Skip to main content

राजस्थान के मेले एवं महोत्सव -
पर्यटन विभाग के अनुसार



(i)
ऊँट महोत्सव , बीकानेर, 18 - 19 जनवरी, 2011 पोष शुक्ल चतुर्दशी व पूर्णिमा

(ii)
रामदेवजी का पशु मेला, नागौर,
10 - 13 फरवरी, 2011 माघ शुक्ल चतुर्दशी से फाल्गुन कृष्ण तृतीया

(iii)
मरू महोत्सव, जैसलमेर,
16 से 18 फरवरी, 2011 माघ शुक्ल त्रयोदशी से पूर्णिमा

(iv)
बेणेश्वर मेला, बेणेश्वर धाम, डूंगरपुर,
14 से 18 फरवरी, 2011 माघ शुक्ल 11 से पूर्णिमा

(v)
ब्रज महोत्सव भरतपुर,
प्रतिवर्ष 2 से 4 फरवरी

(vi)
हाथी महोत्सव, जयपुर,
19 मार्च, 2011 फाल्गुन पूर्णिमा

(vii)
कैलादेवी मेला, करौली,
31 मार्च, 2011

(viii)
गणगौर मेला, जयपुर,
6 से 7 अप्रैल, 2011 चैत्र शुक्ल तृतीया से चतुर्थी

(ix)
मेवाड़ महोत्सव, उदयपुर,
6 से 8 अप्रैल, 2011 चैत्र शुक्ल तृतीया से पंचमी

(x)
महावीरजी मेला, श्रीमहावीरजी, जिला-करौली,
12 से 18 अप्रैल, 2011 चैत्र शुक्ल नवमी से पूर्णिमा

(xi)
ग्रीष्म महोत्सव, माउंट आबू,
15 से 17 मई, 2011

(xii)
तीज महोत्सव, जयपुर,
2 से 3 अगस्त, 2011 श्रावण शुक्ल तृतीया से चतुर्थी

(xiii)
कजली तीज मेला, बूँदी,
15 से 16 अगस्त, 2011 भाद्रपद कृष्ण 3 से 4 तक

(xiv)
दशहरा मेला, कोटा,
4 से 6 अक्टूबर, 2011
अश्विन शुक्ल 8 से 10

(xv)
मत्स्य महोत्सव, अलवर,
4 से 5 अक्टूबर, 2011

(xvi)
मारवाड उत्सव, जोधपुर,
10 से 11 अक्टूबर, 2011 अश्विन शुक्ल चतुर्दशी से पूर्णिमा

(xvii)
पुष्कर मेला, अजमेर,
13 से 21 नवंबर, 2011

(xviii)
चंद्रभागा मेला, झालावाड़
9 से 11 नवंबर, 2011 कार्तिक शुक्ल 14 से मार्गशीर्ष कृष्ण 1

(xix)
शीत महोत्सव, माउंट आबू, प्रतिवर्ष 29 से 31 दिसंबर

(xx)
बूँदी महोत्सव, बूँदी
14 से 16 नवंबर, 2011



राजस्थान के प्रसिद्ध पशु मेले


1. मल्लीनाथ पशु मेला - तिलवाड़ा, बाड़मेर

2. तेजाजी पशु मेला - परबतसर, नागौर

3. गोगामेड़ी पशु मेला - गोगामेड़ी हनुमानगढ़

4. जसवंत प्रदर्शनी एवं पशु मेला - भरतपुर

5. गोमती सागर पशु मेला - झालरापाटन, झालावाड़

6. रामदेव पशु मेला - नागौर

7. कार्तिक पशु मेला - पुष्कर

8. बहरोड पशु मेला - बहरोड, अलवर

9. चंद्रभागा पशु मेला - झालरापाटन, झालावाड़

10. महाशिवरात्रि पशु मेला - करौली

11. बलदेव पशु मेला - मेड़ता सिटी, नागौर

राजस्थान के पशु मेलों से संबंधित विशेष तथ्य

1. राजस्थान का सबसे बड़ा रंगीन मेला - पुष्कर मेला

2. मुस्लिमों का सबसे बड़ा मेला - अजमेर का ख्वाजा साहब का उर्स

3. जैनियों का सबसे बड़ा मेला - महावीरजी का मेला

4. आदिवासियों का सबसे बड़ा मेला - बेणेश्वर मेला

5. सिखों का सबसे बड़ा मेला - साहबा मेला

6. जाँगल प्रदेश का सबसे बड़ा मेला - कोलायत जी का मेला बीकानेर

7. मेरवाड़ा का सबसे बड़ा मेला - पुष्कर मेला

8. वृक्षों से संबंधित सबसे बड़ा मेला - खेजड़ली मेला, खेजड़ली जोधपुर

9. हाड़ौती का सबसे बड़ा मेला - सीताबाड़ी मेला

10. हिन्दू जैन सद्भाव का मेला - ऋषभदेव जी का मेला, उदयपुर

11. मत्स्य प्रदेश का सबसे बड़ा मेला - भर्तृहरि मेला, अलवर

12. सांप्रदायिक सद्भाव का सबसे बड़ा मेला - रामदेवरा मेला, जैसलमेर

Comments

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली