले रीति–रिवाजों को बदलने के लिए गांव के बुजुर्गों, परिवार–बिरादरी के पुरूषों, जाति पंचो के साथ बैठकर समझाईश हेतु जाजम बैठकें रखना।
16. स्वयं सहायता समूहों का गठन एवं सुदृढ़ीकरण करके महिलाओं का आर्थिक स्तर ऊंचा उठाना।
17. जाजम में न सुलझाये जा रहे प्रकरणों को जिला स्तर पर महिला सहायता समिति तक पहुंचाना।
18. बाल विवाह, घरेलू हिंसा, कामकाजी महिलाओं का कार्यस्थल पर उत्पीड़न एवं क्रेच की व्यवस्था आदि के बारे में जानकारी देकर जागरूक करना एवं महिलाओं के साथ मिलकर उनको न्याय दिलवाने में मदद करना।
19. प्रतिमाह अपने कार्यक्षेत्र की प्रगति रिपोर्ट एवं जाजम की रिपोर्ट प्रचेता को प्रस्तुत करना।
20. किशोरी शक्ति योजना में प्रेरक का काम करना।
21. लिंग भेद/ भ्रूण हत्या एवं डायन प्रथा आदि कुप्रथाओं के खिलाफ प्रचार–प्रसार करना।
22. स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण के संदेशों को महिलाओं में प्रसारित करना।
23. महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा/ उत्पीड़न/ शोषण से संबंधित मामलों में परामर्शदाता के रूप में कार्य करना।
साथिन के मुख्य कार्य–
1. ग्राम पंचायत स्तर पर साथिन वह कड़ी है, जो प्रशासन में गाँव की आधी आबादी अर्थात महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती है।
2. साथिन की भूमिका गाँव की महिलाओं को एक दोस्त, परामर्शदात्री और पथ–प्रदर्शक के रूप में सम्बल देना तथा उनकी समस्याओं को दूर करने का प्रयास करना।
3. ग्रामीण महिलाओं को
सरकार की विकास योजनाओं में महिलाओं को लाभ पहुंचाने के प्रावधानों की जानकारी देने के लिए संबंधित विकास विभाग के अधिकारियों/ कार्यकर्ताओं को जाजम पर बुलाकर गाँव की सभी महिलाओं से चर्चा करवाना।
4. महिलाओं में विकास योजनाओं का लाभ उठाने की ललक और मांग पैदा करना।
5. गाँव में बालिकाओं की स्थिति सुधरे, उसे भी पूरा प्यार, अधिकार और सम्मान मिले, समाज में ऐसा माहौल तैयार करने का सतत् प्रयास करना।
6. महिलाओं पर बढ़ती हिंसा, अत्याचार, अपराध, शोषण, उत्पीड़न के मामलों में गाँव की महिलाओं को संगठित करना एवं आवश्यकता होने पर पीड़ित महिलाओं को कानूनी सहायता उपलब्ध करवाना।
7. बच्चियों, किशोर बालिकाओं और महिलाओं के रोगों की रोकथाम के लिए नर्स, दाई–माँ और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की मदद से स्वास्थ्य–चिकित्सा व चेतना शिविरों का आयोजन करवाना।
8. नवयुवतियों व किशोर बालिकाओं को माहवारी संबंधी समस्याओं, कुंठाओं, डरों एवं शंकाओं से उबारने के लिए पूरी व सही जानकारी और यौनिक स्वच्छता की सलाह दिलवाना एवं अनीमिया (रक्त में लोह तत्व की कमी) की जाँच व उपचार करवाना।
9. दाम्पत्य जीवन में सुरक्षित सम्भोग, सुरक्षित मातृत्व व बच्चे की सम्भाल तथा परिवार को छोटा व नियोजित करने संबंधी व्यावहारिक अनौपचारिक जनसंख्या शिक्षा आंगनबाड़ी या महिला विकास केन्द्र पर सुलभ करवाने की व्यवस्था करवाना।
10. बच्चों का विवाह सही उम्र में हो, विवाह के समय लड़की की उम्र कम से कम 18 वर्ष की और लड़के की उम्र कम से कम 21 वर्ष की हो, शादी जल्दी हो चुकी हो तो गौना देर से करें इत्यादि बातों के लिए समाज की सकारात्मक सोच बनाना।
11. बालिकाओं की शिक्षा व अन्य अधिकारों के मामले में समानता स्थापित करने हेतु सामाजिक स्तर पर प्रयास करना।
12. महिलाओं के सामाजिक व आर्थिक उत्थान के लिए कार्य करना।
13. महिला समूह की एक राय बनाकर नारी शोषण और अत्याचार के विरोध में पूरे जनमानस को बदलने की मुहिम छेड़ना।
14. महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कुछ जरूरी कदम हैं – साक्षरता, कानूनी ज्ञान, व्यावहारिक ज्ञान और कौशल बढ़ाने के प्रशिक्षण, सही सूचना, पूरी जानकारी और ज्ञान ही शक्ति के संचार स्त्रोत हैं।
15. समाज में महिलाओं और लड़कियों का दमन करने वाले रीति–रिवाजों को बदलने के लिए गांव के बुजुर्गों, परिवार–बिरादरी के पुरूषों, जाति पंचो के साथ बैठकर समझाईश हेतु जाजम बैठकें रखना।
16. स्वयं सहायता समूहों का गठन एवं सुदृढ़ीकरण करके महिलाओं का आर्थिक स्तर ऊंचा उठाना।
17. जाजम में न सुलझाये जा रहे प्रकरणों को जिला स्तर पर महिला सहायता समिति तक पहुंचाना।
18. बाल विवाह, घरेलू हिंसा, कामकाजी महिलाओं का कार्यस्थल पर उत्पीड़न एवं क्रेच की व्यवस्था आदि के बारे में जानकारी देकर जागरूक करना एवं महिलाओं के साथ मिलकर उनको न्याय दिलवाने में मदद करना।
19. प्रतिमाह अपने कार्यक्षेत्र की प्रगति रिपोर्ट एवं जाजम की रिपोर्ट प्रचेता को प्रस्तुत करना।
20. किशोरी शक्ति योजना में प्रेरक का काम करना।
21. लिंग भेद/ भ्रूण हत्या एवं डायन प्रथा आदि कुप्रथाओं के खिलाफ प्रचार–प्रसार करना।
22. स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण के संदेशों को महिलाओं में प्रसारित करना।
23. महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा/ उत्पीड़न/ शोषण से संबंधित मामलों में परामर्शदाता के रूप में कार्य करना।
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